सोच – आरती झा”आद्या” 

ओह हो माँजी.. ये क्या। आपको भी ना चैन नहीं है। क्यूँ किया आपने ये सब..बहु साक्षी तौलिया ले बाथरुम में जाते ही बोली। 

ठीक है ना बेटा तुम्हारा थोड़ा काम आसान हो गया.. सासु माँ सुधा ने कमरे से ही कहा। 

लेकिन माँजी अब आप आराम करे। मैं और कमली सारे काम कर लिया करेंगे.. कमरे में आती हुई साक्षी ने लाड़ से कहा। 

माँजी आज आप कालोनी के वरिष्ठ नागरिक दिवस के आयोजन में ये गुलाबी साड़ी डालिए। पापा जी भी खुश हो जाएंगे आपको गुलाबो बनी देखकर। सुधाकर भी पापा जी के लिए गुलाबी कुर्ता लेकर आ रहे हैं।मैचिंग मैचिंग हो जाएगा .. साक्षी ने सासु माँ की चुटकी ली।

क्या बेटा तुम भी। ये उम्र है क्या इन सब बातों की.. सुधा अपने रक्तिम हो आए कपोलो को साक्षी से छुपाने की कोशिश में कमरे से निकलते हुए कहा। 

मैं कुछ नहीं सुन रही। मैं ही तैयार करुँगी आज आपको। आप तो अभी से ही गुलाबो हुई जा रही हैं.. सुधा को पीछे से पकड़ दर्पण के सामने बिठाती हुई साक्षी ने कहा। 

ये देखो सुधा बिचारी.. सुधा को देख रीता ने कहा। 

क्यूँ क्या हुआ.. कितनी खूबसूरत लग रही है। फुर्सत में मैं तो पूछने वाली हूँ इस खूबसूरती का राज.. मिसेज सिंह ने कहा।

क्रीम पाउडर से चेहरे का दर्द छुप सकता है। दिल का दर्द कोई पाउडर कम नहीं कर सकता ..  रीता ने दार्शनिक की तरह कहा। 

आओ सुधा.. तुम्हारी ही चर्चा हो रही थी। इस उम्र का दुःख दर्द हम से नहीं बाँटोगी तो किससे बाँटोगी….रीता अपने ही सुर में बोले जा रही थी। 




कौन सा दर्द.. सुधा हैरान सी कभी रीता तो कभी अन्य सहेलियों को देख रही थी। 

सुना था मैंने सुबह.. मैं भी उस समय स्नान के लिए गुसलखाने में ही गई थी। तीसरी मंजिल और दूसरी मंजिल.. हमारी तुम्हारी कौन सी बात छुपी रहती है.. रीता का अलाप बंद होने का नाम नहीं ले रहा था और सब उसकी बातों से आनंद लेती हुई मुस्कुरा रही थी। 

पर तुमने सुना क्या है? ये तो बताओ.. दिमाग पर जोर डालने पर भी उसे कुछ याद नहीं आ रहा था। 

ओह हो माँजी.. ये क्या। आपको भी ना चैन नहीं है। क्यूँ किया आपने ये सब..रीता ने सुबह साक्षी द्वारा कहे गए शब्दों को हूबहू परोस दिया। 

सुधा रीता के बोलने के अंदाज पर जोर से हँस पड़ी। 

अब तुम अपनी हँसी में बात छुपाने की ऐक्टिंग मत करना सुधा। यूँ भी तुम बहू के द्वारा दिये सारे कष्ट अकेले ही झेलती हो.. रीता सुधा को उकसाने के अंदाज में बोली। 

यही होता है आधी अधूरी बात सुनने का नतीजा। मुखौटे के पीछे का चेहरा सामने आ जाता है। खैर कान के कच्चे लोगों को पूरी बात बताने का भी क्या फायदा। ये तो सिर्फ और सिर्फ मेरी बहू का अपमान ही होगा लेकिन ये जरूर कहूँगी कि वरिष्ठ नागरिक दिवस मना रही हो तो थोड़ा बड़प्पन भी दिखाओ। नुक्ताचीनी की आदत बंद करो। बहू को बेटी ना भी समझो तो चलेगा लेकिन बहू समझ कर ही कद्र करने का प्रण ले लो। एक सीक्रेट और बताती हूँ.. ऐसा करने पर घर की सम्राज्ञी भी बनी रहोगी और मन की शांति भी भंग नहीं होगी । जीवन कभी खुशी कभी गम का ही नाम है इसीलिए जितनी खुश रह सको उतना बढ़िया। 

भई मेरा आज का प्रवचन समाप्त हो गया.. मानना ना मानना तुम लोग का काम है।अब चलो सब पार्टी एंजॉय करते हैं बोलती हुई सुधा अपनी बहू साक्षी की ओर मुस्कुराती हुई बढ़ गई। 

और आंटी मैं अपनी युवा पीढ़ी के लिए भी कहूँगी कि केवल वरिष्ठ दिवस के आयोजन से नहीं चलेगा। हमें भी बुजुर्गवार पीढ़ी के अनुभवों की इज्जत और आदान प्रदान करना चाहिए.. साक्षी जो कि रीता की बहू के साथ सबके लिए जूस लेकर आई थी, उनके पास आती हुई बोली। 

5वां_जन्मोत्सव 

आरती झा”आद्या” 

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