सोच – मधु झा

अचानक बिना खबर के आयुषी का आना और आते ही माँ आरती के गले लगकर रोना,,

आरती कुछ भी समझ न पायी मगर इस तरह देखकर उसे समझते देर भी न लगी कि जरूर कोई बात है,,।

थोड़ा स्थिर होने के बाद आयुषी ने बताया  कि किस तरह उसके ससुराल में उसकी सास ताने देती हैं,, हरदम जुबान कड़वी ही रहती है उसके प्रति,,।

आरती सुनकर हैरान रह गयी,,उसने बेटी की शादी इतने अच्छे परिवार में की थी और ऐसा,,, वो सोच भी नही सकती थी,,।

थोड़ी ही देर बाद उसकी बहू मालविका आफ़िस से आ गयी।आयुषी को देखकर बहुत खुश हुई और फ्रेश होकर सबके लिए चाय बनाई,,थोड़ी देर गप-शप करने के बाद रात के खाने के लिये पूछा– “मम्मी जी, डिनर में क्या बनाऊँ,,?”

आरती ने बेमन से कहा–” कभी तो कुछ खुद भी सोच लिया करो,,सब पूछकर ही करोगी क्या,,?”

“तुम्हारी माँ ने इतना भी नही सिखाया ,।”

मालविका मायूस होकर वहाँ से चली गयी और अकेले ही रसोई में डिनर बनाना शुरु किया,,।ये कोई नयी बात नहीं थी।आरती इसी तरह मालविका को बात-बात पर झिड़क देती थी,,कभी भी ये नहीं सोचती कि उसे बुरा भी लगता होगा।

“कहते हैं कि जीभ पर लगी चोट तो मिट जाती है मगर जीभ से लगी चोट कभी नहीं मिटती,,।”




मगर उसकी यही सोच थी कि बहू है तो उसे जैसे चाहे,जितना चाहे झुकाकर या दबाकर रखना ही सही है वरना वो इज्ज़त नहीं देगी,।मालविका भी अभी नयी-नयी आयी थी तो सहमी और चुप रहती थी, कि धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा। एक ननद आयुषी थी जो फोन पर बात करके खुश कर देती थी,,उसे आयुषी से बात करके बहुत राहत मिलती,,इसी उम्मीद में सोचती कि एक दिन सब ठीक हो जायेगा और वो अपनी सास का भी धीरे-धीरे दिल जीत लेगी,,।

मगर आरती जस की तस थी,,।एक बार उसकी ननद आयुषी मायके आयी तो उसने भी ये सब देखकर अपनी माँ को समझाने की कोशिश की मगर आरती पर कोई असर नहीं हुआ,,।

ऐसे ही दिन गुजर रहे थे,।मालविका आफ़िस और घर में तालमेल बिठाकर आरती को खुश रखने की कोशिश में लगी हुई थी,।

मगर आज आरती बहुत परेशान थी,,। अपने पति से सलाह लेकर आयुषी की सास को फोन किया तो उसकी सास  फोन पर भी उलाहने देने लगी,,आरती ने बहुत सलीके और नम्रतापूर्वक कहा कि आयुषी अभी बच्ची है,,गलती हो जाती होगी,,अब कोई भी सब कुछ सीख-समझ कर ही तो दुनिया में नहीं आता है,,।

पढ़ी-लिखी है,, समझदार है,,।

घर और आफ़िस दोनों मैनेज करने में शुरुआत में थोड़ी दिक्कत तो आयेगी ही,,

और उसे घर का काम करने की आदत भी नहीं है,,मगर कोई भी काम करने से परहेज बिल्कुल भी नहीं है,,धीरे-धीरे 

आपके घर का तौर-तरीका सीख जायेगी,

थोड़ा प्यार से समझाकर कहिये तो सब सीख जायेगी,,।




फोन रखकर आरती ने आयुषी को सामान पैक कर लेने को कहा क्योंकि शाम को आयुषी के सास-ससुर और पति लेने आ रहे थे ,,।

आरती बेटी को लेकर काफ़ी परेशान लग रही थी तो मालविका ने आज आफ़िस से छुट्टी ले ली,, मेहमान के लिये तैयारी जो करनी थी,। खाने में भी तरह-तरह के व्यंजन बनाये,,।आरती से पूछ-पूछकर सब किये जा रही। आज मालविका ने एक बात गौर किया कि आरती सब कुछ बड़े प्यार से ,बड़ी शांति से समझाकर कह रही थी ,एक बार भी कटु वचन नहीं कहा,

उनके व्यवहार में बहुत तब्दीली नजर आ रही थी,,।

ये देखकर मालविका और आयुषी मन ही मन बहुत ख़ुश हो रही थी मगर जता नहीं रही थी ,।आरती पूरी तरह बदल चुकी थी और मन ही मन पश्चात्ताप भी था।

खैर,,शाम को सब आ गये,, आते ही आयुषी की सास ने आयुषी को बड़े प्यार से गले से लगा लिया,,उनके व्यवहार को देखकर जरा भी नही लग रहा था कि उन्हें आयुषी से कोई शिकायत भी है,,।

आरती हैरान-परेशान थी, मगर आयुषी और मालविका एक-दूसरे की तरफ आँख दबाकर हँस पड़ी,साथ ही सभी के ठहाके से पूरा घर गूँज उठा,,।

अब आरती समझ चुकी थी कि ये सब उसी के लिए नाटक रचा गया था।आरती को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने मालविका को गले लगाकर कहा–

“मुझे माफ़ कर दे बेटा,,” मालविका की भी आँखें नम हो गयी और रूँधे गले से कहा– ये सब आयुषी दीदी की प्लान था,

और इस प्लान में उसके ससुराल वाले भी शामिल थे,,।”

सच है,, कोई भी ख़ुशी या दर्द, जब ख़ुद पर गुजरती है ,तभी एहसास होता है,,




तभी उस भाव को हम महसूस कर पाते हैं,,।

मधु झा,,

स्वरचित,,

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