सुमि – सुधा शर्मा

‘सुमि’,इतने मधुर स्वर में कहा किसी ने कि हवाओं में रस भर गया । सुमि रसोईघर से बाहर आई।’क्या कर रहीं थीं? भूल गयीं? आज मेरी छुट्टी है हमें बाहर चलना है लंच के लिए । आज सारा दिन  हम सब साथ बितायेगे । चलो , अनु  को तैयार होने  को कह कर आया हूँ ।।” 

और  सुचित सोफे पर पैर  फैला कर बैठ गया ।

      अनु हाँ उसकी छोटी बहन  सुचित की पत्नी। अनु ही तो आई थी अभी ! बहुत गुस्से में थी ।आते ही

बरस पड़ी थी,’ ये सब क्या है दी ?किस लिए शादी करवाई थी तुमने सुचित से मेरी? हर समय ‘सुमि  सुमि , बस सुमि की परवाह , सुमि की चिन्ता , सुमि को यह पसंद है , सुमि के लिये ये लेना  है।

आखिर तुमने खुद शादी क्यों नहीं कर ली सुचित से।मेरी जिंदगी क्यों बरबाद कर दी?”   बिना उसकी प्रतिक्रिया देखे झटके से वापिस लौट गयी थी।     

सुमि का सिर घूम गया । वह जमीन पर सिर पकड़ कर बैठ गयी। 

सुचित जल्दी से उठ कर

आया,’क्या हुआ ?तबियत ठीक नहीं क्या?बताओ मुझे ।वरना मै अभी डाक्टर को बुलाता हूँ।  ‘  , क्या  बचपना है यह? मुझे अकेला छोड़ दो थोडी देर । मै ठीक हूँ  थोडा थक गयी हूँ ।आज घर पर ही आराम कर लूंगी । तुम चलो अनु इतंजार  कर रही होगी । “बेमन से सुचित चला गया ।



                     सुमि ने अपनी आँखे बन्द कर ली और अतीत के पृष्ठ एक एक कर उसकी आँखों में तैरने लगे।

शुरू  से ही संघर्ष मय जीवन रहा था उसका। एक एक्सीडेंट में माता-पिता स्वर्गवासी हो गये ।उसने अपने छोटे एक भाई और एक बहन की जिम्मेदारी बखूभी निभाई । भाई पत्नी सहित सिडनी

मे बस गया और बहन को शिक्षित कर दिया जो अब बैंक मे अधिकारी है।

सुचित उसके आफिस मे प्रेसिडेंट था। उससे बहुत छोटा, बहुत नेक , संस्कारी  और योग्य ।सुमि का वह बहुत सम्मान करता था , भावनात्मक रूप से जुड़ा धा उससे ।बहुत पवित्र और निश्छल स्नेह करता था ।

उसे उसने अनु के लिए चुना।बहुत खुश थे वे दोनों । पर जो शक का बीज अनु के मन में  आरोपित हो गया कहीं  वह दोनों के बीच दरार न डाल दे।

तड़फ उठी सुमि , अपने दो प्रिय जनो की खुशियों को ग्रहण लगने से कैसे बचाये ? जीवन भर की तपस्या को भंग होने से कैसे बचाये?



  एकाएक उसकी स्मृति में डाक्टर चाचा आ गये।रिश्ते के चाचा थे ।सुमि पर बहुत स्नेह था। किसी दृढ निश्चय से उसका मन शान्त हो गया ।

अगले दिन जब वह सामान सहित सुचित से विदा लेने गयी वह बेचैन हो गया । ‘मुझसे कुछ भूल हुई क्या? कहाँ जा रही हो?”  ‘तुम से भूल कभी नहीं हो सकती ।बस मेरा मन उचट गया है।एक बात और अनु मे जान बसती है मेरी , वो खुश  रहेगी तो समझो कि मैं खुश रहूगी।’

          इस तरह गीली आखों, भीगे मन से सुचित ने सुमि को विदा  दी ।

      सुमि चली आई  ।डाक्टर चाचा गरीबों के लिये एक

अस्पताल चला रहे थे और भी कई समाज सेवी संस्थाओं से जुडे हुए थे। सुमि ने न जाने कितनी कठिनाइयों से जूझते हुए अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया था । कदम कदम पर मुश्किलों का सामना किया था अब वह अपने कर्तव्यों से  मुक्ति पाकर दीन , दुखियों, ज़रूरतमंदों की सेवा में जी जान से जुट गयी थी ।अपने को समर्पित कर दिया जन सेवा में  जीवन ने उसे कितना गरल पिलाया था वह जन जन मे सुधा बाँट रही थी ।  

अपरिमित  शान्ति और आनंद का अनुभव कर रही थी वह !

मौलिक स्वरचित

सुधा शर्मा

 

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