सीमा –   शिव कुमारी शुक्ला  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: आज तुम फिर देर से आई रेखा कहते हुए बच्चों को उठाने उनके कमरे में चली गई । लौटकर आई तो देखा वह किचन में बरतन धो रही थी। बड़ी उदास थी। त बोल भी नहीं रही  थी। मैंनें ध्यान से उसको देखा तो उसका चेहरा पूरा सुजा हुआ था. हाथों पर ध्यान किया  यहाँ भी नीले निशान पडे हुए थे मुझे समझते  देर नहीं लगी  की आज रात फिर  उसके शराबी पति ने उसे पीटा है,

वह भूखी भी होगी, सो जल्दी से मैंने दो कप चाय बना  कर उसे बुलाया रेखा काम  बाद में करना पहले चाय पी लो साथ में ये नाश्ता भी करलो रात तुमने कुछ खाया नहीं होगा ।सहानुभूति के ये शब्द सुनकर वह फफक फफ़क कर रो पडी।

 दीदी  माफ  कर दो रात को उसने बहुत मारा तो सुबह नींद देर से खुली दर्द भी बहुत  हो रहा था सो आने में देर हो गई कोई बात  नहीं पहले तुम चाय पिओ फिर मैं दर्द की गोली दे दूंगी ।

 चाय पीते पीते बोली दीदी अब तो जीने की इच्छा नहीं रही। दिन भर मेहनत करूं रात भार  मार खाऊं कहाॅ से लाऊँ इतनी हिम्मत ,  पर  बेटी के लिए सब सहन कर रही हूं। उसे छोड़ मर भी तो नहीं सकती बाप तो उसे भी बेच कर दारू पी लेगा। मैं नहीं चाहती कि वह भी मेरी तरह की  जिन्दगी जीए। इसलिए चाहती हूँ कि वह  पढ लिख कर  अपने पैरों पर खड़ी हो जाये।  कभी इच्छा होती है कि सीमा को कहीं बाहर पढ़ने भेज दूँ घर में कलह देख कर उसका मन भी पढ़ाई में नहीं लगता दुःखी रहती है, पर इतना पैसा कहाँ से लाऊँ। 

 दीदी वह पढ़ने  में बहुत होशियार है. यदि कभी मैं मर गई तो इसका क्या होगा? कहाँ जायेगी यही सब चिन्ता खाये जाती है।

 

ऐसा कुछ नहीं होगा तुम पढ़ाओ जितनी पढ़ाई में जरुरत होगी मैं कर दूँगी ।  वह खुश हो गई दीदी आप बहुत अच्छे हो बहुत मदत करते रहते है। कह  कर वह यह कहते हुए उठ गई कि काम में देर हो जाएगी। काम में लग गई।

यह उसकी जिन्दगी की दुःखभरी कहानी थी जिसकी आए दिन पुनरावृति होती रहती थी।  बाप नशे में सीमा की भी बहुत पिटाई कर देता जब वह सुबह भी नशे मे होता तो कई बार वह सीमा को अपने साथ ले आती। बड़ी प्यारी सी बच्ची थी। तीखै नैन नक्श  रंग जरूर सांवला था पर आकर्षक लगती। वह अपनी मम्मी का हाथ बॅटा देती।  वह  मेरी बेटी की ही  हमउम्र थी सो मैं उसके कपड़े, कापी पेन,पेन्सिल आदि देकर उसकी मदत कर देती थी। कभी पढ़ाई मे भी मेरी बेटी मदत कर देती। 

ऐसे ही समय पंख लगाये उड रहा था ।एक दिन नो बज गए और रेखा अभी तक काम पर नहीं आई में झुंझला रही थी काम को देर हो रही थी कि तभी पडोसिन का फोन आया रेखा उनके यहाँ भी काम करती थी।

 हेलो मिसेज शर्मा क्या आपको कुछ पता है की रेखा के साथ क्या हुआ 

अब मैं चोक्कनी हुई ,  नहीं क्या हुआ? लता – अरे वह अब नही रही। उसका शव घर में पड़ा है किसी ने रिपोर्ट कर दी पुलिस आई है उसके पति ने उसे पीट-पीट कर मार डाला।

मैं फोन पकडे सन्न सी बैठी रही आँखों के सामने कभी रेखा का तो कभी सीमा  का चेहरा आता। अब उस बच्ची का क्या होगा। एक दिन रेखा ने आश॔का जताई थी कि उसका पति सीमा को बेचने की फिराक मे है मैं उसे कैसे बचाऊं। मैंने अपने पति को बाहर जाकर सब  बताया  और जल्दी उसके घर चलने को कहा।

  पहले तो इन्होंने आना कानी की,कि यह उनका घरेलू मामला है,पुलिस आ गई है वह अपना काम करेगी हम क्या कर सकते हैं।किन्तु मेरे यह कहने पर कि मुझे सीमा की चिन्ता है ऐसे माहौल में वह क्या कर रही होगी,उसे सम्हालना है,तो ये राजी हो गए। 

  जब हम वहाॅ पहुँचे तो बहुत भीड थी,पुलिस भी थी।सब को पार करते जैसे ही मैं घर के पास पहुँची सीमा दूर बैठी माॅ को देख रही थी।मैंने उसके पास  जाकर जैसे ही उसके सिर पर हाथ रखा वह उठ कर मुझसे लिपट कर रो पडी। बापू ने माॅ को मार डाला वह हिचकियाॅ भर रही थी।

मेरे पूछने पर क्या हुआ था वह बोली बापू रात को किसी बूढे आदमी को लेकर आया था  और उसके साथ मेरे को भेजने के लिए कह रहा था, बापू ने उससे बहुत सारे पैसे भी लिए  थे । माॅ के मना करने पर बापू ने उसे बहुत मारा ओर माॅ मर गई। आंटी अब में कहाँ रहूँगी। बापू तो मुझे उस आदमी के साथ भेज देगा। मैं उसके साथ नहीं जाना  चाहती।  अब में क्या करूं कहकर वह रोने लगी।

पुलिस ने शव मोर्चेरी भिजवया  उसके बापू को साथ ले गई और मैं सीमा को घर ले आई। सोच रही थी कि इतनी छोटी उम्र में इतना दुख इस बेचारी बच्ची का क्या कसूर।

चलो अब उसके जीवन का दुखद अध्याय खत्म हुआ। वह म॔जूजी की छत्रछाया में आराम से पल रही थी साथ ही उसकी पढाई भी जारी थी। जब भी माॅ की याद आती मंजूजी से उतना ही प्यार पा जाती। जीवन अपनी गति से बढ़ रहा था। उसका बापू जेल में अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। सीमा की गवाही से यह संभव हो पाया था । उसके दिल में अपने बापू के लिए नफरत थी केवल नफरत।

 उसने दसवीं बोर्ड प्रथम श्रेणी में पास किया , उसे छात्रवृति भी मिलने लगी थी। पूरी लगन से पढ़ाई करते हुए वह म॔जू जी की घरेलू कार्यो मे बराबर मदत करती इससे उसके मन का बोझ कि वह यहाँ पर आश्रय पा रही है कुछ मदत कर कम करने की कोशिश करती। बारहवीं कर इन्जीनियरिंग मे प्रवेश लिया। ग्रेजुएशन के बाद उसने अपनी इच्छा सेना में जाने की बताई। म॔जूजी और उनके पति ने जो भी हो सकता था प्रयास कर उसे सेना में भर्ती करवा कर उसकी इच्छा पूरी थी। वहाॅ भी वह अपनी मेहनत एवं व्यवहार कुशलता से सबकी चहेती थी।

  वहाॅ पर उसकी दोस्ती एक अधिकारी से हुई, वे उसकी कार्यक्षमता एवं व्यक्तित्व से प्रभावित थे।और उसकी ओर आकर्षित भी। वे लेफ्टिनेंट  के पद पर कार्यरत थे। दोस्ती ने कब प्यार का स्थान ले लिया उन्हें भी पता न चला । दोनों शादी के लिए तैयार थे किन्तु सीमा ने साफ शब्दों में कह दिया जबतक मेरे मम्मी पापा से अनुमति नहीं मिलेगी मैं शादी नहीं करूँगी।

   छुट्टीयों में दोनों अपने अपने घर आये।दोनों ने अपने माता-पिता से बात की। लड़के के माता-पिता को आपत्ति थी कि वह कैसे परिवर से  है कैसे संस्कार है।  जब सीमा ने यह बात अपने मम्मी- पापा  से की तो वे पहले सब कुछ  जान सम‌झ लेने के बाद ही यदि उपयुक्त लगा तो शादी करने को तैयार थे। खैर लड़के को बुलाया वह अपने माता पिता के साथ आया। माता पिता सीमा को एवं उस परिवार को देखकर जिसने उसे परवरिश दी थी, तुरन्त राजी हो गये। सीमा के माता-पिता भी राजी थे। सो तुरन्त निर्णय हो गया। 

   वे शादी के बंधन में बॅध कर खुश थे 

दोनों परिवार खुश थे। उनकी पोस्टिंग भी एक ही जगह थी अतः देश सेवा के साथ-साथ वे सुखी दाम्पत्य जीवन भी बिता रहें थे।

  अरुण बहुत समझदार, सुलझा व्यक्ति था वह सीमा को बहुत प्यार करता था। उसकी छोटी से छोटी खुशी के लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता। यह सब देख सीमा की आँखे भर आती उसके सामने अपनी माँ का रोता हुआ चेहरा पिटती  माॅ ,बापू काअनवरत गालियों की  बोछार करना एक रील की भाँति आ जाता। वह सोचती दोनों पुरुषो में कितना अन्तर है। काश आज मेरी माँ जीवित होती तो में उसे सुख का एक कतरा दे पाती। कहते है दुख और सुख जीवन के दो पहलू हैं  जो सबके जीवन मे आते है, पर बाल्यावस्था  छोड बाकी की जिन्दगी तो मेरी माॅ के जीवन को दुखों का ही ग्रहण लगा रहा। उसने बचपन मे जो दुख भोगा उसकी परछाई भी अब उस पर नहीं थी ,कारण सुख की इतनी बरसात जो हो रही थी, मायके और ससुराल में सबकी चहेती जो थी।

  शिव कुमारी शुक्ला

  स्व रचित मोलिक अप्रकाशित 

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