हक़ – प्रीति आनंद अस्थाना

शीतल को बिस्तर पकड़े एक सप्ताह से ऊपर हो गया है। जब से डॉक्टर ने लिवर का कैंसर बताया है रोहित की तो हिम्मत ही टूट गई है।

इलाज के लिए लाखों चाहिए, वे कहाँ से लाएँगे? क्लर्क की नौकरी से उन्होंने अपने दोनों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाई पर वे विदेश जाकर वहीं बस गए। रिटायर होने के बाद मामूली सी पेंशन आती है उसी से गुजारा हो रहा है।

इलाज के लिए उधार भी उन्हें कौन देगा और अगर मिल भी गया तो चुकाएँगे कैसे? ले दे कर ये घर है पर ये तो बाबूजी का बनाया हुआ है। इस पर उनके छोटे भाई नितिन का भी बराबर का अधिकार है इसलिए जब तक उसकी हाँ न हो, बेच नहीं सकते।

एक सफल कैरियर के बाद नितिन मुम्बई में ही बस गया है। मुलाकात तो बरसों से नहीं हुई पर फोन पर बात होती रहती है।

वैसे नितिन के पास मदद करने लायक पैसे हैं पर वे माँग नहीं पाएँगे। बचपन में जब भी नितिन उनसे कुछ माँगता तो उसके बदले वे दुगना वसूलते। गणित का कोई सवाल पूछा तो बदले में जुते साफ़ कराए, ड्रॉइंग में मदद चाही तो उसके हिस्से की चॉकलेट का एक टुकड़ा ले लिया! वह अम्मा से शिकायत भी करता पर वे कभी बाज नहीं आए! यह सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक वे दोनों साथ रहे। अब किस मुँह से….

“मकान बेचने की बात उससे कर के देखता हूँ, शायद मान जाए”, सोच थोड़े आश्वस्त हुए रोहित, “ऐसे भी उसे इस मकान की कोई ज़रूरत तो है नहीं, मुम्बई में करोड़ो के मकान में रहता है।”

” क्यों भइया, क्यों बेचना है मकान?”

“तुम्हारी भाभी की तबियत ठीक नहीं। डॉक्टर ने महँगा इलाज बताया है, उसी के लिए पैसे चाहिए। तू परेशान मत हो छुटकू तेरा हिस्सा तुझे पूरा मिलेगा।”

“घर बिक जाएगा तो आप कहाँ रहेंगे, सोच लिया है?”

“पहले शीतल ठीक हो जाए, फिर देखेंगे।”


“ठीक है भइया, आता हूँ।”

रोहित चकित रह गए जब अगली ही फ्लाइट से नितिन पटना आ गया, और वहाँ से टैक्सी से हाजीपुर।

” कहाँ इलाज हो रहा है भाभी का? इस शहर में कैंसर के स्पेशलिस्ट हैं क्या?” शीतल के कैन्सर के बारे में जानकर दुःखी हो गया था वह।

“नहीं हैं पर हर मंगल को पटना से आते हैं, उन्हीं को दिखा रहे हैं।”

“समान बाँधिए भइया, हम मुम्बई चल रहे हैं, वहीं टाटा कैंसर हॉस्पिटल में भाभी का  इलाज कराएँगे।”

“पर छुटकू, इतना पैसा कहाँ से आएगा?”

“एक घर मुम्बई में भी तो है न भइया, ज़रूरत पड़ी  तो पहले वो घर बेचेंगे, ये नहीं। इसमें तो आप दोनों की जान बसती है। पर आपने कैंसर के बारे में पहले क्यों नहीं बताया?”

“किस हक़ से बताता? बचपन से आज तक मैंने तुझे परेशान करने के सिवाए किया ही क्या है, छुटकू।

“उसी हक़ से भइया जिससे आप मुझे, एक बासठ साल के बूढ़े को, छुटकू कहते हैं।” अपने आँसुओं को पोछते हुए नितिन ने अपने बड़े भाई को गले लगा लिया।

स्वरचित

प्रीति आनंद अस्थाना

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