सौतेलेपन का दंश -कुमुद मोहन : hindi kahaniya

hindi kahaniya : “अरी ओ महारानी!उठकर चाय बनाओगी या दिन भर किताबों में घुसी रहोगी?तुम्हारी मां तो भाग गई अपने यार के साथ मेरी छाती पे मूंग दलने को तुझे छोड़ गई,अपने साथ ही ले जाती तो मेरी जान छूटती!अरे मैं भी कितनी मूरख हूं तुझे क्यों भला साथ ले जाती,उसकी अय्याशियों में कांटा ना हो जाती तू?”

सिया जैसे ही काम खतम करके पढ़ने बैठी उसकी सौतेली मां मंजू चिल्लाई! 

दिन रात उठते बैठते मंजू सिया को उसकी मां बीना को लेकर जली कटी सुनाती और अपने व्यंग्य भेदी बाणों के नश्तर चुभो कर सिया का दिल छलनी करती!

मां किसी के साथ भाग गई,बाप ने दूसरा ब्याह कर लिया!प्यार के दो शब्द सुनने को तरसता सिया का बालमन अंदर ही अंदर घुटता!

सिया की मां बीना जब से ब्याह कर आई थी दहेज ना मिलने पर उसका पति महेश और सास दुलारी उसका जीना हराम किये रहते!

महेश के मामा का बेटा सुरेस उसी शहर में नौकरी करता था!छुट्टी के दिन अपनी बुआ के घर अक्सर आता था!घर में बस वही था जिसके साथ बीना दो घड़ी हंसकर बिता लेती!

उसपर भी उसकी सास ताने देते नहीं थकती थी” कुलच्छनी को देखो कैसे सजबन के बैठी है,अरे रिझाना है तो अपने मरद को रिझावै दूसरों पे क्यूं डोरे डाले है!”पति के मन में तो पहले से ही शक का सर्प सर उठाए बैठा रहता!तड़क कर फुंकारता”सही कहो हो अम्मा,या के लच्छन तो मुझे सुरू से ही ठीक ना लग रहे,आज देख मैं कैसी कुटाई करता हूं,”गंदी सी गाली देकर बीना को अंदर लेकर लात-घूंसे चलाने लगता!

कभी सुरेस के सामने कोई कांड होता और वह बीच बचाव करता तो मां बेटा उसकी भी जमकर खबर लेते!

भाई नाराज ना हो जाए इससे महेश की मां ज्यादा कुछ न कह पाती,उसे घर आने से मना न कर पाती!

रोज-रोज के झगड़े झंझट से तंग आकर एक दिन बीना और सुरेस घर से कहीं दूर भाग गए! दस साल की सिया को छोड़कर जाते हुए बीना का मन भी नहीं कांपा,उसकी बेटी ऐसे कसाईयों के साथ कैसे रहेगी उसने एक बार भी नहीं सोचा!

जिस मां के लिए तो

 सिया के मन में कोई भावना बची ही  नहीं थी,उसे बुरा लगता जब उसी मां को लेकर उसे जली कटी सुननी पडती!

महेश यों तो पूरी तरह से मंजू के कब्जे में था पर उसने कम से कम सिया की पढ़ाई जारी रखी!हालांकि मंजू ने पूरा जोर लगाया कि किसी तरह सिया बस घर का काम किया करे ताकि वह दिनरात चारपाई पर आराम कर सके यह कहकर ” अरे! पढ़लिखकर कोई कलक्टर तो ना बन जाऐगी,फूंकना तो चूल्हा ही ना,घर से बाहर निकलेगी तो अपनी मां की तरह मुँह काला करके किसी लुच्चे लफंगे से साथ भाग ना गई तो मेरा नाम बदल दीजो”।

उधर सिया का सौतेला भाई मनु मंजू के अधिक लाड-प्यार के कारण गलत संगत में पड़ चोरी,शराब और नशा करने लगा!

एकदिन सिया कालेज से लौट रही थी तो कुछ लफंगे लड़के उसके पीछे पड़कर उसे छेड़ने लगे!

रवि जो एक पुलिस इंस्पेक्टर था अपनी ड्युटी करके घर जा रहा था!उसने सिया को बदमाशों के चंगुल से बचाया और घर तक छोड़ने आ गया!

रास्ते में रवि ने सिया को अपने पुलिस में होने का बताया और अपना नम्बर सिया को दिया कि कोई भी परेशानी हो तो काॅल कर सकती है!

किसी गैर मर्द के साथ सिया को देखकर मंजू ने बिना कुछ सोचे समझे चिल्लाना शुरू कर दिया”है ना अपनी मां की बेटी,भाग जा किसी के साथ जो भी मिले,कर आई मुँह काला,निकल जा इस घर से!खबरदार जो अंदर कदम रखा टांगें तोड़कर रख दूगी”

रवि ने बीच में बोलना चाहा तो मंजू उसपर भी बिफर पड़ी “और तुम कौन हो जी?तुम जैसों को तो मैं अच्छी तरह जानू हूं,लड़की देखी नहीं कि लार टपकने लगी,इस बहाने घर तक चले आए नैन मटक्का करने को”

फिर सिया की तरफ देखकर बोली”भाई वहाँ पुलिस स्टेशन पर जेल में पड़ा है और इसे महारानी को गुलछर्रे सूझ रहे हैं”

सिया ने रवि की तरफ आशा भरी नज़रों से देखा तो रवि ने मंजू से पूछा कौन से पुलिस स्टेशन पर और वो सबको लेकर वहां गया और मनु को छुड़ाकर लाया!

फिर कुछ दिन बाद रवि ने मंजु से सिया का हाथ मांगा!मंजू लालची तो थी ही पुलिसिया दामाद काम ही आएगा सोचकर तैयार हो गई। 

जिस लड़की को दिनरात ताने सुना-सुनाकर उसे जली कटी सुनाया करती आज उसी की वजह से बेटा जेल से बाहर आ गया!

कुमुद मोहन

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