पापा की परी –  ऋतु अग्रवाल

आजकल यह शब्द बहुत सुनने को मिलता है पापा की परी।तो मेरी कहानी इसी “पापा की परी” पर आधारित है।     मृदुला और निशी अपनी स्कूटी से बाजार जा रहे थे। उनके पीछे वाली स्कूटी पर दो लड़के बैठे थे जो कोई वीडियो बना रहे थे। काफी देर से मृदुल और निशी की स्कूटी आगे-आगे और … Read more

जीम के जाना – सुनीता मिश्रा

मैने सुबह ही होटल से चेक आउट कर लिया।सोचा कंपनी का काम निपट चुका है ,शाम की फ्लाईट है तो पूरा दिन अपने बचपन के दोस्त राकेश के साथ बिताऊँगा ।अपने आने की खबर मैने उसे कल रात मे फोन पर दे दी थी। उसके घर जब मै पहुँचा तो देखा पुराने छोटे से घर … Read more

अमर प्रेम – रंजना बरियार

हरी मख़मली घास की शीतल छुअन निर्मला जी के तन मन को  शीतल कर रही है। तपती दोपहरी, उसपर से बत्ती गुल, किसी तरह से धीमी गति सें पंखे का घूमना.. बड़ी मुश्किल से दोपहर कट पाई थी..अब सूरज का अस्ताचल हुआ है..माली अभी-अभी लॉन में पानी पटा कर गया है, निर्मला जी और राकेश … Read more

उपहार- मनवीन कौर

शांता बाई मेरे आने से पहले ही ऑफ़िस झाड़ पोंछ कर तैयार रखती थी ।सुगंधित ताजे फूलों का गुलदस्ता मेरा स्वागत करता नज़र आता। मेरे आते ही अभिवादन कर अलमारी से फ़ाइल निकाल  कर मेज़ पर रख देती थी ।कोई काम कहो ,”जी मेडम ,”कह कर  तुरंत काम में लग जाती । बड़ी प्यारी  बच्ची … Read more

वाह – लतिका श्रीवास्तव

“वाह वाह आपका गला भी इतना अच्छा है ये तो आज ही पता चला….”अब बताओ भला ये भी कोई तारीफ हुई !!अरे भई गला सुरीला होता है मधुर होता है अगर गाने की तारीफ कर रही हो ,अच्छा गला मतलब तो सुडौल गला सुंदर गला हुआ ना ! सौरभ ने उसकी ग़ज़ल गायकी की तारीफ … Read more

बोलती गुड़िया (भाग 3) – आशा सारस्वत

शीतल अपने घर चली गई कभी-कभी लैंडलाइन नंबर पर उससे बात हो जाती । वह अपनी ससुराल में बड़ी बहू होने के कारण सभी की लाड़ली थी। वह अपनी गृहस्थी में बहुत ख़ुश थी ।        उसके पति इंजीनियर थे, बहुत ही अच्छे वेतन पर वह नौकरी करते । सभी सुख सुविधाओं को उन्होंने जुटा लिया … Read more

बोलती गुड़िया (भाग 2) – आशा सारस्वत

परेशान मन से जैसे-तैसे कार से मैं घर पर पहुँच गई । वहाँ जल्दी से बच्चों को तैयार किया और अपनी मनपसंद सिल्क की बनारसी साड़ी को उतार कर दूसरी साड़ी बदली । यह सब करते हुए थोड़ा ही समय लगा था कि मूसलाधार वर्षा अब नन्ही बूँदों में परिवर्तित हो गई । तभी घर … Read more

डाइनिंग टेबल – कंचन श्रीवास्तव “आरज़ू”

*************** डाइनिंग टेबल पर एक साथ खाना खाने के लिए बैठे सबको  देख रेखा की आंखें झलक आई जिसे सिर्फ सामने बैठे सुनील ने देखा। पर चुप रहे क्योंकि बात सिर्फ उसके और उसके पत्नी के बीच की थी इसलिए सबके जाने और उसके बेड पर आने का इंतजार किया। आते ही एक नज़र उस … Read more

हक़ – प्रीति आनंद अस्थाना

शीतल को बिस्तर पकड़े एक सप्ताह से ऊपर हो गया है। जब से डॉक्टर ने लिवर का कैंसर बताया है रोहित की तो हिम्मत ही टूट गई है। इलाज के लिए लाखों चाहिए, वे कहाँ से लाएँगे? क्लर्क की नौकरी से उन्होंने अपने दोनों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाई पर वे विदेश जाकर वहीं बस … Read more

गणिका – रीमा महेंद्र ठाकुर

उन्नीस सौ अस्सी दशक की बात है, सडक पर भारी गहमागहमी, वैसे भी रेड एरिया, राते तो जगमगाती है, और दिन रातो से विपरीत, सन्नाटा मनहूस, दिन के उजाले में शायद ही कोई, सभ्रांत नागरिक उधर से गुजरता हो, रोजी रोटी की तालाश में अनजाने ही एक अजनबी उस गली में आ गया था! कपडे … Read more

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