श्रद्धांजलि (भाग 1) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

विवाह का प्रसन्नता एवं उमंग भरा अवसर। नीरजा की दीदी के बगल में खड़ी रुद्रा ने जब दूल्हे के साथ खड़े वरदान को देखा तो जैसे उसका दिल अवश हो गया। नीरजा की बहन की शादी में परिहास, शरारत और मस्ती के लिये देखे गये अनेक स्वप्न, तमाम योजनायें धराशाई हो गईं, वह तो मुग्धा बन बार बार वरदान की मुस्कराती ऑखों से छिपती फिर रही थी।

” कोई हर पल उसे निहार रहा है ”, इस बात ने उसकी स्वाभाविकता छीन ली।

जूते चुराने की योजनायें बन रहीं थीं। सभी सहेलियॉ और बहनें  जीजाजी के जूते ” कैसे मिलें “यह सोंचने में व्यस्त थीं, इसी सम्बन्ध में आपस में बात कर रही थीं लेकिन वह तो जैसे कुछ न सुन रही थी और न ही समझ रही थी। वह क्या करे, उसका तो अपना मन ही चोरी हो गया था।

“क्या बात है रुद्रा, हम लोग जूते चुराने की योजना बना रहे हैं और तुम कुछ बोल नहीं रही हो.?”

“ लगता है हमारी रुद्रा का दिल बारात में किसी ने चुरा लिया है।“ नीरजा ने चुटकी ली।

“ तुम लोग भी……. ।“रुद्रा शर्मा गई – ” कुछ भी बोलती रहती हो। मेरा दिल मेरे पास है, निश्चिंत रहो।“

“ फिर जीजाजी के जूते ढ़ूढ़ने में हमारी मदद करो। अंदर बाहर सब जगह देख लिया, मिल ही नहीं रहे हैं।“लड़कियों का मायूस स्वर।

“ अच्छा, तुम लोग एक बार फिर से अंदर अच्छी तरह देखो, मैं बाहर देखती हूँ ।“

“हॉ यार, जूते तो हर हाल में ढ़ूंढने ही पड़ेंगे, वरना हम हार जायेगे। बात नेग की नहीं है, हम सबकी प्रतिष्ठा की है।” नीरजा का उलझन भरा स्वर।

“ ऐसे कैसे हार जायेंगे हम? जूते तो हम ढ़ूँढ़ कर रहेंगे। तुम बाहर देखो रुद्रा, हम भीतर देखते हैं।” एक दूसरी लड़की ने कहा।

जैसे ही रुद्रा बाहर आई सामने ही वरदान दिख गया। उसे देखकर ही मुस्कराते हुये पास आ गया – ” भइया के जूते ढ़ूढ़ रही हैं ना ?” रुद्रा ने स्वीकृति में सिर हिला दिया।

“ लगता है आपके लिये अपने ही दोस्तों और भाइयों से गद्दारी करनी पड़ेगी। आप यहीं रुकिये, मैं अभी आता हूँ।” वही मुस्कराती चमकदार ऑखें।

थोड़ी देर बाद एक अखबार में लिपटे दूल्हे के जूते लिये वरदान सामने था –“ ये लीजिये और जल्दी से अंदर जाइये। सावधानी से जाइयेगा, किसी ने देख लिया तो मेरी मुसीबत हो जायेगी। ” रुद्रा ने मुस्कराकर वरदान को देखा और दुपट्टे में जूते छुपाये विजयी मुस्कान लिये अंदर आ गई।

“ मिले?” रुद्रा ने बाहर से आकर  पूँछा।

“ नहीं यार,” हताशा भरा स्वर- “ लड़के देखो कैसे व्यंग्य से मुस्करा रहे हैं?”

“ मुस्कराने दो, अभी पता चल जायेगा कि किसमें कितना दम है? ये लो।“

रुद्रा ने जूते निकालकर सबके सामने रख दिये तो सहेलियाँ खुशी से उछल पड़ीं –“अरे वाह, कहाँ से मिले तुम्हें?”

“तुम लोग आम खाओ, पेड़ गिनने के चक्कर में न पड़ो।“ ‌एक बार फिर वरदान की सूरत नयनों में उतर आई।

मण्डप में दोस्तों के साथ बैठे वरदान की मन्द स्मित रुद्रा को बार बार गुदगुदा रही थी। मूक संभाषण, नजरों का आदान प्रदान। जूतों के नेग के समय दोस्तों के साथ वरदान भी अड़ गया – ” तुम लोगों के पास भइया के जूते हैं ही नहीं, नेग किस बात का?अगर हैं तो दिखाओ।“

लड़कियाँ विजय के उन्माद में इठला रहीं थीं –“ दिखा तो देंगे लेकिन अभी तो हम केवल नेग माँग रहे हैं फिर सभी दोस्तों को जूतों की मुँह दिखाई में एक एक हजार रुपये देने पड़ेंगे।“

“ हमारी सुरक्षा व्यवस्था इतनी सुदृढ़ है कि तुम लोगों को जूते मिल ही नहीं पायेंगे, इसलिये बहानेबाजी है यह सब।“

“आप लोग हमारी शर्त मानने को तैयार हों तो हम दूर से अभी दिखा सकते हैं, लेकिन मिलेंगे तभी जब हमारा हिसाब बराबर हो जायेगा।“

“ हमें मंजूर है।“ सभी ने एक स्वर में कहा।

 और लड़कियों ने जब मुस्कराते हुये एक डिब्बा खोलकर जूते दिखा दिये तो सबके साथ नीरजा के जीजाजी भी चौक पड़े-

” हममें से किसी ने गद्दारी की है, कौन है वो गद्दार ?” लड़के एक दूसरे का मुँह देख रहे थे। आशा के विपरीत वे सब बाजी हार चुके थे।

“ कौन हो सकता है ? सभी तो यहीं हैं।“

नीरजा के जीजाजी ने तुरन्त नेग के पैसे निकालकर दे दिये। सभी दोस्तों ने जब पैसे दिये तो नीरजा ने मना कर दिया –

” यह तो एक केवल एक परिहास था। हमें आपसे पैसे नहीं चाहिये, केवल शुभ अवसर का नेग चाहिये था, वह जीजाजी ने दे दिया है।”

” यह कैसे हो सकता है? हम लोग शर्त हार चुके हैं।” लड़के मान नहीं रहे थे।

लड़कियाँ इतरा रहीं थीं – तब तो हम यह पैसे और भी नहीं ले सकते ताकि आप सबको अपनी यह हार हमेशा याद रहे कि कोई तो होगा जो हमारे नैन बाणों से घायल होकर आपसे गद्दारी कर बैठा है।“

विदाई की भीड़ में किसी ने रुद्रा की हथेली के मध्य कुछ दबा दिया। अलग ले जाकर देखा तो छोटे से टुकड़े में जैसे पूरा संसार समा गया था – “आपके जीवन में हमेशा के लिये प्रवेश की अनुमति चाहता हूँ। उत्तर “हाँ“ या ” ना” में अभी दीजिये। नीचे वरदान ने अपना मोबाइल नम्बर लिख दिया था।

रुद्रा के पास तो मोबाइल था ही नहीं हालांकि पापा ने वायदा किया था कि यदि इस बार उसके अच्छे नम्बर आयेंगे तो वह उसे मोबाइल दिलवा देंगे। रुद्रा ने ऑखों के काजल वाली पेंसिल से उसी कागज पर ”हॉ“ लिखकर अपने स्कूल का नाम भी लिख दिया। उसे ऐसा अनुभव हो रहा था कि जैसे इस छोटे से टुकड़े की वह वर्षों से प्रतीक्षा कर रही है।

दूसरे दिन छुट्टी के समय स्कूल के गेट पर वरदान को देखकर मुस्करा दी क्योंकि उसे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास था कि आज वरदान जरूर आयेगा, इसलिये मम्मी के मना करने के बाद भी वह आज स्कूल आ गई थी।

सुबह मम्मी कितना मना कर रही थीं -“ इतने दिन से शादी की भाग दौड़ में कितना थक गई है, आज स्कूल जाने की क्या जरूरत है? एक दिन आराम कर लो।“

लेकिन वह न मानी – ” वैसे भी बहुत छुट्टियॉ हो गई हैं नीरजा भी अभी कई दिन तक नहीं जा पायेगी तो मैं ही चली जाती हूँ।“

” जो तुम्हारी मर्जी हो करो।”

नित्य ही स्कूल के गेट पर वरदान को खड़े देखकर रुद्रा प्रसन्नता से खिल उठती। कभी वरदान के आग्रह से मजबूर होकर स्कूल का नागा भी कर देती। नीरजा के समझाने का भी कोई असर न पड़ता – ” उपस्थिति कम हो गई तो स्कूल वाले इम्तहान नहीं देने देंगे, उस समय वरदान का इश्क काम नहीं आयेगा।”

” मेरी उपस्थिति लगवा दिया करो। ” नीरजा के लिये रोज यह कर पाना असम्भव था क्योंकि कोई टीचर से कह देगा तो उसकी भी मुसीबत हो जायेगी, फिर भी वो कभी कभी रुद्रा की उपस्थिति लगवा ही देती।

रुद्रा और वरदान के मध्य सम्बन्धों की डोर मजबूत होने लगी। रुद्रा का जब मन होता वह अपने लैंड लाइन से वरदान के मोबाइल पर बात कर लेती लेकिन वरदान ऐसा नहीं कर पाता था। उसने कहा भी –” मैं तुम्हें एक मोबाइल उपहार में दे देता हूँ, जिससे जब मेरा मन हो बात तो कर पाऊँगा।“

“ नहीं वरदान, मैं उसे कैसे छुपा पाऊँगी, कुछ दिन रुक जाओ, रिजल्ट बाद तो पापा मुझे मोबाइल ला ही देंगे।“ प्यार के झूले में दोनों आने वाले खतरे से अनजान सुख से झूल रहे थे।

रुद्रा की परीक्षायें हो गईं थी, अब वह अपने रिजल्ट का इंतजार कर रही थी। उसे मालुम नहीं था कि परीक्षाओं  के पहले ही अजय सिंह ने रुद्रा और वरदान को एक साथ देख लिया था। पहले तो सोंचा कि बच्चे साथ पढ़ेंगे तो हो सकता है कि मात्र दोस्ती हो इसलिये उन्होने बिना किसी से कुछ कहे दोनों के सम्बन्ध में पूरा पता लगाया। यहाँ तक कि वरदान के घर –  परिवार के बारे में भी पूरी जानकारी की।

रुद्रा की मम्मी महिमा तो गुस्से से पागल हो गईं –” मैं अभी बुलाकर उससे पूँछती हूँ कि यह सब क्या है?”

“ बच्चे के साथ बच्चा बनने की बेवकूफी मत करो, शान्ति से काम लो। तुम परेशान मत हो, मैं सब ठीक कर दूँगा।“

“ क्या करेंगे आप? कोई जरूरत नहीं आगे पढ़ाने की।” महिमा सिंह क्रोध से उबल रहीं थी –”आप के दुलार ने ही इसे बिगाड़ दिया है। लड़का देखिये और तुरन्त शादी करके फुरसत कीजिये।“

अजय सिंह ने महिमा को कन्धे से पकड़ कर पास बैठाया –” तुम बहुत जल्दी आवेश में आ जाती हो। मेरी बात सुनो, मैंने सब सोंच लिया है। रुद्रा अभी बहुत नादान है, उसे अपने अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं है लेकिन हम लोग तो उसके माता पिता हैं, उसकी जिन्दगी कैसे बरबाद कर सकते हैं?उसने गलती की है लेकिन वह इतनी बड़ी नहीं है कि हम उसे सुधार न सकें। इस नादान उमर में न तो हम उसकी शादी कर सकते हैं और न ही उसकी पढ़ाई छुड़वाकर उसका भविष्य बरबाद कर सकते हैं।“

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श्रद्धांजलि (भाग 2) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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