गलतफहमी – संगीता त्रिपाठी

कैब बहुत तेजी से सड़क पर भाग रही थी, उससे ज्यादा तेज गति से अनु के मन में उथल -पुथल मची थी। बस ईश्वर कुछ मोहलत दे दो, अम्मा को यहाँ ला कर अच्छे से इलाज कराऊंगी..। टैक्सी की गति तेज थी, पर जाने क्यों अनु को वो रेंगती हुई लगी, ड्राइवर को झल्ला कर बोली “भैय्या थोड़ा तेज चलाओ “….।”मैडम जी हम तो तेज चला रहे है, पर आपको जल्दी है, इसलिए आपको तेज गति भी धीमी लग रही “ड्राइवर भी उसकी मनोदशा समझ रहा था। उसने कैब की गति और तेज कर दी।

          अंधेरा छट गया था, ठीक उसी तरह उसके मन में भी दुविधा की चादर हट गई थी, एक निर्णय लेने में उसे थोड़ी देर जरूर हुई, पर आत्मविश्वास बढ़ गया। सूर्य की सुनहरी रश्मियाँ अपनी पूरी छटा के साथ रोशनी फैला रही थी।बचपन में, हर परेशानी में अम्मा की गोद ही उसकी समस्या का निवारण होती थी। अम्मा का आंचल, उसके लिये हमेशा तैयार रहता था। रोहन को अम्मा उतनी अहमियत नहीं देती थी, जितनी उसको देती थी। लड़का -लड़की में भेद -भाव वाले, उस समय में भी अम्मा अनु को ही अहमियत देती थी। आज उसे सब कुछ अच्छे से याद आ रहा था। रोड एक्सीडेंट में जब अनु और रोहन दोनों को चोट लगी, तब अम्मा अनु के लिये ही चिंतित थी। बाबूजी भले रोहन के पास रहे, पर अम्मा ने एक मिनट के लिये भी अनु को नहीं छोड़ा। अम्मा को अथाह प्यार करने वाली अनु अचानक से इतनी बदल क्यों गई, अम्मा समझ नहीं पाई। अनु की उपेक्षा उन्हे दिल का मरीज बना दी। आज जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही थी वो।

                 चाची की बात पर क्यों विश्वास कर, उसने अम्मा से नाता तोड़ा। हर पल साथ देने वाली जननी ने उसे भले जन्म ना दिया, पर जननी का नाम सार्थक किया उन्होंने। याद है अनु को, दूसरे शहर जा पढ़ाई करने के लिये ना बाबूजी राजी थे, ना दादी, तब अम्मा ने ही मोर्चा संभाला था। “अनु के भविष्य के लिये पढ़ाई, बहुत जरुरी है, उसको जाने दीजिये, कह अम्मा भूख हड़ताल पर बैठ गई, तब जा कर बाबूजी, दादी मानी। और आज अगर अनु, एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रही तो सिर्फ अम्मा की बदौलत। वरना एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में लड़की की पढ़ाई पर कौन इतना खर्च करता है। अनु ने भी अम्मा को कभी निराश नहीं किया।



           उसी अम्मा से अनु ने नाता सिर्फ इसलिए तोड़ा, क्योंकि वो अखिल के साथ उसकी शादी के लिये तैयार नहीं थी।अखिल उसका ऑफिस में सहयोगी था। और चाची का दूर का भतीजा था।कब अनु उसके प्यार में गिरफ्त हो गई समझ नहीं पाई। अम्मा को बताया तो उन्हे अखिल जमा नहीं।वो शादी के लिये मना कर दी। चाची बोली, इतना अच्छा घर -वर है, अपनी जायी होती तो क्या मना करती। बस अनु को ये बात लग गई। कहते है ना, कितना भी अच्छा कर लो, पर एक छोटी सी गलती, जीवन भर की अच्छाई ख़त्म कर देती है, इंसान, बस गलती ही याद रखता है अच्छाई भूल जाता है। यही हाल अनु का था। ना के पीछे छुपे कारण को नहीं समझी और रूठ गई।

                       बाबूजी फोन करते रहे, अम्मा बीमार है, तुमको देखना चाहती है, पर जिद पर उतरी अनु, अनसुना कर गई। साल भर बीत गया,।वो तो भला हो सुरेखा मौसी का, जो कल मॉल में मिल गई थी। और असिलियत बता गई। तुरंत घर आ अनु कैब कर घर के लिये निकल गई। कितनी बड़ी उसने गलती कर दी, जिस माँ ने उसे तीन महीने की अबोध उम्र से पाला, कभी अपना आराम और ख़ुशी नहीं देखी, उसी माँ को दूसरे के कहने पर सौतेली समझ बैठी। उसकी अपनी माँ तो तीन महीने की छोड़, चली गई। बाबूजी दूसरा ब्याह नहीं कर रहे थे। उनकी अन्नू को सौतेली माँ सताएगी। पर जब अम्मा यानि माधुरी को देखा, तो उनकी शंका निर्मूल साबित हो गई। और माधुरी ने भी उन्हे कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। नई नवेली माधुरी, उस तीन महीने की बच्ची की माँ पहले बनी, बाबूजी की पत्नी बाद में बनी।वो तो कोई बच्चा नहीं चाहती थी। पर सास की पोते के अरमान ने उन्हे माँ बनने पर विवश कर दिया। भगवान से बेटा ही मांगती थी, जिससे उनकी अन्नू का हक़ बरकार रहे। और परिवार भी पूर्ण हो जाये।

                    अखिल के बारे में अम्मा ने जो जानकारी जुटाई वो अच्छी नहीं थी,अखिल की पहली पत्नी को ससुराल वालो ने दहेज़ के लिये जला दिया था। ये बात अखिल ने भी उसे बताई थी कि उसकी पत्नी ने आत्महत्या कर लिया था, उसको फ़साने के लिये।उसने विश्वास भी कर लिया था। पर अम्मा सब कुछ जान कर शंकित हो उठी..। सच्चाई बता उसका दिल नहीं तोडना चाहती थी। इसलिए उसकी शादी नहीं करने पर अड़ गई थी। अखिल के प्रेम में अंधी हुई अनु वहीं देख रही थी, जो अखिल दिखा रहा था। 



           ईश्वर, मुझे एक मौका दे दो, मेरी अम्मा को ठीक कर दो, मन ही मन अनु कई मनौती माँग रही थी। मेरी अम्मा मत छीनना। टैक्सी अस्पताल पहुंची। ऑपरेशन रूम के बाहर बैठे,चिंता मग्न बाबूजी, पास खड़ा रोहन.. अचानक अनु को देख, …दीदी कह दौड़ कर गले लग बिलख गया। अनु का दिल तड़प उठा बाबूजी और रोहन दोनों बहुत कमजोर लग रहे थे। कैसी बेटी है वो,इस घर को जब जरुरत थी तो, वो सब छोड़ कर चली गई..। बहुत बड़ा पाप हो गया उससे।जो हुआ, सो हुआ अब और नहीं बहकेगी..।बस अम्मा ठीक हो जाये, वो घर की व्यवस्था ठीक कर देगी।

                दरवाजा खुला, डॉ. ने बताया ऑपरेशन ठीक हो गया। बस मरीज में जीने की जिजविषा जाग जाये। अम्मा को ठीक होना ही है डॉ. साहब,। बड़े विश्वास से अनु बोली। बाबूजी और रोहन को घर भेज, अनु ने अस्पताल का मोर्चा संभाला, ऑपरेशन का पैसा तो कल ही भेज दी थी,। अब अम्मा के लिये प्राइवेट रूम की व्यवस्था कर दी। अगले दिन डॉ. ने मिलने की इजाजत दे दी। अम्मा के सामने उनकी लाड़ो खड़ी थी। अम्मा की आँखों से आंसू बहने लगे। कस कर अम्मा का हाथ पकडे अनु , अम्मा के गले लग गई। आँखों की भाषा ने, प्रेम पढ़ लिया।अम्मा समझ गई, उनकी लाड़ो घर लौट आई।

                डॉ. भी हैरान थे, जो अम्मा दवाइयों से ठीक नहीं हो रही थी, वो अचानक तेजी से रिकवर कर रही थी। करती भी क्यों नहीं, उनकी संजीवनी बूटी जो आ गई थी। अम्मा के ठीक होते ही, अनु सबको, अपने पास ले आई। रोहन की छूटी पढ़ाई फिर शुरू हो गई । अम्मा की जी जान से सेवा किया अनु ने। अम्मा और अम्मा की लाड़ो ने फिर रूठा -रूठी और मनुहार की जिंदगी शुरू कर दी। रूठी हुई खुशियाँ फिर दुगनी रफ़्तार से वापस आ गई।

               दोस्तों, कई बार गलतफहमी में हम उन रिश्तों को भुला देते, जो हमारे लिये सर्वोपरि होते है। इसलिए हमें विवेक से काम लेना चाहिए। साथ ही दूसरों के बहकावे में नहीं आना चाहिए।

#कभी_धूप_कभी_छाँव 

                  –संगीता त्रिपाठी

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!