शास्त्री जी- विभा गुप्ता: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : हमारी कॉलोनी में एक पंडित जी रहा करते थें,नाम था उनका शशिभूषण शास्त्री।सभी उन्हें शास्त्री जी कहकर पुकारते थें।अगर किसी ने उन्हें गलती से भी पंडित जी कह दिया तो फिर वो उसका ऐसा भविष्य बता देते थें कि…

कॉलोनी में जिसे भी पूजा करानी हो,मुंडन-संस्कार कराना हो, विवाह-कार्य करवाना हो अथवा अपना या अपनों का भविष्य जानना हो तो हमेशा शास्त्री जी को ही याद किया जाता था।एक दिन युवाओं की एक टोली ने उन्हें सलाह दी,” क्या शास्त्री जी…, ज़माना कहाँ से कहाँ पहुँच गया और आप हैं कि अभी तक वही पुराने फ़ार्मूले पर अटके हैं।थोड़ा हाई-फ़ाई भी बन जाइये।”

” ये.. हाई-फ़ाई से क्या मतलब है?” शास्त्री जी के दोनों चक्षु एक इंच चौड़े हो गये।

” मतलब कि आप अपना एक फ़र्स्ट क्लास ऑफ़िस बनाइये, उसमें एक सेक्रेट्री रखिये जो आपकी दिनचर्या को नोट करके मैनेज करे और दरवाज़े पर एक बड़ा-सा पोस्टर चिपकवाइये जिसपर आपका सुंदर-सा फोटू हो तथा टेलीफ़ोन नंबर भी छपा हो।फिर देखिये..आपकी प्रसिद्धि दू…..र-दूर तक जाएगी।”

युवा-मंडली की सलाह शास्त्री जी को जँच गई और उन्होंने अपने घर के बाहरी कक्ष को रंगाई-पुताई करके उसमें दो कुर्सियाँ,एक मेज और मेज पर एक फूलदान रख दिया।कमरे के बाहरी दीवार पर अपनी फोटू वाला एक बड़ा पोस्टर भी चिपकवा दिया जिसपर लिखा था ‘ टिकाऊ विवाह कराने के लिए हमसे संपर्क करें-…और दस अंकों वाला अपना मोबाइल नंबर छाप दिया। अपने एक पुराने मित्र के बेरोजगार बेटे को अपने ऑफ़िस का मैनेजर भी नियुक्त कर दिया।

फिर तो शास्त्री जी के नाम की धूम मच गई।उनका कक्ष यजमानों से भरा रहने लगा।उनके व्यस्त फ़ोन से आवाज़ आती- कृपया थोड़ी देर बाद काॅल करें।स्थिति यह हो गई कि सत्यनारायण भगवान की कथा और अन्य पूजा करवाने के लिये वे अपने मैनेजर जी को ही भेजने लगे।

एक दिन शास्त्री जी अपने कक्ष में बैठे एक यजमान को पूजन-सामग्री की लिस्ट लिखवा रहें थें,तभी एक महिला दनदनाती हुईं उनके कक्ष में प्रवेश की और शादी का कार्ड उन्हें दिखाती हुई बोली,” आपने तो मेरी बेटी को सात जनमों तक साथ रहने का आशीर्वाद दिया था लेकिन वो तो छह महीने बाद ही अपने पति को तलाक का नोटिस देकर मेरे सिर पर आकर बैठ गई है।”

शास्त्री जी अवाक् रह गये।उनकी कार्य-अवधि में ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई उनके आशीर्वचनों पर ऊँगली उठायें।उन्होंने महिला को कुर्सी पर बैठने का संकेत करते हुए कहा, ” अब बताइये…बात क्या है?”

महिला तो बिफ़री हुई थी ही, उसी लहज़े में बोली,” आपने मेरी बेटी के विवाह में आशीर्वाद देते हुए कहा था कि दोनों का दाम्पत्य जीवन सुखद होगा।मैं निश्चिंत हो गई थी कि उसका घर बस गया है,मेरी बला टली लेकिन महीने भर बाद ही बेटी-दामाद के बीच तू-तू — मैं-मैं होने लगी।अब बेटी दामाद को तलाक का नोटिस भेजकर मेरी छाती पर मूँग दल रही है।आपकी भविष्यवाणी झूठी निकली, आप धोखेबाज हैं।आपके हाथ से कराई शादियाँ तो टिकाऊ नहीं होती…, चलिए, मेरा पैसा वापस कीजिये” साथ ही वे पुलिस की धमकी भी देने लगीं।

शास्त्री जी पेशोपेश में पड़ गये।किसी तरह से उन्होने महिला यजमान को शांत करके, कल घर आने का वादा करके वापिस भेज दिया।अब समस्या यह थी कि वे इससे कैसे निबटे।

अपने घर के बाहर वाले सार्वजनिक पार्क में टहलते हुए वे इस गंभीर समस्या पर विचार कर ही रहें थें कि उनकी नज़र सामने वाले दीवार पर चिपके एक पोस्टर पर पड़ी।पोस्टर पर रंग-बिरंगी साड़ियों के फ़ोटो चिपके थें और नीचे लिखा था- ‘फ़ैशन के दौर में कपड़े के रंग और टेक्चर की कोई गारंटी नहीं है।’ बस..फिर क्या था…, शास्त्री जी के दिमाग की बत्ती जल गई।

घर आकर उन्होंने अपने पोस्टर पर एक लाइन और चिपका दिया- आधुनिकता की इस अंधी दौड़ और लिव इन रिलेशनशिप के प्रोगेसिव दौर में वैवाहिक रिश्तों के सफल-असफल होने की गारंटी हमारी नहीं है..।

यकीन मानिये…शास्त्री जी के व्यवसाय और उनकी प्रसिद्धि में तनिक भी कमी नहीं आई है।अब तो लोग उनसे ये पूछने आते हैं कि हमारी रिलेशनशिप कितने समय तक टिकेगी?”

विभा गुप्ता

स्वरचित

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