धूप-छाँव का खेल – शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’

लखपति,करोड़पति तो उसको कहना बहुत छोटा शब्द है। वह तो धनकुबेर है। तभी उसकी नजर सदा गगन को छेदती रहती है, जमीन पर तो कभी पड़ती ही नहीं।  ऐसा हो भी क्यों नहीं ,पंछी की तरह उसने तो आकाश नापना ही सीखा है। पर कहते है ना कि धरातल से जिसकी पकड़ छूट जाती है, … Read more

धूप के बाद की ठंडी छांव – रजनी श्रीवास्तव अनंता

“बुआ मैं भी आपके साथ चलूंगी, पड़ोस वाली आंटी के घर!” छाया ने जिद की तो दोनों बुआ ने उसे अपने साथ ले लिया। गर्मी की छुट्टियों में एक सप्ताह के लिए उसकी दोनों बुआ मायके आयी थीं। दोनों साथ हीं आती थी। सब दोस्तों और रिश्तेदारों से, मोहल्ले वालों से, मिलकर जाती थीं। वे … Read more

धूप-छाँव – पुष्पा पाण्डेय

प्रभात बेला में एक महिला की छाया रेलवे लाइन पर चलती देखकर कचरा चुनने वाली वृद्धा को काफी हैरानी हुई। ट्रेन अभी आने ही वाली थी और वह छाया सीधी चली जा रही थी। आव देखा न ताव दौडती हुई गयी और रेलवे लाइन से धक्का दे उस पार ढकेल दिया। ट्रेन चली गयी, लाइन … Read more

“बुढ़ापा भी धूप छांव से कम नहीं होता ”  – अमिता कुचया 

एक दमयंती जी जिनका घर में जो दबदबा रहा है उसे देखते ही बनता था।उनकी बुलंद आवाज ही काफी थी।वे धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी।   वो दूरदर्शी होने के साथ सत्यनिष्ठ थी। उनसे झूठ बर्दाश्त नहीं होता था।पर कहते हैं किस्मत के लिखे को कौन बदल पाया। उनके घर में दो बहू बेटे हैं … Read more

मैं अछूत नहीं हूँ… – संगीता त्रिपाठी

“क्या बात है रोहन…काव्या अभी तक उठी नहीं “वन्दना जी ने बेटे रोहन से पूछा।   “माँ उठ तो गई है पर उसकी तबियत ठीक नहीं है,”रोहन बोला “अरे क्या हो गया हमारी बहू रानी को.. देखूं जरा “कहते हुये वन्दना जी रोहन के बैडरूम में चली गई। काव्या के सर पर हाथ फेरते बोली “काव्या … Read more

परिवार –   मधु वशिष्ठ

    जब-जब भी स्कूल की छुट्टी होती थी हम सब का गांव में जाना अनिवार्य होता था। गांव में हमारी ताई जी और उनके 5 बच्चे, हम दो  भाई बहन,मम्मी और चाचा जी और चाची जी भी अपनी छोटी सी बेटी( हमारी चचेरीबहन) निक्की को लेकर वहीं मिला करते थे। दादी जी बाहर के गेट पर … Read more

मेरा घर खुला है खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए – दीपा माथुर

सुनो दीदी कि शादी है,मुझे नए लहंगा चुन्नी  चाहिए। अरे अभी तो अपनी शादी को छ महीने ही हुए है,आपके पास तो बहुत सारी ड्रेसेज नई नई ही है । तो क्या? दीदी की शादी रोज़ थोड़ी ना होंगी।फिर मम्मी को भी तो अपनी तरफ से मुझे कपड़े दिलाने पड़ेंगे।आखिर एक इकलौती बहू हूं। तुम्हे … Read more

अब आप को मेरा बड़ा होने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा…. – भाविनी केतन उपाध्याय 

” मम्मा, ये सब ट्रेक्शन और डिवीजन नंबर समझ में नहीं आ रहा … समझा दो ना…” सात साल के जय ने अपनी मां अदिति को कहा । अदिति का पूरा ध्यान अपने लैपटॉप में ही है सो उसने जय की ओर ध्यान नहीं दिया। जय ने दूसरी बार भी अपनी नोटबुक में देखते हुए … Read more

नौका-दुर्घटना –  मुकुन्द लाल 

  जयमंती के घर में ऐसा लग रहा था मानों लोगों को खुशियों का खजाना हाथ लग गया हो। घर का माहौल उमंग-उत्साह से लबरेज था।   उस घर में शादी की लगभग सारी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थी। पूजा-भंडार से सारी सामग्रियांँ आ चुकी थी। पड़ोस के दो लड़के आम के पत्ते और हरी दूब लाने … Read more

चिर स्वाभिमानी बेटी – प्रियंका सक्सेना

  “अम्मा, मैं जा रही हूं पीछे से खाना खा लेना। मेरी चिंता मत करना मैं दोपहर में समय से आ जाऊंगी।” सुधा ने अम्मा से कहा “बिटिया, तुमने नाश्ता कर लिया?” अम्मा ने विद्यालय जाती सुधा से पूछा “अम्मा, इंटरवल में कैंटीन से कुछ मंगा लूंगी। अभी देर हो जाएगी फिर प्रिंसिपल सर की … Read more

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