बोलती गुड़िया (भाग 3) – आशा सारस्वत

शीतल अपने घर चली गई कभी-कभी लैंडलाइन नंबर पर उससे बात हो जाती । वह अपनी ससुराल में बड़ी बहू

होने के कारण सभी की लाड़ली थी। वह अपनी गृहस्थी में बहुत ख़ुश थी ।

       उसके पति इंजीनियर थे, बहुत ही अच्छे वेतन पर वह नौकरी करते । सभी सुख सुविधाओं को उन्होंने जुटा लिया था । जब भी वह कहीं जाती उसके लिए कार तैयार थी।

  एक बार जब मिलना हुआ तो उसने बताया कि मैंने सभी टेस्ट करा लिए हैं, कोई कमी नहीं । मैं चाहती हूँ कि कोई बच्चा हो जाये ।

   मैंने उसे समझाने के लिए कहा— अरे! अभी क्या जल्दी है,अभी तो तुम ही बच्ची हो।

  मैंने उसे तो समझा दिया लेकिन मन ही मन मैं भी चिंतित हुई।

    उसकी शादी को लगभग दस वर्ष हो चुके थे लेकिन कोई ख़ुश खबरी नहीं मिली ।

   शीतल की मम्मी भी इस बात को लेकर बहुत चिंतित थी।

  एक दिन शीतल की छोटी बहिन सोनू, मॉं के यहॉं आईं तो उसका एक वर्ष का बालक दूध नहीं पी रहा था । वह रो रहा था, सोनू ने मॉं से कहा—  इसे हम डाक्टर के पास दिखाने चलते हैं न जाने क्या बात है । डाक्टर कुछ परामर्श देंगी तो शायद ठीक हो जाये ।

    मॉं बेटी दोनों गई और बच्चे को दिखाने के लिए नाम लिखा दिया ।

 


   केबिन में डाक्टर के पास एक महिला बैठी हुई थी, बहुत देर तक प्रतीक्षा कर ने के बाद सोनू ने नर्स से कहा— हमें बच्चे को दिखाना है कितनी देर और लगेगी।

  नर्स ने कहा— अगला नंबर आप का ही है, बहुत देर तक प्रतीक्षा कर ने पर सोनू की मम्मी केबिन में चली गई।

   वहाँ देखा , एक महिला साधारण कपड़े पहने हुए डाक्टर के पास ही बैठी मिन्नतें कर रही है और डाक्टर नहीं कर सकती , नहीं कर सकती — यही कह रही थी।

   उन्होंने कहा— डाक्टर दीदी, हमारे बच्चे को देख लीजिए ।

  ठीक है ले आईयेगा, डाक्टर ने कहा ।

  वह बच्चे को दिखाने के बाद जाने लगीं , लेकिन वह महिला वही बैठी थी ।

    डाक्टर ने कहा, तुम भी जाओ । लेकिन वह नहीं उठी , रोने लगी ।

    उन्होंने डाक्टर दीदी से कहा, यह क्यों रो रही है ।

 डाक्टर ने बताया— यह एक टैक्सी ड्राइवर की बीबी है। पहले से चार बच्चे हैं । पति घर में मारपीट करता है , बच्चों का पूरा खर्च नहीं देता । वह शराब पीकर बच्चों को और इसे मारता है ।

   यह पॉंच महीने से गर्भवती है, यह बच्चा नहीं चाहती । यह इतनी कमजोर है कि मैं इस के कहेनुसार कुछ नहीं कर सकती। इसकी जान भी जा सकती है और मैं यह पाप कर नहीं सकती , इसके छोटे-छोटे बच्चे हैं ।

  वह सोचने लगी हे भगवान! जो चाहता है उसे मिलता नहीं , जो नहीं चाहता उसे देते हो ।

 


   तभी सोनू ने मॉं से कहा-  हम शीतल दीदी से बात करते हैं ।

   शीतल और उनके पति को बताया ।

  डाक्टर ने कहा— आप मेरे माध्यम से इस महिला के खाने-पीने का खर्च दे देना । जब स्वस्थ बालक हो जायेगा, तब आप ले लेना । उस बालक से इनका कोई रिश्ता नहीं रहेगा । वह आपकी बेटी का ही होगा उसका पालन-पोषण फिर आप अपने तरीक़े से करना ।

         इसमें एक शर्त इन महिला के लिए है कि बालक पर इनका कोई अधिकार नहीं रहेगा ।

   इसमें एक शर्त आपके लिए है कि पूरा समय होने तक पौष्टिक भोजन की व्यवस्था के लिए आप को खर्च देना होगा । आप इनके घर न जाकर मेरे द्वारा सम्पर्क करेंगे ।

जब बालक होगा, लड़की हो या लड़का आपको अपने बालक की तरह स्वीकार करना होगा । चाहे रंग-रूप कैसा भी हो ।

  दोनों पक्षों को बता दिया गया । शीतल और पति को भी सब स्वीकार था ।

     नियत समय पर उस महिला ने एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया, जिसे शीतल अपनी मॉं की सहायता से पालने के लिए ले गई।

    मेरे बेटे की बहू ने एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया। उस बालिका ने जून महीने के तीसरे सप्ताह में रात्रि के समय जन्म लिया ।

   जिस समय उसका जन्म हुआ रात के समय मूसलाधार वर्षा हो रही थी ।

   मानसून की पहली वर्षा, और घर में लक्ष्मी का आना।

   बालिका जब पैदा हुई तो ग्यारह दिन बाद हवन आदि के द्वारा शुद्धीकरण , नामकरण करा लिया गया ।

 जब वह छ: महीने की हुई तो परंमपरा के अनुसार अन्नप्राशन संस्कार हुआ जिसमें सभी घर,परिवार,रिश्तेदारों को निमन्त्रित किया ।

   शीतल भी अपनी बालिका को लेकर आई । वह अब पॉंच वर्ष की हो चुकी थी । उसे इस तरह पाला जा रहा था जैसे कोई राजकुमारी।

   उसकी सभी इच्छाएँ ख़ुशी-ख़ुशी पूरी हो रही थी ।

  पूजा के समय पंडित जी ने कहा— अन्नप्राशन के समय खीर खिलाई जायेगी ।

   पहली बार परिवार की कोई कन्या खिलायेगी उसके बाद परिवार के बड़े बुजुर्ग फिर परिवार के उपस्थित जन सब एक-एक करके खीर चटायेंगे ।

   हमने शीतल की बिटिया से ही वह कार्य क्रम शुरू किया क्योंकि वह अब अपने घर की ही बिटिया थी।

  कभी-कभी परिवार में कोई समारोह होता तो हम मिलते रहते थे । एक बार किसी काम से मेरा उसके शहर में जाने का प्रोग्राम बना । मैं पहले शीतल की मम्मी के पास मिलने गई ।


 

  जब मैं उनके घर से निकल गई तो उन्होंने शीतल को बताया कि तुम्हारी चाची तुम्हारे शहर में आ रही है किसी काम से ।

  शीतल ने मुझसे संपर्क किया तो मैंने अपनी दिनचर्या बताई। उसने कहा-आप कब फ़्री होंगी यह बताइए । मैंने समय बता दिया । जैसे ही मैं फ़्री हुई शीतल के पति मुझे लेने आ गये एक बड़ी गाड़ी लेकर आये जो उनकी स्वयं की थी । शीतल को कहीं जाना होता तो वह ड्राइवर को लेकर अपने काम कर लेती।

बिटिया ट्यूशन जाती तो ड्राइवर के साथ चली जाती , वह सोलह वर्ष की समझदार बालिका हैं ।

जब मुझे वह लेने आये तो अपने नये मकान पर ही ले गए। शीतल वहाँ पहले से थी । वह मिल कर बहुत खुश हुई । मुझे भी मिल कर अपार ख़ुशी हुई ।

 मैंने देखा, घर में वह सभी सुख सुविधा है जो एक आधुनिक घर में होती है । मैं मन ही मन आशीर्वाद देती रही ।

   वह ज़िद कर रही थी कि बिटिया ट्यूशन पढ़कर आ जायेगी तब आप जाना ।

  मैं भी उससे मिलना चाहती थी , लेकिन समय की पावंदी ने मुझे वहाँ से आने को मजबूर कर दिया ।

मैं उनके घर गई दोनों पति-पत्नी बहुत ही खुश थे, मुझे भी बहुत अच्छा लगा ।

 जब मैं आगई तो बिटिया का मैसेज आया कि आप मुझसे नहीं मिली नानीजी ।

     मैंने वायदा किया, अगली बार तुम से अवश्य मिलूँगी।

   दूसरे कोरोनावायरस के समय वही शुरुआती मानसून में मूसलाधार बारिश में शीतल और अपनी प्यारी बिटिया को अकेला छोड़कर, बिटिया के पिता दूर भगवान के पास चले गये…

  आज वह बोलती गुड़िया मानसून के दौरान अपने प्रिय को खोज रही है….आगे मैं भी निशब्द हूँ ।

 

 

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