“मायके की रानी” हूं मैं!! – मीनू झा 

ईश्वर भी जाने क्यों हम औरतों को ही ऐसे ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करता है कि हमारे आगे इतने आडे तिरछे रास्ते होते हैं कि उनकी भूल भुलैया में उलझ हम मंजिल की राह ही बिसरा बैठते हैं…आज उसी मोड़ पर तो खड़ी है वो और बिल्कुल समझ नहीं आ रहा कि क्या करें…किससे … Read more

मैं कौन हूं,,???  – सुषमा यादव

मेरा आज भगवान से एक प्रश्न है,, बताइए कि,, मैं कौन हूं,, धूप में सुलगती, जलती एक संघर्षशील स्त्री जो थोड़ी सी छांव पाने के लिए तरसती रही हरदम,, क्या आपने मुझे किसी परीक्षा का इम्तिहान लेने भेजा है,या इस धरती पर इसीलिए भेजा है कि मैं एक एक करके सबको गंगा जी पहुंचाऊं,सबका दाहसंस्कार … Read more

जिंदगी की जंग – संगीता अग्रवाल 

” अरे कमला काकी तुम यहां कैसे ?” चेताली हैरानी से बोली।

” हां बहुरिया मुझे पता लगा तुम्हारी काम वाली काम छोड़ गई तो सोचा पूछ लूं कि मैं वापिस से आ जाऊं !” कमला काकी बोली।

” पर काकी आप इस उम्र में फिर से काम करने आई हैं सब ठीक तो है ना ?” चेताली बोली।

” हां बहुरिया !” ये कहकर कमला काकी जमीन पर बैठ गई उनकी आंखों में आंसू थे जो चेताली से छिपे नही।

” काकी आप रो रही हो ?” चेताली हैरानी से बोली।

” नही बहुरिया वो क्या है ना की बाहर धूल उड़ रही शायद कोई तिनका गिर गया हो….आप मुझे काम बता दीजिए फिर मुझे घर भी जल्दी जाना है !” कमला काकी उठते हुए बोली।

” रुको कमला काकी बैठो वापिस और मुझे बताओ बात क्या है आखिर ?” चेताली कमला काकी को वापिस बैठाती हुई खुद भी जमीन पर ही बैठ गई।

 

कमला काकी चेताली के यहां कई साल से नौकरी करती थीं। जब चेताली दुल्हन बन इस घर में आई उससे पहले से उम्र में काफी बड़ी होने के कारण चेताली के पति, देवर ननद सब उन्हें काकी बोलते थे चेताली भी काकी ही बोलने लगी। काकी एक किस्म से घर की सदस्य ही थी चेताली की सास की विश्वासपात्र थी वो उनकी मृत्यु के बाद भी काकी चेताली के यहां काम करती रही।

कमला काकी अपने परिवार के बारे में ज्यादा नहीं बताती थी पर हां इतना पता था उनका बस एक बेटा है पति की मृत्यु बेटे के बचपन में ही हो गई थी। आज से चार साल पहले कमला काकी ने ये कहकर नौकरी छोड़ दी थी कि उनके बेटे को दूसरे शहर अच्छी नौकरी मिल गई और वो अपने बेटे बहु पोते पोती के साथ वही जा रही हैं। चेताली को ये सुनकर काकी के जाने का दुख तो हुआ था पर उनके बेटे की तरक्की देख खुशी भी हुई थी कि चलो काकी को अब घर घर काम नही करना पड़ेगा। पर आज ऐसा क्या हुआ जो काकी को वापिस उसी शहर में और अपने उसी काम पर लौटना पड़ा।




” वो बहुरिया…!” काकी कुछ बोलते हुए सकपका रही थी।

Read more

बहू तुम्हारा इस्तेमाल कर रही है!! – कनार शर्मा

मम्मी जी मेरा लंच तैयार है जल्दी दे दीजिए…नंदनी अपनी बेटी मुन्नी गोद में लिए चूमते हुए बोली..!! ले बेटा एक बड़ा लंच, एक छोटा स्नेक्स का डिब्बा जब भूख लगे खा लेना और गर्म पानी की बोतल। मम्मी जी आज मुन्नी को फीड कराते कराते देर हो गई मैंने उसकी दूध की बोतल भर … Read more

ये पत्नियाँ – अभिलाषा कक्कड़

सिमरन और आकाश को नये घर में शिफ़्ट हुए दो महीने से ज़्यादा हो चले थे । व्यस्तता के कारण किसी भी दोस्त को घर में आमन्त्रित नहीं कर पाये थे । दोस्तों के आग्रह पर कि यार अपना नया घर तो दिखाओ, पति पत्नी ने अपने अपने आफिस के सभी मित्रों को एक साथ … Read more

 बेटियां बोझ नहीं होती – गणेश पुरोहित

  उसकी स्मृति पटल पर मम्मी-पापा का एक वार्तालाप उभरा। मम्मी कह रही थी- क्यों लड़की को बाहर पढ़ने भेज रहे हो ? जानते नही, जमाना कितना खराब है। लड़किया घर में, मोहल्ले में और अपने शहर में सुरक्षित नहीं है, फिर पराये शहर में बिना मां-बाप के साये के कैसे रहेगी ? मेरा मन नहीं … Read more

छांव है कभी-कभी तो धूप जिंदगी – किरन विश्वकर्मा 

सुयश शॉप से आकर उदास से सोफे पर आकर निढाल से   होकर बैठ गए…. अंशू ने पानी दिया और रसोई में रात के खाने की तैयारी करने लगी। खाने के समय भी वह चुपचाप खाना खाते रहे…… बच्चे भी समझ गए थे कि पापा का आज मूड सही नही है….. पर अब तो धीरे- … Read more

अंधकार से प्रकाश – बालेश्वर गुप्ता

            देखो रमेश, सूर्य ढलने को है,फिर अंधेरा छा जायेगा।ये अंधेरा कितना डरावना होता है ना?सच मे मेरा वश चले तो सूर्य को कभी अस्त ना होने दूँ।     माधवी,ये तो है कि अंधेरा किसी को भी अच्छा नही लगता,सब यही चाहते है सूर्य सदैव चमकता ही रहे।पर माधवी यदि ऐसा हो भी जाये तो क्या संसार … Read more

कभी धूप कभी छाव – दीपा माथुर

ओह अर्पिता तुम भी कितनी जिद्दी हो ? एक दो दिन की ही तो बात है ये लैपटॉप रख लो जब एग्जाम हो जाए लोटा देना। नही मोहिनी मैं फोन से पढ़ लूंगी तुम टेंशन मत करो। तुम्हे मेरे पास होने की पार्टी जरूर दूंगी। लेकिन..… नही मोहिनी मुझे अकेले चलने की आदत सी है। … Read more

आखिरकार (कहानी) – डॉ उर्मिला सिन्हा

 गोपू निढाल होकर बिस्तर पर जा गिरा।बुरी तरह थक गया था। अन्दर से वार्तालाप , ठहाकों का मिला-जुला शोर मानों उसे चिढा रही थी। आधुनिक कोठी के पिछवाड़े सेवकों के लिए बने हुए छोटे-छोटे कमरे। जिसमें गोपू अपनी मां के साथ रहता है। मां के आंचल का सुख उसे यहीं मिलती है। थका-हारा जब वह … Read more

error: Content is Copyright protected !!