बहू तुम्हारा इस्तेमाल कर रही है!! – कनार शर्मा

मम्मी जी मेरा लंच तैयार है जल्दी दे दीजिए…नंदनी अपनी बेटी मुन्नी गोद में लिए चूमते हुए बोली..!!

ले बेटा एक बड़ा लंच, एक छोटा स्नेक्स का डिब्बा जब भूख लगे खा लेना और गर्म पानी की बोतल।

मम्मी जी आज मुन्नी को फीड कराते कराते देर हो गई मैंने उसकी दूध की बोतल भर दी है। समय से पिला दीजिएगा अगर कोई परेशानी हो तो कॉल कर करना… कोशिश करूंगी जल्दी आ सकूं और हैं मैंने राशन ऑर्डर कर दिया है डिलीवरी ले लीजिएगा…!!

नंदिनी के हादसे मुन्नी को अपनी गोद में लेते हुए शांति जी बोली “तू इतनी चिंता क्यों करती है बहु”?? आराम से जाओ मैं सब संभाल लूंगी और अगर कोई परेशानी आई तो तुझे फोन कर पूछ लूंगी और फिर रोहन किस लिए है 11:00 बजे तक ऑफिस जाएगा उसकी भी जिम्मेदारी है… तू जा बस अपना ध्यान रखाकर और गाड़ी आराम से चलाना रास्ते में ट्रैफिक बहुत है मुस्कुरा दी…!!

जी मम्मी जी आप जैसा कहेंगी वैसा ही करूंगी… बोल जल्दी मैं अपनी गाड़ी की चाबी उठा ऑफिस निकल गई।

 इधर सोफे पर बैठी ललिता जी चश्मे में से दोनों सास बहू की शक्लें बारी-बारी देख रही थी फिर बहू के जाने के बाद चाय की प्याली से सुडका लेते हुए अपनी भाभी शांति जी से बोला

“अब बस भी करो सुबह से देख रही हूं एक टांग पर नाच रही हो”… बहु पोती इन्हीं की परवाह करे जा रही हो मेरा मतलब है उम्र हो गई है भाभी तुम्हारी थोड़ी परवाह अपनी भी कर लिया करो… आखिर कब तक बहू की सेवा में लगी रहोगी उससे भी थोड़ी सेवा करा लिया करो… बहु सिर्फ देखने के लिए लाई हो क्या?? ललिता जी जब तक चार कड़वी बातें ना सुनाले तब तक उनका खाना कहां पचता है।

 शांति जी अपने नाम स्वरूप बड़ी शांति से अपनी ननद की बात टालते हुए बोली “दीदी आज आपके पसंद के पालक के पकोड़े बना रही हूं 2 मिनट रुको अभी लाई…!!

 सही बात बोल दी इसीलिए बचने के बहाने ढूंढ रही हो जब बात ना बनी तो बोले चले जा रही थी शांति जी फटाफट पालक के पकौड़े बना लाई फिर दोनों ननद भाभी ने मिलकर पकोड़े का लुत्फ उठाया !!



देखो शांति भाभी तुम शुरू से ही सीधी सच्ची रही हो तुम्हें हर कोई उल्लू बना जाता है। तुम्हारी बहू दो मीठी-मीठी बातें कर तुमसे अब अपना काम भी करवाती है और बच्चा भी पलवा रही है और कल जब इसकी बारी आएगी तुम्हें घर से निकाल देगी तुम्हें….!!

 नहीं जीजी मेरी बहू तो बहुत अच्छी है दो साल हो गए नंदनी को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया बच्ची ने बिल्कुल ऐसे घुल गई है जैसे चाय में चीनी… और जीजी हम पढ़े लिखे थे मगर हमारे माता-पिता ने हमें आत्मनिर्भर बनने का मौका नहीं दिया इसीलिए आज मैं सोचती हूं अपनी बहू को सक्षम बनाने में थोड़ा सहयोग कर सकूं तो क्या गलत है?? अब मुन्नी हो गई तो थोड़ी जिम्मेदारी उठा लूंगी जिससे उसका कल संवर जाएगा वरना हमारी तरह तुम करती क्या हो?? बेकार घर में पड़ी रहती हो, तुमने आज तक किया ही क्या है?? ऐसे जुमले सुनने पड़ेंगे…!!

अपनी भाभी के मुंह से बहू की तारीफ सुन ललिता जी जल भुन गई। उन्हें लगा ऐसे बात नहीं बनेगी घर में आग लगानी है तो चार बातें और सिखानी पड़ेगी… “भाभी बहू तुम्हारा इस्तेमाल कर रही है” अभी मीठी बातें इसलिए कर रही है क्योंकि बच्चा पलवाना है बच्चा बड़ा हो गया तो तुम्हें कौन पूछेगा?? तुम और बूढ़ी हो जाओगी तभी कहती हूं अभी से बहू को रसोई पकड़ा दो… ये चार पैसे के चक्कर में वो तो बहार मजे कर रही है और तुम रसोई में सड़ जाओगी। ऑफिस जाने वाली औरतें मीटिंग के नाम पर पार्टियां करती हैं। जब घर में कोई मिल जाए तो घूमने निकल जाती है काम के नाम पर देर से घर आती हैं।

चार दिन से देख रही हूं सारा दिन मुन्नी की पॉटी, सुसु, डाइपर सब तुम देख रही हो, दूध पिलाती हो, जैसे तैसे मुन्नी सोती है तुम रसोई में खाना बनाती रहती हो, जब उठ जाती है उसकी सेवा में लगी रहती हो, दोपहर में कमर सीधी तक नहीं कर पाती… मैंने देखा रात में भी तुम्हारी गोद में ही उसे सुकून मिलता है अब जब मां की गोद कुछ घंटे मिलेगी और तुम्हारी गोद पूरा दिन वो बच्ची तुम्हारी आदि हो जाएगी फिर तुम चाहकर भी उसे अलग नहीं हो पाओगी… यही तो चाहती है तुम्हारी सीधी सच्ची बहू की बच्चे मां से लगाव ना रखें दिनभर दादी का खून पिए धीरे-धीरे जब बड़ी होकर तुम्हारे सिर पर नाचा करेगी। स्कूल जाने में अभी चार साल साल लगेंगे उसे… तब तक तुम्हें अधमरा कर लेगी ये मां बेटी तुम्हें…!!



इतने दिन से ललिता जी का रेडियो बहु के खिलाफ अपनी भाभी के कान भरने में लगा था कहते हैं ना बार-बार पानी पड़े तो पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं… वही हुआ शांति जी भी अब ललिता जी की बातों में आने लगी… उन्हें भी लगने लगा कि बहू उनका दुरुपयोग कर रही है अब मुन्नी का रोना उन्हें बहुत बुरा लगने लगा, जो काम में हंसी खुशी कर रही थी अब रसोई के कामों से उन्हें चिढ़ होने लगी।

अपनी ननद की बातों में आकर आज शांति जी ने निश्चय कर लिया था कि शाम का खाना तैयार कर नहीं करेगी और कह देंगी कि मुन्नी की देखभाल उनसे नहीं होती नौकरी छोड़ो और अपनी बच्ची को खुद संभालो आखिर मेरी भी उम्र हो चली है अपने बच्चों का किया अब तुम्हारे बच्चों का भी क्यों करूं सारा दिन उनके दिमाग में यही घूमता रहा… अपनी भाभी के विचार सुन ललिता जी अपने मंसूबों में कामयाब होती दिख रही थी!!

काम जल्दी खत्म होने पर नंदनी 5:00 बजे घर पहुंची उसके हाथ में प्याज की कचौरियां थी वो अपना पर्स रखते हो बोली मम्मी जी आज अदरक वाली चाय में बनाऊंगी साथ में खाएंगे आपको पसंद है ना इसीलिए आपकी पसंद की गरमा गरम कचौड़ीया लाई हूं… देखा तो मुन्नी झूले में सो रही थी उसको पुचकार जल्दी से हाथ मुंह धो कपड़े बदल… रसोई में पहुंची चाय बना लाई डाइनिंग टेबल पर तीनों बैठ चाय, नाश्ता करने लगी… तभी नंदनी बोली मम्मी जी आज मैं बहुत खुश हूं मुझे प्रमोशन मिला है जिसका पूरा श्रेय आपको जाता है… आपने छः महीने की छुट्टी के बाद मुझे नौकरी पर जाने का हौसला दिया, पीछे से मुन्नी की जरा भी फिकर ना करूं ऐसा कहा… आप ही की वजह से आज मुझे तरक्की मिली है… मुझे पता है मम्मी जी आप घर और मुन्नी में बहुत परेशान हो जाती हैं और अब सर्दियां भी आ रही है तो मैंने मुन्नी के लिए एजेंसी से एक आया का इंतजाम किया है।



अरे बेटा लेकिन हम अपनी पोती को गैर के हाथों में नहीं सौपूंगी ना जाने क्या करेगी उसके साथ कहीं मार पीट दिया तो????

मम्मी जी आप बिल्कुल चिंता ना करें उसका इंटरव्यू मैंने ले लिया है वो बहुत अच्छी है साथ में आप उसका पूरा नेतृत्व करेंगी अब मुन्नी का सारा काम वो संभालेगी आप बस आराम से बैठे बैठे देखेगा साथ में मुन्नी के सोने पर वो रसोई में खाना बना दिया करेगी। अब आप दादी पोती दोनों आराम करेंगे…घर के दूसरे कामों के लिए कामवाले तो है ही मगर ये चंपा मुन्नी का पूरा ध्यान रखेगी।

चाय नाश्ता खत्म होते ही नंदिनी ने सारे बर्तन बटोरते हुए बोली शाम को मेथी के पराठे और आलू मटर की तरी वाली सब्जी बनाऊंगी आपको और बुआ जी को पसंद है ना बोल रसोई में रखने चली गई।

 

तब शांति जी बोली “देखा दीदी मैंने कहा था ना मेरी बहू सबसे अलग है” वह स्वार्थी नहीं मेरे बारे में भी सोचती है देखो आपने सुनाना उसने मेरे लिए क्या किया और उसकी तरक्की का कारण मैं हूं… सच में मैं बहुत खुश हूं गुजरे कल से जो शिकायतें थी अब मैं सब भूलना चाहती हूं… आज अपनी बहू के साथ अपना कल सुनहरा बनाना चाहती हूं… कोई कुछ भी कहे कहता रहे मगर मेरा कल, आज और कल सब सुधर गया…!!

पास में बैठी ललिता जी के पास अब बोलने को कुछ बचा नहीं था वे सास बहू में फूट डालना चाहती थी। यहां तो घर इतने प्यार, सहयोग, अपनेपन से जुड़ गया था… जैसे अंबुजा सीमेंट से बन गया हो जिसे तोड़ने के इरादे अब उन्हें छोड़ देने चाहिए थे…!!

आशा करती हूं मेरी रचना को जरूर पसंद आएगी धन्यवाद  

आपकी सखी 

कनार शर्मा

 (मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित)

#कभी धूप कभी छांव

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