“बुढ़ापा भी धूप छांव से कम नहीं होता ”  – अमिता कुचया 

एक दमयंती जी जिनका घर में जो दबदबा रहा है उसे देखते ही बनता था।उनकी बुलंद आवाज ही काफी थी।वे धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी।

 

वो दूरदर्शी होने के साथ सत्यनिष्ठ थी। उनसे झूठ बर्दाश्त नहीं होता था।पर कहते हैं किस्मत के लिखे को कौन बदल पाया। उनके घर में दो बहू बेटे हैं उनका भरा पूरा परिवार है।

 

एक दिन की बात है कि जब रात को सोने जा रही थी। तभी उन्होंने सोचा मुंह हाथ धो लूं। जैसे  बाथरूम में गई वो गिर गई ।वो उठ ही नहीं पा रही थी।  और वे बेहोश हो गई।बहुत देर बाद पति को लगा।कि दमयंती जी दिखाई नहीं दे रही है।तब उन्होंने बेटे बहू से पूछा ?तब उन्होंने कहा- “मम्मी जी कमरे में ही गई है।” फिर उन्होंने कमरे के बाथरूम का दरवाजा देखा तो अंदर से बंद है। उन्होंने आवाज लगाई दमयंती जी कितनी देर से अंदर हो!क्या कर रही हो ?

 

इतनी देर क्यों लगा रही हो मुझे चिंता हो रही है कुछ बोलो भी क्या हुआ ऐसे में राधेश्याम जी का डर बढ़ गया क्या हो गया???

 

कोई अंदर से आवाज नहीं आई। तभी उन्हें अंदर से लगा कि क्या हो गया ? क्यों बोल नहीं रही है? फिर दमयंती जी के पति  राधेश्याम जी ने सबको आवाज लगाई। फिर दरवाजा खोलने की जद्दोजहद करने के बाद देखा। अरे ये क्या हो गया सब रोने लगे पर राधेश्याम जी ने उस समय साहस रखा, साथ ही एम्बुलेंस बुलवाई।

 

दमयंती जी गिरी पड़ी बेहोश हो गई थी।।उनका शरीर भारी हो गया।तब आननफानन में अस्पताल ले जाया गया।तब पता चला कि  पैरालिसिस अटैक हो गया।उनका दायां तरफ का कोई अंग काम नहीं कर रहा है।अब उनसे बोलते भी नहीं बन रहा है । मुंह भी टेढ़ा सा हो गया।वो दाये तरफ से जैसे गिरी हो।ऐसा लग रहा था।

 

तीन महीने तक अच्छे से अच्छे डाक्टर के यहां इलाज होता रहा ,पर कोई सुधार नहीं आ रहा था।

 



डाक्टर ने भी कह  दिया घर में सेवा कीजिए फिजियोथेरेपी भी होती रही। दवाइयां भी देते रहे।इस तरह वह दूसरों पर निर्भर हो गई।

 

मुंह  से सब बातें करती पर वो अपने आप कुछ नहीं कर पा रही थी।इस तरह कोई न कोई उनके पास रहता।उनकी सेवा में लगा रहता।वो खुद से बच्चों से कहती।  उनके अंदर खुद्दारी थी।वो सबसे कहती मेरे वजह से तुम लोग कब तक परेशान होते रहोगे।अपना- अपना काम भी देखो।

इस तरह समय बीतता गया••••••

उनके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं आया।वो दिन भर पड़ी रहती। वो सोचती मेरा जीवन तो एक बोझ के समान हो गया मैं क्यों जी रही हूं।पर वो नाती पोतों का मुंह देखती ,तो एक ढांढस सा बंद जाता ।जब दादी दादी आगे पीछे दौड़ते। कभी मोबाइल में फोटो क्लिक करते।इस तरह हंसते खेलते देखती उनका मन  भी बहल जाता ••••

इस तरह दमयंती जी  को बिस्तर पर लेटे -लेटे बहुत समय गुजर गया। उनके पति ने सेवा में कोई कसर न छोड़ी।

पर बिस्तर पर उनके होने से उनका दबदबा भी कम हो गया।समय के साथ -साथ जब जिसके पास समय जैसा होता, वैसा उनके पास बैठता। दोनों बेटे को दुकानें देखना।ऊपर  से बहूएं भी घर सारे काम काज संभालती।

कभी कभी उन्हें लगता कि मेरे पास कोई बैठ नहीं रहा, मुझसे बात नहीं कर रहा है। उनमें अब हीन भावना भरने लगी थी।वो कभी- कभी तेज-  तेज रोने लगती। अपने आप को बेबस सा महसूस करती।

कभी- कभी भगवान से शिकायत करती हुई कहती हे भगवान मैंने ऐसे कौन से कर्म किए जो इतनी बड़ी सजा दे रहा है।

उनके कमरे में टीवी एसी सब लगा था फिर भी वो हाथ पैरों को हिलाए बिना बेबस ही महसूस करती रहती।



रोज भगवान से प्रार्थना करती- हे राम !मुझे अपने पास बुला लो। भगवान से कहती मैंने शरीर के चलते हर पूजा पाठ बड़े मन से किया है , तो मेरे कष्टों को क्यों बढ़ा रहे हो।

मैं अपनी शिकायतों का पुलिंदा आपके सामने खोल रही हूं। हे  भगवान, मेरे  बेटे बहू भी यही चाहते हैं कि मेरे कष्टों से मुझे मुक्ति मिल जाए। मुझे देखकर  सब की आंखों में आंखे डबडबा जाती है, मेरी नातिन पोता सब आसपास ही रहते हैं, उन्हें कहीं कुछ न हो जाए

कोई बीमार न हो जाए ।हे भगवान, मुझे अपने पास बुला लो। मुझे नींद भी नहीं आती है।मेरा एक- एक पल बड़ी मुश्किल से निकल रहा है।मैं ऐसा क्या करूं? जिससे मुझे नरक भरी जिंदगी से मुक्ति मिल जाए। मेरे मन में कोई से गिला शिकवा नहीं है। किसी को दुखी नहीं देख पा रही हूं।

हे राम••••मेरी पुकार सुन लो•••

पर कहते हैं ,समय सबका निश्चित होता है।

भगवान भी नहीं सुन रहे थे।

 

अब लेटे -लेटे उन्हें बेडसोल हो गये जिससे उनकी तकलीफ असहनीय हो गई। फिर अस्तपालों में दिखाया। उसके बाद लीवर भी कमजोर हो गया

इसके बाद दमयंती जी का खाना पीना छूटने लगा। और तो और जूस ,दाल का पानी ही पी पाती।

दमयंती जी जैसा कष्ट वहीं समझ सकता है जिसके अपनों ने भोगा हो इसलिए कहा जाता है- ”  जाके पैर फटी बिवाई, वोई जाने पीर पराई।”

ऐसे कष्ट को देखकर सामने वाले भी देखकर यही कहते- “आपने बहुत सहा दमयंती जी।आप जैसी सहन शक्ति भगवान सबको दे।”

उनको सब सांत्वना देते ,बहू बेटे नाती पोते पूरा परिवार हाथों में लेता।उनके मन का करने की कोशिश करता। असहाय शरीर के आगे सब मजबूर हो गये।

उन्हें जब मिलकर बैठाते   तब वो बैठ पाती।सब के होते हुए उनका जीवन बहुत भारी पड़ रहा था।बस दिन भर भगवान राम से शिकायत  लगाती ऐसा क्या करु कि मेरा उद्धार हो जाए।

फिर दमयंती जी  पर भगवान ने उद्धार किया जिससे स्वर्ग लोक को प्रस्थान कर  गयी। जिससे उन्हें उनके कष्टों से मुक्ति मिल गई।

#कभी धूप कभी छाँव

अमिता कुचया 

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