तू हमारी बहु नही बेटी है – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : रागिनी के आंसू आज फिर छलछला आए….. जब भी वो ये तस्वीर देखती उसका दर्द उसके आंसू बनके बह निकलता। “तू फिर ये तस्वीर ले बैठी, कितनी बार कहा है मत देखा कर ये तस्वीर , सविता जी ने अपनी बहु के हाथ से तस्वीर छीनते हुए कहा”

                                 “रागिनी, मेरी लाडो कब तक चलेगा ऐसे…. तू दिन रात ऐसे ही रितेश की याद में कब तक आंसू बहाएगी, नही आएगा वो अब तेरे पास तू कब समझेगी मेरी  बच्ची , छोड़ दे  अपनी ये जिद और निकल इस कमरे के बाहर देख हम सब हैं न तेरे पास और रितेश से किए गए वादे का क्या, भूल गई सब?” सविता जी बोले जा रही थी और रागिनी तो मानो बुत बन गई थी…….

                                 रागिनी सविता जी के इकलौते बेटे रितेश की पत्नी थी । 6 महीने ही तो हुए तो उसको इस घर में बहु बनकर आए। कितनी चुलबुली ,प्यारी लड़की थी रागिनी जब रितेश के साथ उसकी शादी हुई थी। सविता जी ने ही तो सबसे पहले देखा था रागिनी को अपनी किसी दोस्त के यहां शादी में, देखते ही भा गई थी उनको रागिनी अपने बेटे रितेश के लिए। रागिनी के माता पिता की अकाल मृत्यु के बाद वो अपनी चाची के साथ रहती थी जो सविता जी के दोस्त की बहन थी

                                  रितेश भी एकदम हट्टा कट्टा सुंदर नौजवान था और साथ में आर्मी ऑफिसर भी। सविता जी को रितेश के लिए कोई हंसमुख, संस्कारी ,सुंदर लड़की की तलाश थी जो अब रागिनी पर जा कर पूरी हुई थी।

                                  सविता जी और उनके पति सुदेश जी ने बिना देरी किए रागिनी के घरवालों से बात करके , रितेश और रागिनी को मिलवाया , दोनो के हामी भरते ही चट मंगनी पट ब्याह करवा दिया। 

                                  रागिनी के आते ही सविता जी की तो मानो बेटी को कमी ही पूरी हो गई और रितेश भी रागिनी जैसी सुलझी हुई समझदार लड़की को अपने हमसफर के रूप में पाकर बहुत खुश था। रागिनी की तो जैसे किस्मत खुल गई ऐसा घर संसार पाकर।

                                 सब कुछ रागिनी को ख्वाव सा लग रहा था, इतनी खुशियां कहीं नजर ना लग जाए किसी की…..कभी कभार रागिनी अपने आप से ही कहती ।

                                और कुछ दिनो बाद ही………… एक दिन अचानक एक रोड एक्सीडेंट मे रितेश की मौत हो गई। रागिनी को तो सुनते ही सदमा लग गया और उसके आंख से एक भी आंसू न आया बस रितेश की फोटो को लेकर देखती रहती ना किसी से कुछ कहती ना सुनती।

                                कितनी मुश्किलों के बाद सविता जी रागिनी को संभाल पाई। ऐसा नहीं था कि सविता जी और सुदेश जी को अपने बेटे का गम नही था , वो भी दोनो अकेले में खूब रोते अपने बेटे को याद करके पर जब रागिनी को देखते तो सारे गम भूलकर उसको खुश करने में लग जाते। 

                                समय के साथ साथ रागिनी की हालत में भी सुधार होने लगा पर वो बस अपना काम करती और अपने कमरे मे रितेश की फोटो के साथ बैठी रहती।

                                 आज भी वो इस फोटो के साथ ही थी जब सरिता जी ने उसके हाथ से फोटो छीनी। सरिता जी से उसकी ये हालत अब देखी न जाती। उन्होंने और सुदेश जी ने कुछ फैसला लिया । उन्होंने रागिनी को अपनी बेटी मान लिया था और घर भी उसके नाम कर दिया ताकि उनके नही रहने के बाद उसको किसी चीज की कमी नहीं हो।

                                 तो अब उसकी खुशियों की ज़िम्मेदारी उनकी थी बस उसको वापस खुश देखने के लिए उसकी दूसरी शादी का फैसला ले लिया उन दोनों ने ,रागिनी को बिना बताए।

             रागिनी ने उनको  अपने एक बचपन के दोस्त जितेन से मिलवाया था मार्केट में एक बार। तब तो ज्यादा बात नही हुई थी पर जितेन एक समझदार सुलझा हुआ लड़का लगा सरिता जी को जिसकी बातों से लग रहा था कि वो रागिनी को काफी करीब से जानता है। दोनो बचपन से साथ पले बढ़े थे शायद इसलिए।

              शायद इस मामले में वो उनकी मदद कर सकता है  या बता सकता है कि रागिनी को इस दर्द से बाहर कैसे निकाला जाए।ये सोचकर उन्होंने जितेन से मिलने का सोचा।

              

             जितेन का नंबर उनको रागिनी के फोन में आसानी से मिल गया था । उन्होंने फोन किया तो फोन जितेन की मम्मी ने उठाया और बात ही बातों में पता लगा कि जितेन रागिनी से प्यार करता था और शादी करना चाहता था पर जब तक वो अपने मन की बात उसे बताता तब तक उसकी और रितेश की शादी हो चुकी थी। पर जब जितेन  की मम्मी को रितेश और रागिनी के बारे में पता लगा तो उन्हें बहुत दुख हुआ और उन्होंने  सरिता जी को आश्वाशन दिया कि जितेन उनकी हरसंभव मदद करेगा।

               जैसे ही जितेन को उसकी मां से सरिता जी के फोन के बारे में पता लगा वह बताए हुए पते पर नियत समय पर पहुंच गया। जितेन के आते ही सविता जी फूट फूट कर रोने लगी (उनको लगा जैसे उनका रितेश सामने है) जितेन ने उनको ढांढस बंधाया, चुप कराया। उन्होंने,उसको रागिनी की हालत और अपने फैसले के बारे में बताया।   एक बार तो उसे बहुत अचंभा हुआ और बोला ” कि  आंटी आप ये क्या बोल रही हो ….. रागिनी को पता चलेगा तो क्या होगा” 

              “रागिनी के लिए ही तो सब कुछ कर रही हूं मैं, मुझसे मेरी बेटी की ऐसी हालत देखी नही जाती। उसको भी जिंदगी की वो सब खुशियां मिलनी चाहिए जो भगवान ने उससे छीन ली”, सविता जी ने रोते हुए कहा ।

              तुम बताओ जितेन क्या तुम वो सारी खुशियां रागिनी को दे पाओगे जिसकी वो हकदार है। मैने तुम्हारे बारे में सारी जानकारी ली है, तुम्हारे चेहरे को पढ़ा है बेटा ,तुम्हारी मन की इच्छा मुझसे छिप नहीं सकती,  मुझे पता है तुम रागिनी को बहुत चाहते हो और उसका बहुत ख्याल रखोगे ये सब सोचकर ही मैं तुमसे मिलने आई हूं। अब तुम बताओ क्या करोगे ये ? इक मां के लिए, मेरी बेटी की खुशियां उसे दे दो बेटा ….. अपनी झोली फैलाते हुए सविता जी बोली

              जितेन जो मन ही मन रागिनी को चाहता था । उसे विश्वास नही हो रहा था कि ये सब सच है जो वो देख रहा है। उसने इसको भगवान की इच्छा मानकर हां भर दी सविता जी को तो जैसे जितेन के  रूप में उनका रितेश मिल गया हो , उन्होंने उसको गले से लगाया और ये खुश खबरी अपने पति को दी। वो भी बहुत खुश थे ये सब सुनकर।

              सविता जी जितेन को अपने साथ ले आई रागिनी से मिलवाने … जैसे ही रागिनी ने जितेन को देखा वो उसके गले लग कर  खूब रोई तभी सविता जी और सुदेश जी उसके कमरे में आके बोले …”बस अब नही रागिनी बेटा अब एक भी आंसू नही बहाएगी , तुम्हें हमारी  कसम।” 

               तुम मुझे अपनी मां समझती हो तो मुझे एक वादा करो, हां मां बोलिए क्या बात है … नही पहले मुझे वादा दो मैं जैसा बोलूंगी वैसा तुम करोगी। ठीक है मां मैं वादा करती हूं अभी बताइए भी क्या हुआ रागिनी ने थोड़ा चिंतित होते हुए पूछा।

               तू जितेन से शादी करले रागिनी बेटा  ….”  ये आप क्या कह रही हैं मां, ये नहीं हो सकता .”… रागिनी लगभग चीखती हुई बोली ।और जितेन तुम भी , तुम नही जानते मैं रितेश की जगह किसी और को नही दे सकती। मुझे तुमसे ये आशा नही थी….. रागिनी के आंसू फिर  छलछला आए……

    जितेन को कुछ मत बोल बेटा ,इसका कोई कसूर नही है, इसको भी मैने ही मनाया है तेरी तरह और तो और           

मेरी और तेरे पापा की भी यही इच्छा है। और रितेश को दिया  वादा याद है ना जब वो नही होगा तो उसकी अनुपस्थिति में तू हमारा ख्याल रखेगी, तू बता कैसे रखेगी हमारा ख्याल जब तू खुद का ख्याल नही रख पा रही है सविता जी बिना रुके बोलती जा रही थी।

                       पर मां……. ये नही हो पाएगा मुझसे  रागिनी को बीच में ही टोकते हुए सविता जी बोली देख तूने मुझे वचन दिया है अब कुछ मत बोल रागिनी  । सुदेश जी भी सविता जी की ही तरफदारी कर रहे थे और बोले बेटा तू हमारी बहु नही बेटी है, क्या अपनी बेटी पर इतना भी हक नही हमारा ……?

                       नही पापा प्लीज ऐसा मत बोलो । मैं आपकी बेटी हूं और आपका पूरा हक है मुझ पर रागिनी रोती जा रही थी और बोलती जा रही थी।

                       तो फिर ठीक है आने वाले रविवार को तुम दोनो की शादी है, मैंने ये खुशखबरी पहले ही तुम्हारी मां और पापा को दे दी । उन्हें हमारे इस फैसले से कोई ऐतराज नहीं बल्कि वो तो खुश हैं अपनी बेटी के इस आने वाले नए जीवन को लेकर।

                       तो बताओ रागिनी क्या तुम मुझे अपना जीवनसाथी बनाओगी? क्या मेरी दोस्ती पर विश्वास करोगी। हम पहले दोस्त हैं इसलिए बिना हिचक के अपना फैसला मुझे सुना सकती हो … जितेन बोला।

            और रागिनी फिर ये जमीन जायदाद, ये घर का हम क्या करेंगे ? ये सब भी तो तुझे सम्हालना है और इसके लिए तुम्हे जीवन साथी का साथ चाहिए बेटा । दुनिया में बुरे लोगों की कमी नहीं है , कोई भी धन दौलत की चाह में किसी भी हद तक जा सकता है सविता जी और सुदेश जी साथ बोले

                      पर  मां… पापा  ना मुझे आपके पैसे चाहिए ना आपकी संपत्ति बस मुझे आप दोनो का साथ चाहिए। मैं आप लोगों से दूर नहीं जाना चाहती । मैं आपकी बेटी बन आपके साथ ही रहना चाहती हूं, आप समझते क्यों नही।

                       हम अपनी बेटी का दुख समझते हैं बेटा इसलिए इतना बड़ा फैसला तुमसे बिना पूछे लिया। और जितेन के साथ शादी होने से तो तू हमेशा हमारे पास रहेगी जितेन भी तो हमारा ही बेटा है।

                     (  जितेन ने  आंख ही आंखों में मां पापा को ढांढस बंधाया और विश्वास दिलाया वो हमेशा उनके साथ है)

                       तुम तैयार नही हो तो कोई जबरदस्ती नहीं है सरिता और सुदेश जी रागिनी के आगे हाथ जोड़कर खड़े थे। 

                       नही …. आप मुझे शर्मिंदा मत कीजिए। मैं तो कितनी  खुश किस्मत हूं जो आप जैसे मां  पापा ने दुनिया की परवाह किए बिना मेरे बारे में इतना सोचा और कहते कहते रागिनी रो पड़ी।

                       अब बाते मत बना । मेरे पास  बहुत काम है और टाइम कम तो चल फिर मेरा हाथ बंटाने आ मेरे साथ  कहते कहते सविता जी की आंखे छलछला आई। और रागिनी उनके गले लग गई।

सरिता जी और सुदेश जी ने  रागिनी का कन्यादान अपने हाथो से करके पूरे समाज के लिए मिसाल कायम कर दी और बता दिया कि बहु को भी उसकी जिंदगी जीने का पूरा हक है क्या हुआ अगर उनका बेटा उसका साथ छोड़ गया। 

दोस्तों क्या सरिता जी और सुदेश जी का रागिनी के लिए लिया गया फैसला सही था?

क्या रागिनी को बहु नही एक बेटी मानकर उन्होंने सही किया

अपने विचारों से अवगत कराना नही भूलें और हर बार की तरह   मेरा उत्साहवर्धन करना भी…

धन्यवाद

स्वरचित और मौलिक

निशा जैन

दिल्ली

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