सिर्फ अपने लिए नहीं….. – लतिका श्रीवास्तव 

डॉक्टर की बातें रामदयाल जी के दिमाग में भूचाल पैदा कर रही थीं कि एन मौके पर अगर आप यहां नहीं आते तो हार्ट अटैक हार्ट फेल में बदल गया होता!!….रमा ने संक्षिप्त में बताया था कि आज अदिति और अमीश के कारण ही फ्लाइट बुक हो पाई और आपको यहां लाना संभव हो पाया……..!!सारी व्यवस्थाएं करवा कर दोनों चले गए थे… उन्हें देख कर पापा का गुस्सा ना बढ़ जाए इसलिए…!
अदिति आज दुल्हन के लिबास में बहुत खूबसूरत लग रही थी ….सुंदर सी नथ में उसका खूबसूरत चेहरा सचमुच में चांद सा ही लग रहा था….अमीश उसके बगल में खड़ा अपने आपको भाग्यशाली समझ रहा था…मां का आशीर्वाद लेने के बाद दोनों जैसे ही पिता रामदयाल जी की तरफ बढ़े रामदयाल जी तुरंत अपने कक्ष की ओर चले गए …..

अदिति के चांद से चहरे पर उदासी के बादल देख अमीश ने उसका हाथ थाम लिया और आंखों ही आंखों में दिलासा सा देते हुए कदम पिताजी के कक्ष की ओर बढ़ा दिए….पर ये क्या!!!पिताजी ने दोनों को आते देख कर कक्ष का दरवाजा ही बंद कर लिया था और अंदर से जोर जोर से कहने लगे…. मैं तुम लोगो का मुंह भी नही देखना चाहता हूं….कभी मुझसे मिलने की कोशिश नहीं करना…!
…रामदयाल जी सख्त सिद्धांतो से बंधे इंसान थे ऑफिस में भी और अपने घर में भी ढेरो नियम कायदे थे उनके वो खुद भी बहुत सख्ती से उनका पालन करते थे और सभी से करवाते भी थे…..उनकी पत्नी रमा अपने पति के सिद्धांतो की पूरी इज्जत करती थी और हमेशा खुद भी और अपनी दोनों बेटियों से भी उनके सिद्धांतो के अनुरूप आचरण करना सिखाती थी….!

दोनों बेटियां पिता की लाडली थी…पिता का दिल से सम्मान ही नही करती थीं बल्कि हमेशा उनकी इच्छा अनुसार ही व्यवहार करती थीं उनकी हर ख्वाहिश और अपेक्षाएं पूरी करने को तत्पर रहतीं थीं । उनकी शिक्षा दीक्षा और परवरिश में रामदयाल जी ने कोई कसर नहीं रखी थी…..उच्च अधिकारी थे वो तमाम सुख सुविधाओं से भरपूर था उनका घर….कोई कमी नही थी घर में….सब कुछ रामदयाल जी के मनमुताबिक ही चलता रहा था..अपनी कही किसी बात के लिए ना सुनना उनके बर्दाश्त से बाहर था..!
अदिति और अनामिका दोनो ही बेटियां गुणों का भंडार थी पढ़ाई लिखाई में अव्वल तो थी हीं स्पोर्ट्स में गीत नृत्य में स्पीच डिबेट सभी विधाओं में पारंगत थीं……रामदयाल जी का गर्व थी वो समाज और घर परिवार में उनकी बेटियों का उदाहरण दिया जाता था।अदिति कॉलेज की पढ़ाई के लिए बाहर चली गई और धीरे धीरे उसका घर आना जाना कम होता गया…..उसने भी सभी सहपाठियों की तरह जॉब के लिए आवेदन कर दिया …..पिता से इस बारे में चर्चा नहीं कर पाई ..सोचा जॉब मिल जायेगा तब सरप्राइस देगी पापा खुश हो जायेंगे।



मेधावी अदिति को तुरंत जॉब मिल गया वो घर आई…. मां से जॉब की खबर साझा कर ही रही थी कि रामदयाल जी आ गए और ये सुनकर आग बबूला हो उठे जॉब के लिए क्यों एप्लाई किया तुमने…! जॉब करने के लिए मैंने अपनी बेटी को नहीं पढ़ाया लिखाया है…!कोई आवश्यकता नहीं है जॉब बॉब करने की….नाराज होते हुए वो तुरंत ही चले गए।पापा सुनिए तो ….सबसे अच्छा करियर मेरा ही है सबसे पहले मुझे जॉब ऑफर मिला है…अब तो मुझे कुछ करने का मौका मिल रहा है….!

अदिति कहती रह गई पर पापा ने उससे कोई बात ही नही की..!बेटी ने बिना उनकी इजाजत के जॉब के लिए एप्लाई क्यों किया ..!!ये असहनीय था उनको…!!….मां आप समझाओ ना पापा को मैं जॉब क्यों नहीं कर सकती ..इसमें बुरा क्या है..!क्या पापा को मुझ पर विश्वास नहीं है..!
..मां रमा देवी क्या कहती उनके समझाने से क्या वो समझ जायेंगे …!

आज तक वो अपने पति की हर बात बिना किसी तर्क के शब्दशः मानती आई हैं…!बेटी से नौकरी करवाना ….बेटी का बाहर जाकर पैसा कमाना ..देखो बेटी का पैसा खा रहे हैं…सब यही कहेंगे…..!!पति के उसूलों के खिलाफ था किसी भी स्थिति में वो इसके लिए तैयार नहीं होंगे वो अच्छी तरह जानती थीं…!पर अपनी प्रतिभावान बेटी का प्रश्न भी उन्हे वजनदार लग रहा था…!आखिर इसमें बुराई क्या है..?
अदिति ने अपनी तरफ से हर कोशिश की पापा को मनाने और समझाने की…पापा टस से मस नहीं हुए…निराश फिर वो चली गई ….पर जॉब नहीं कर पाई थी वो…पापा की इच्छा उसके लिए सर्वोपरि थी ..पर जॉब छोड़ने से उसका दिल टूट सा गया था…!पर रामदयाल का अहम संतुष्ट हो गया था अब वो बेटी से फिर प्रसन्नता से बात करने लग गए थे।….
पर अब अदिति के दिल में पापा के लिए उतना सम्मान नही रह गया था…इसीलिए जब उसने और अमीश ने शादी करने का निर्णय लिया तो अपने पापा के सख्त ऐतराज के बावजूद भी उसने निर्णय नहीं बदला ….रामदयाल जी ने उसे अपने घर से बाहर कर दिया था और सभी तरह के संबंध खतम कर लिए थे…!पर मां के साथ उसके संबंध बने हुए थे ….

आज वो मौसी की बेटी की शादी में यही सोच कर आई थी जहां रामदयाल जी और रमा भी आमंत्रित थे…!पूरी तरह से सज धज कर वो पापा से मिलने और मनाने की कोशिश में थी पर….आज पापा ने फिर से उसका दिल तोड़ दिया था…!
रिटायरमेंट के बाद अब रामदयाल जी घर में कैद से हो गए थे ….ऑफिस के रौबदाब के आदी उन्हें घर काट खाने दौड़ता था….कभी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ बैठकर बातचीत की ही नहीं थी….सब उनसे भय खाते थे …..



…..जब पद पर थे तब हाल चाल लेने वालों की भीड़ लगी रहती थी ….उनके रौब गांठने वाले स्वभाव के कारण अब पड़ोसी क्या घर के लोग भी पास बैठने से कतराने लगे थे….नितांत अकेले अपने विशालकाय सर्वसुविधायुक्त कक्ष में लेटे हुए रामदयाल जी आज बहुत असहाय से अकेलापन महसूस कर रहे थे…
……..विगत स्मृतियां आज जैसे विकराल रूप धारण कर कर के उनको उन्हीं के बुरे व्यवहार की याद दिला रही थी विशेष कर अदिति के साथ की गई बेरुखी और तानाशाही और फिर भी उसका अपने पापा के प्रति लगाव मिलने की ललक याद कर कर के उनकी आत्मा उन्हें धिक्कार रही थी….

अनामिका तो अब पापा से बात ही नहीं करना चाहती थी परंतु अपने कार्य व्यवहार से असम्मान प्रकट नहीं करती थी….अभी पापा की तबियत खराब होने पर पूरी जिम्मेदारी और मुस्तैदी से उसने पापा की सेवा की थी कोई समाज या रिश्तेदार काम नहीं आया था….पत्नी रमा सच्चे अर्थों में अनुगामिनी ही रही ….उन्होंने कभी उसकी इच्छा या सम्मति पूछी ही नहीं …

समझी ही नहीं..बेटियों के प्रति उनकी तानाशाही को भी रमा जज्ब करती रही….पर शायद इसीलिए उनसे तटस्थ होती चली गई….!सच में आज तक वो सिर्फ अपने लिए अपनी मर्जी से जिंदगी जीते आए हैं….ये जो अपने हैं उन्हें भी पराया कर दिया है….!
….रामदयाल जी के दिमाग में मानो भूचाल आ गया था…..

अनामिका बेटी यहां आओ जरा..अत्यधिक बेचैनी महसूस होने पर उन्होंने आवाज लगाई …..जी पापा अनामिका चिंतित सी तुरंत आ गई क्या बात है पापा तबियत ठीक नहीं लग रही है क्या…डॉक्टर को फोन करूं क्या….!!एक साथ ढेरों चिंताएं ….. नहीं बेटा डॉक्टर नहीं ठीक कर पाएगा मेरी बीमारी ….वो तूने जॉब के लिए अप्लाई किया था ना क्या हुआ उसका …

पापा का प्रश्न सुनकर अनामिका घबरा ही गई … नहीं नहीं पापा मैं कोई जॉब नहीं करूंगी….आपकी जैसी इच्छा है वैसा ही करूंगी….मेरी बेटी मैने बहुत तानाशाही की तुम लोगो के साथ अब और नहीं …..अदिति का दिल दुखाया….. अमीश को नहीं समझ पाया……. रमा अपनी पत्नी के जज्बातों से अनजान रहा ….हमेशा अपनी इच्छा अपनी ख्वाहिश को प्राथमिकता देता रहा किसी भी कीमत पर अपनी ज़िद मनवाता रहा ….पर अब तुम सबकी इच्छा ही मेरी इच्छा है जो तुम लोग कहोगे अब से मैं वैसा ही करूंगा….कंठ अवरुद्ध सा हो गया उनका….
…………. नहीं जैसा हम लोग कहेंगे वैसा नही बल्कि अब हम सब मिलकर जैसा सोचेंगे वैसा ही सब करेंगे….रमा ने तुरंत पानी का गिलास भरकर उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा तो रामदयाल जी ने अपनी पत्नी का हाथ पकड़ के अपने पास ही बिठा लिया ..हां रमा अदिति को भी बुला लो अमीश के साथ सबके साथ मैं अपनी ये नई जिंदगी नई सोच के साथ शुरू करना चाहता हूं…!
#संस्कार
लतिका श्रीवास्तव

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