शेरनी बिटिया – वीणा सिंह  : Moral Stories in Hindi

शुभी बेटा दरवाजा खोलो.. क्या बात है मुझे चिंता हो रही है. शुभी धड़ाम से दरवाजा खोल बाहर आई..गोरा चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ लाल लग रहा था.. पापा सूरज के गले से लिपटी शुभी बोलने लगी जिस इंसान ने मेरी मां के मरने पर मुझे हॉस्पिटल में लावारिस छोड़ दिया ये कहकर किसी जरूरतमंद को दे देना वो इंसान दो दिन से लगातार हॉस्पिटल का चक्कर लगा रहा था

मुझसे मिलने के लिए.. आज मैने उसे सुना दिया है अच्छे से और कहा है दुबारा अगर इस हॉस्पिटल के इर्द गिर्द दिख गए या मेरा नाम अपनी गंदी जुबान पर लाया तो पुलिस तुमसे बात करेगी… ठीक किया न पापा.. देख रहे हैं न पापा #जाने कब जिंदगी में कौन सा मोड़ आ जाए.…

सूरज ने शुभी का माथा चूमते हुए कहा बहुत अच्छा किया मेरी शेरनी बिटिया… हॉस्पिटल वालों के लिए भले तू डॉक्टर हो पर मेरी तो शेरनी बिटिया हो.. तभी हॉस्पिटल से कॉल आ गया और शुभी पापा को बाय बाय करते निकल गई… चलो थोड़ा मूड चेंज हो जायेगा..

सूरज बिगत स्मृतियों में खो गया…

          बड़ी दीदी सुनयना और मेरे बीच पांच वर्ष का फासला था पर मुझे दीदी भाई न समझकर अपने बच्चे सा प्यार दुलार करती थी.. कुछ भी अच्छा खाने का बनता दीदी की कोशिश रहती अपना हिस्सा भी मुझे खिला दे… ननिहाल जाने पर मामा मौसी नानी जो भी पैसे हम दोनो को आते समय देती दीदी अपने पैसे से मेरे लिए कुछ न कुछ खरीद देती..

कुछ गलती करता तो मुझे बचाने के लिए अपने सर ले लेती और डांट सुन लेती…मेरा होमवर्क करवाती फिर खुद की पढ़ाई करती…दादा जी की। जिद्द पर दीदी की शादी कम उम्र में हीं हो गई..उनकी अंतिम इच्छा थी दीदी की शादी देखना..दीदी की शादी हुई तो मैं बहुत अकेला और दुःखी हो गया था…

हमेशा  आंखें भरी रहती..संयोग से कुछ दिनों बाद मेरा एडमिशन इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया… उस समय मोबाईल फोन की सुविधा नहीं थी.. लैंड लाइन या फिर बूथ से बात हो पाती थी… दीदी की आवाज सुनने के लिए मैं बेचैन रहता.. मौका मिलते हीं दीदी मुझे फोन करती…

                  दीदी एक प्यारे से बेटे की मां बन गई थी.. मैं खुशी से झूम उठा.. दीदी बोली जब तुम्हारी छुट्टी होगी तभी मुन्ने को लेकर आऊंगी.. मेरी पढ़ाई खत्म होने में ज्यादा दिन नहीं बचें थे, और मेरा कैंपस सिलेक्शन हो गया था विप्रो कंपनी में… छुट्टियों में दीदी मुन्ने को लेकर आई.. मैने खूब मस्ती की.. समय कैसे बीत गया पता हीं नहीं चला…

                 मैं पढ़ाई खत्म कर नौकरी करने लगा..

              दीदी दुबारा मां बनने वाली थी.. इस बार बहुत सारे कॉम्प्लिकेशन डॉक्टर ने बताया था.. बेड रेस्ट और पौष्टिक आहार लेने और टाइम से चेकअप के लिए बोला था.. मम्मी पापा दीदी और मुन्ने को अपने पास लाने के लिए उसकी सास ससुर और जीजाजी से बहुत मिन्नतें की पर उन्होंने साफ इंकार कर दिया.. ये सब डॉक्टर के चोंचले हैं हमने तो नौवें महीने तक घर का सारा काम करते हुए स्वस्थ्य बच्चे को जनम दिया..

                       मम्मी का फोन आया दीदी की तबियत सीरियस है खून की कमी है.. मैं अगले दिन का फ्लाइट लेकर आया.. दीदी की जान शायद मेरे से मिलने के लिए अटकी थी.. दीदी सुंदर सी गुड़िया को जनम देकर दुनिया से जा चुकी थी.. मैं मम्मी पापा और मुन्ने को किसी तरह घर पहुंचाया..

पड़ोस में रहने वाली महिलाओं को सुपुर्द कर हॉस्पिटल पहुंचा… दीदी की बॉडी को औपचारिकता के बाद जीजाजी अपने घर ले गए अंतिम संस्कार के लिए… नर्स आपस में बातें कर रही थी घर वालों की लापरवाही से इसकी जान गई है.. दुःख और गुस्सा पर काबू पाने की कोशिश कर रहा था

क्योंकि मम्मी पापा मुन्ना और एक नन्ही सी जान के सामने मेरा दुःख कम था..    जीजाजी ने हॉस्पिटल के स्टाफ से साफ साफ कह दिया इस मनहूस को मैं अपने साथ नही ले जा रहा हूं.. किसी जरूरतमंद को दे दो या अनाथालय में डाल दो.. पुलिस भी आ गई पर जीजा अपनी बात पर अड़े थे…

तभी मैंने उसे कानूनन गोद लेने का फैसला कर लिया… कानूनी प्रक्रिया खतम होने के बाद मैने उस बच्ची का नाम रखा शुभी.. मुन्ने को जीजा जबरदस्ती ले गए..

                 मैं मम्मी पापा और शुभी को लेकर पुणे आ गया… नवजात बच्ची को हम तीनों ने संभाला.. मम्मी पापा भी शुभी में इतना व्यस्त रहते की दीदी को याद कर कभी कभी हीं दुखी होते… मैं भी ऑफिस से घर जल्दी आने के लिए बेचैन रहता.. शुभी तीन साल की हो चुकी थी.. मुझे पापा कहती..

प्ले स्कूल में उसका नाम शुभ्रा सूरज सिन्हा लिखवाया… मेरे लिए भी रिश्ते आ रहे थे.. पापा मम्मी भी मेरी शादी कर निश्चिंत होना चाहते थे… बहुत रिश्ते देखने के बाद मुझे रचना पसंद आई.. मैने शुभी के विषय में सब कुछ सच सच बताया और कहा अगर बेटी के रूप में स्वीकार्य हो तो आगे बढ़ो.. रचना मेरी पत्नी बनकर आ गई.. उसने शुभी के साथ हमेशा मां बनकर खड़ी रही… दो साल बाद रचना ने एक बेटे को जनम दिया…

           वक्त गुजरता गया… शुभी मेडिकल की पढ़ाई करने लखनऊ चली गई.. मम्मी  पापा भी एक साल के अंतर पर हीं दुनिया से चले गए..दीदी के ससुराल से हमने साफ रिश्ता तोड़ दिया है..हां मुन्ना की याद आती है..उड़ते उड़ते खबर मिली है मुन्ना  कनाडा चला गया है..

जीजा ने दूसरी शादी कर ली थी…दूसरी पत्नी और बच्चे रिटायरमेंट के बाद सारी संपत्ति अपने नाम करवा लिया है…पेंशन भी वही रखते हैं, जीजा का एटीएम भी उनसे ले लिया है…एक निरीह निर्दोष मासूम बच्ची और उसकी मां की आह जीजा को दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया है…मेरा बेटा वेल्हम बॉयज स्कूल देहरादून में पढ़ रहा है..

                     शुभी पढ़ाई खतम कर इसी शहर में हॉस्पिटल ज्वॉइन कर लिया है.. एक साल हो गए.. रिश्ते आ रहे हैं … अभीदो साल तक शादी नही करना चाहती.. यहां सबको पता है शुभी मेरी ओर रचना की बेटी है समीर उसका भाई है… दोनो बच्चों में बहुत प्रेम है जैसे मेरे और मेरी दीदी में था

पर भगवान से यही प्रार्थना करता हूं इनके उपर दुःख की परछाई भी ना पड़े… रचना बेटे के पास गई है.. मेरी आंखें भींग रही है दीदी को याद करके… ओह आंखें पोंछ लेता हूं.. स्कूटी कीआवाज आ रही है शुभी आ रही है ..

                     मैने या जीजा ने कभी ये सोचा था भला #जाने कब जिंदगी में कौन सा मोड़ आ जाए #जिस बच्ची को अनाथालय में लावारिस घोषित कर भेजने की बात की थी उसके जनक ने आज जिंदगी उन्हे किस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है.. कल पुलिस बच्ची को स्वीकार नहीं करने पर हॉस्पिटल वालों ने बुलाया था आज हॉस्पिटल वाले डॉक्टर शुभ्रा सूरज सिन्हा के कहने पर उसके तथाकथित पिता के लिए….

 

#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

 

Veena singh

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