स्वाभिमान से बढ़कर कुछ नहीं – सरोज प्रजापति

“भाभी आप खाना तैयार रखो, हम अभी बड़े भैया के घर से होकर आते हैं।”

“दीदी खाना तैयार है। खा कर आराम से चले जाना। मैं जब तक सारा काम निपटा लूंगी।”

“क्या भाभी, आपको तो बस अपने काम की पड़ी रहती है। अरे दो-चार दिन देर से काम कर लोगी और नहीं सोओगी तो क्या फर्क पड़ेगा?”

“शीला मधु सही कह रही है। खाना ठंडा हो जाएगा। पहले खाना खा लो। वैसे भी अब टाइम ज्यादा हो रहा है। कल भैया के घर चले जाना।”

“तू भी अब उसकी हां में हां मत मिला। अरे उनको पता चलेगा, हम कल की आई हुई हैं और अब तक नहीं आए तो उनको बुरा लगेगा ना!” बड़ी बहन ने कहा।

“हम अभी गए और अभी आए” यह कह दोनों बहनें हंसते हुए चली गईं।

यह पहली बार नहीं है। मधु की दोनों ननदों की हमेशा से यही आदत है। शाम को आएंगी और फिर गप्पे लड़ाती रहेंगी। जैसे ही खाने का टाइम हुआ, दोनों बड़े भाइयों से मिलने की कह चलती बनेंगी। शुरू शुरू में तो मधु ने खाना नहीं बनाया। उसने सोचा खाना के समय वहां गई हैं तो खाना खा कर ही आएंगी, लेकिन देर रात आने के बाद दोनों ने साफ शब्दों में बोल दिया “मधु खाना तो हम अपनी मां के साथ ही खाएंगे। हां तुम्हें देर होती हो तो सो जाया करो हम बना लिया करेंगे।”

मधु ने कहा “दीदी सोने की बात नहीं, आपको पता है ना अगले दिन मुझे ऑफिस भी जाना होता है और सभी तैयारियां करनी होती हैं। बस यही  दिक्कत है और कुछ नहीं।”

अब तो कई सालों से मधु को इन सब बातों की आदत पड़ गई थी। सासू मां नहीं रहीं, फिर भी ननदों की वही आदत।

“अरे बड़ी भाभी ने तो खाने के लिए बहुत जोर दिया लेकिन हमने कह दिया, जीवन हमारा इंतजार कर रहा होगा इसलिए हम आ गए| वरना खाना दोनों ने बना दिया था।” मधु को पता था दोनों बहनें झूठ बोल रही हैं और वह मधु को सुनाने के लिए यह सब बातें कहती हैं।




एक दिन मधु शाम के खाने के लिए तैयारी कर रही थी कि उसकी बड़ी ननद आ गई। मधु ने नमस्ते करते हुए कहा “दीदी आपने तो आने की कोई खबर भी नहीं दी?”

“खबर क्या देनी थी? अपना ही तो घर है।” चाय नाश्ता देने के बाद मधु ने कहा खाना भी तैयार है। यह सुन वह बोली “खाना तो मैं बड़े भैया के घर से आकर ही खाऊंगी। तुम्हें जल्दी है तो तुम लोग खा लो।”

“ऐसी बात नहीं है दीदी! वह आज मेरा व्रत था ना तो सोचा पहले बड़ों को खिला दूं उसके बाद ही।”

“भई तुझे नियमों की इतनी ही चिंता है तो थोड़ी देर रुक जा। हमें भी तो दुनियादारी निभाने दे। बड़े भैया को पता चला तो बुरा मान जाएंगे कि मैं उनसे मिलने नहीं आई। फिर आकर खाना खाती हूं।”

ऐसा कहने के बाद वह रात को 10:00 बजे वापस आई।

“मधु जल्दी से खाना डाल दे, बहुत भूख लगी है। बड़ी भाभी तो खाने पर बहुत जोर दे रही थी पर मैंने कह दिया मधु मेरा इंतजार कर रही होगी। तूने और जीवन ने तो खा लिया होगा।”

“नहीं दीदी यह भी आपका ही इंतजार कर रहे थे।” यह कहते हुए मधु ने दोनों बहन भाइयों के लिए खाना परोस दिया और खुद रोटियां सेंकने लगी। मधु रोटी लेकर आई तो उसने देखा कि उसकी ननद रोटी को उलट पलट कर देख रही थी। उसने पूछा “दीदी क्या हुआ?”

“कुछ नहीं। मुझे रोटी कुछ कच्ची लग रही है।”

“मधु दीदी के लिए दूसरी रोटी ला दो।” जीवन ने कहा। यह सुन मधु उनके लिए दूसरी रोटी अच्छे से सेंककर ले आई। उसे देख कर भी उसके ननद बोली “क्या मधु रोटी नहीं खिलानी तो वैसे ही बोल देती। क्या कच्ची रोटियां लाए जा रही है।”




“नहीं दीदी रोटी तो अच्छे से सेकी है।” जीवन ने भी रोटी देखी तो बोला “दीदी रोटी तो सही है।”

“तो क्या मैं झूठ बोल रही हूं? अरे ऐसी रोटियां तो हमारे यहां जानवरों को दी जाती हैं। मैं तो तुम दोनों की सोच कर वहां भी खाना छोड़ आई। बड़ी भाभी कितनी जिद कर रही थी लेकिन मुझे तुम लोगों की फिक्र रहती है और तुम दोनों हो कि ऐसा कर रहे हो। ना खिलानी हो तो साफ साफ मना कर दो।”

यह सुन मधु के आंसू निकल आए। अपने आप को संभालते हुए वह बोली “कैसी बातें कर रही हो दीदी! आप इतनी सी बात को कहां से कहां लेकर जा रही हो? आपको कुछ कहना हो तो साफ साफ कहो। यह रोटियों का क्यों बहाना लगा रही हो और आप यह बड़े भाई भाभी की बात तो रहने ही दो। इतना तो आपको भी पता है कि वह आप सब की कितनी परवाह करते हैं। सासू मां से सब सुन चुकी हूं उनकी आवभगत के बारे में।इतने सालों से मैं यही सुनती आ रही हूं कि हमारे लिए सभी भाई बराबर हैं। आपके लिए होंगे लेकिन उनके लिए आप का क्या महत्व है, यह तो आपको भी पता है और मुझे भी| लेकिन मैं अपने मुंह से कुछ कहना नहीं चाहती थी। लेकिन आज आपके व्यवहार ने मुझे कहने पर मजबूर कर दिया।

मैंने कभी भी आप लोगों की किसी बात का बुरा नहीं माना, लेकिन आज आपने मेरे आपने मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई है। मेरी इतने सालों की सेवा को आपने पल भर में मिट्टी में मिला दिया। आपसे मैं हाथ जोड़कर यही कहना चाहूंगी कि अगर आपको छोटों से इज्जत लेनी है तो बड़ों की तरह व्यवहार करना सीखें। अगर आपको मेरी कोई बात पसंद नहीं तो आप उसे प्यार से समझा सकती थीं। मैं बुरा नहीं मानती| लेकिन काम भी मैं करूं और ताने भी मैं सहूं यह अब मुझसे नहीं होगा।”

“तेरे सामने मधु इतना बोल रही है और तू चुपचाप सुन रहा है। हम तो तुझ पर इतना मरते हैं और तू हमें घर बैठाकर बेइज्जत कर रहा है। अगर मधु ने अपनी बातों के लिए माफी नहीं मांगी तो मैं फिर तेरी चौखट पर फिर कभी नहीं चढूंगी”|

“दीदी अगर मधु गलत होती तो मैं एक बार नहीं सौ बार उससे माफी मांगने के लिए कहता। आप मेरी बड़ी बहन हो, इज्जत करता हूं आपकी लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आपकी गलत बात को भी मैं सही कहूं। वह भी मेरी पत्नी है और आज तक उसने पलट कर जवाब नहीं दिया। हर बात की एक सीमा होती है। उसका भी आत्मसम्मान है। आप मेरी बड़ी बहन हो और आपके लिए मेरे घर व दिल के दरवाजे हमेशा खुले हैं। आप जब चाहे आओ, यह आपका ही घर है। आगे जो आपका विवेक कहता है।” जीवन ने दोनों हाथ जोड़ दिए।

यह सुन मधु की ननद कुछ ना बोली और सुबह चुपचाप चली गई।

सरोज प्रजापति 

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