सुख – दुःख – अर्पणा कुमारी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: मैं प्रमिला, आज मैं खुश हूं, बहुत खुश, और हूं भी क्यों ना? आज मैं दादी बनी हूं, वो भी एक नहीं दो-दो पोतियों की। मेरे घर लक्ष्मी एवं सरस्वती का एक साथ आगमन हुआ है। परिचित एवं अस्पताल स्टाफ, सभी मुझे बधाई दे रहे हैं।

ऐसी गहमा- गहमी में पूरा दिन बीत गया। शाम होने को आई,बच्चियां और बहू सो गई,बेटा घर चला गया,तो मैं भी सोने की कोशिश करने लगी,लेकिन मेरे बंद आँखों में नींद नहीं,मेरा अतीत तैर रहा था। वो अतीत जो आज की तरह खुबसूरत नहीं था।

बहुत छोटा  सा परिवार था मेरा- मै, मेरे पति राकेश और मेरा बेटा चंदन। आमदनी ज्यादा नहीं थी, खुशियां अपरंपार थी। मेरा बेटा चंदन पढ़ने में होशियार और संस्कारी था। पढ़ाई खत्म करते ही, उसका चयन देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ तो हम लोग ख़ुशी से झूम उठे। पर शायद मेरी खुशियों को ,मेरी ही नजर लग गई।

एक रात राकेश  सोए तो, सुबह उठे ही नहीं। किशोरवय  चंदन और मेरी दुनिया ही उजड़ गई। काफी दिनों तक मैं अचेत ही रही। धीरे-धीरे चंदन के लिए खुद को संभालI, और जैसे तैसे जिंदगी आगे बढ़ने लगी। मुझे अनुकम्पा के आधार पर, उनके  ही ऑफिस में नौकरी लग गई। पर कहते है ना, अकेली औरत आज भी बहुत लोगों को जिम्मेदारी नहीं, मौका लगती है।

मैंने लोगो की गन्दी नज़र और बकवास बातों का सामना किया। दिन तो कट जाता पर पहाड़ जैसी रात, काटे नहीं कटती। ऐसे कठिन समय में , सबसे बड़ी सहारा बनी -मेरी सासू माँ, जो गांव छोड़ कर, मेरे साथ ही रहने लगी। चंदन अपने कॉलेज में था, और घर में मै , अब अकेली नहीं थी । सासु माँ, अपना दुख भूल कर, हमेशा मेरी हिम्मत बनी रहती।

खैर, समय की सबसे बड़ी खूबसूरती यहीं है कि, वक्त रुकता नहीं। चार साल बीत गए और चंदन को एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लग गई। चंदन के जिद पर, मै और सासू मां, उसके साथ बेंगलुरु चले आए, जहां उसकी नौकरी लगी थी। कुछ सालो बाद चंदन ने हमें आकृति से मिलवाया, जो उसके साथ ही काम करती थी।

आकृति बहुत ही प्यारी बच्ची थी। जल्द ही आकृति हमारे घर बहू बन कर आ गई। खुशियों ने बहुत दिनो के बाद हमारे घर का दरवाजा खटखटाया था। जब भी बच्चों को साथ काम पे जाते, साथ हंसते-बोलते देखती, तो लगता, मेरे घर बहार आ गई। सच में आकृति हमारे घर रौनक बन कर आयी थी।

उसने हमें बहुत सम्मान दिया, बदले में हमने भी उसे बहुत अपनापन और प्यार दिया। सब कुछ बहुत सुंदर और अच्छा था, पर नियति को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन ऑफिस से आते समय, चंदन की बाइक का एक्सीडेंट हो गया। ट्रक ने, उसकी मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी। आकृति पीछे बैठी थी, इसलिए उसे ज्यादा चोट नहीं आई, पर चंदन को मल्टीपल फ्रैक्चर था। मै उसे इस हालात में देख कर अंदर तक काँप गई।

    हे ईश्वर, कोई अनहोनी नहीं होने देना। इस बार मैं सहन नहीं कर पाऊंगी।

फिर शुरू हुआ, ईलाज का अनवरत सिलसिला। लगभग 20 दिनो बाद चंदन को घर ले आये, पर अभी भी वह चलने में असमर्थ था। जवान बेटे को इस तरह बिस्तर पर पड़े देखना, मुझे, अंदर तक तोड़ देता। पर मैं जानती थी, यह समय, टूट कर बिखरने का नहीं, बल्कि चट्टान की तरह मजबूत बनने का था।

मै और आकृति हमेशा उसके साथ रह्ती । इतना शांत और सौम्य, मेरा बेटा, बिस्तर पर पड़ा पड़ा, चिड़चिड़ा हो गया था। कितनी बार तो वो हमें अपने पास बैठने नहीं देता। मै उसे हमेशा समझाती रहती -“समय लगेगा पर सब ठीक हो जाएगा”।

पता नहीं मैं उसे समझाती थी या अपने आप को?
समय की एक और खूबसूरती है-वो बदल जाता है। मेरा भी समय बदला. लंबे समय तक चले दवाइयो और फिजियोथेरेपी से, चंदन ठीक होने लगा। और एक दिन वो भी आया, जब वो अपने पैरों पे चलने लगा। सब कुछ पहले जैसा हो गया, और आज तो खुशियां संभाले नहीं संभल रही। मेरा घर दो-दो परियाँ आई है।
“मैडम आप रो रही हैं”
इस आवाज़ से मेरी आँखे खुली. सामने नर्स खड़ी थी, उसे देख मै मुस्कुरा पड़ी । तभी उसने कहा “कितने अजीब है ना ये आंसू” सुख हो या दुख, आंखो में आ ही जाता है। हां बेटा, मैंने उससे कहा , जीवन तो है ही सुख दुःख का संगम,  सुख और दुःख, एक ही सिक्के के दो पहलु है। बस सुख के दिन छोटे लगते हैं, और दुःख के काटे नहीं कटते।

ऐसे समय में जरूरी है, तो बस सब्र की, क्योंकि हर रात के बाद सुबह जरूर आती  है।

अर्पणा कुमारी , बोकारो

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