सौगात – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

रौशनी बहुत इलाज करवा चुकी थी लेकिन संतान का सुख जैसे नसीब में ही नहीं था। रमन बहुत समझाता कि “कोई बात नहीं हम दोनों हैं ना एक दूसरे के लिए।

मुझे नहीं चाहिए बच्चा ,तुम अपने आप को दोष देना बंद करो।” घर आंगन सूना – सूना सा लगता और एक समय के बाद पति – पत्नी के बीच बातचीत भी कम हो जाती है। बच्चों के आने के बाद बच्चे मां बाप को जोड़ने की कड़ी बन जातें हैं और घर आंगन में खुशियां फैल जाती है।

सासू मां कमला जी तो यहां तक कहनें लगीं थीं कि “मैं तो कभी नहीं चाहती थी की रौशनी इस घर की बहू बने…. मेरी सहेली की लड़की रमा से शादी करना चाहती थी देखो दो – दो बच्चों की मां बन गई है वो और हमारे नसीब में तो ये सुख ही नहीं है। शायद ऐसी ही चली जाऊंगी दुनिया से बिना पोते – पोती का मुंह देखे।”

ये बातें रौशनी के साथ – साथ रमन को भी चुभने लगी थी। मां खुद भी एक औरत हैं और औरत के दर्द को नहीं समझती।उन से ज्यादा रौशनी को बच्चों की ललक है पर इस तरह तानाकशी करना कहां शोभा देता है।अब वो घर आना जाना भी कम ही कर दिया था। रौशनी! ” तुम्हें लगता है तो हम क्यों ना एक बच्चे को गोद ले लें… तुम्हें भी औलाद का सुख मिल जाएगा और एक बच्चे को घर भी” रमन ने रौशनी से कहा।

“सही कह रहे हो रमन लेकिन मुझे हमारा बच्चा चाहिए जिसकी नाक तुम्हारे जैसी हो आंखें हमारे जैसी… जिसमें हमारी झलक हो।”

मन का संघर्ष – अनीता चेची

एक दिन रौशनी की एक सहेली आई। रौशनी की उदासी को देखते हुए उसने सलाह दी की,”तेरी इच्छा पूरी हो सकती है अगर कोई औरत अपनी कोख में नौ महीने तुम्हारे बच्चे को रखने को तैयार हो जाए।” ” हैं…. ऐसा संभव है क्या?

मैंने पढ़ा तो है पेपर में। लेकिन कहां मिलेगी और मैं कहां ढूंढूं ऐसी औरत को… कोई तैयार होगा भी की नहीं?”

प्रश्न अनेकों मन में गूंजने लगे थे रौशनी के।इस बात ने उसे रात भर बेचैन रखा। सुबह उठते ही उसने रमन से अपने मन की बात बताई… पहले तो रमन माना नहीं फिर रौशनी की खुशी के लिए हां कर दिया। रौशनी जिस बात से इतनी खुश नजर आ रही थी तो होने के बाद तो उसका जीवन ही बदल जाएगा…रमन को अहसास होने लगा था।

दोनों डॉ रेखा के पास गए और उनसे अपने मन की बात बताई। डॉ रेखा ने उन्हें सुझाव दिया कि वैसे तो अपने यहां ऐसे कम ही लोग होते हैं क्योंकि विदेशों में बहुत चलन है इन सबका,पर मैं एक जरूरतमंद महिला को जानतीं हूं। मैं उससे बात करके आपको फोन करतीं हूं।

दूसरे दिन डॉ रेखा का फोन रौशनी के पास आया और उन्होंने उसे खुशखबरी देते हुए कहा कि वो महिला तैयार हो गई है।उसको जब तुम्हारे केस के बारे में बताया तो वो तुम्हारी मदद करने को तैयार है।तुम लोग कल ही आ जाओ और तुम्हारी और उसकी कुछ जांच करनी है

फिर ये प्रोसिजर शुरू कर देती हूं। रौशनी नहा धोकर भगवान की पूजा अर्चना करके उनके सामने अपने आंचल को फैला कर बोली हे!” प्रभु आज निराश नहीं लौटाना इस मां को।”

दोनों अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टर रेखा ने सारी जांच की और उस औरत  यानि गुंजन की भी सारी जांच की। सारे रिपोर्ट नार्मल आए थे और कुछ दिनों में खुशखबरी भी आ गई थी।

सौ रुपये का बोरा – सीमा पण्ड्या

रौशनी और रमन ने एक-दूसरे से वादा किया कि इस बारे में किसी को नहीं बताएंगे और नौ महीने तक घर भी नहीं जाएंगे। धीरे – धीरे वक्त गुजरने लगा था और रौशनी, गुंजन का पूरा – पूरा ख्याल रखती थी।

अब डिलेवरी की तारीख नजदीक आ गई थी, रौशनी बहुत घबराई हुई थी कि सबकुछ अच्छी तरह से हो जाए क्योंकि यही उसकी आखिरी कोशिश थी। गुंजन को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया था और बच्चा उल्टा था इसलिए डॉ रेखा ने आपरेशन करने का निर्णय लिया था।

रौशनी और रमन को इंतजार ही नहीं हो रहा था कि कब वो अपने बच्चे को गोद में लेने का सुख पाएंगे। इतने में आपरेशन थियेटर की लाइट बंद हुई और नर्स ने तौलिए में लिपटा एक प्यारा सा बच्चा उसकी गोद में थमाते हुए कहा कि ” बधाई हो बेटा हुआ है…आप मां बन गई हैं।”

रौशनी बच्चे को गोद में लेकर चूमने लगी और खुशी से रोई जा रही थी….रमन हमारा बेटा लो गोद में और महसूस करो इसके  स्पृश को।रमन की आंखें भर आईं थीं, सचमुच उसके जैसा ही नाक – नक्शा था। गले से लगा कर वो भी उसे चूमने लगा और भगवान को धन्यवाद देने लगा।

थोड़ी देर में गुंजन को कमरे में लाया गया था।अब होश में आ गई थी वो… रौशनी ने हांथ जोड़ कर उसे धन्यवाद दिया और बोली तुमने जो मुझे ये ‘ सौगात ‘ दी है इसका अहसान मैं मरते दम तक नहीं भूलूंगी और मैं हमेशा तुम्हारे परिवार का ख्याल रखूंगी ये मेरा वादा है। गुंजन ने रौशनी का हांथ थाम कर कहा,” मेमसाब आप धन्यवाद नहीं दीजिए…

आपने हमारी मदद की और मैंने आपकी। भगवान ने आपकी सुन ली…बस एक विनती है कि मैं बच्चे को नहीं देखना चाहतीं हूं क्योंकि वो आपकी अमानत है और कहीं मैं उसके मोह में ना बंध जाऊं, फिर मुझे बहुत तकलीफ़ होगी।नौ महीने तक अपनी कोख में उसे रखा है तो उससे नाता जुड़ गया है। उसकी धड़कनें महसूस की है मैंने और गुंजन की आंखें छलक उठी।

वो खौफनाक दोपहर  – डॉ उर्मिला शर्मा

गुंजन तुम्हारा कभी भी मन करे बेझिझक होकर आ जाना आखिर एक देवकी मां है तो दूसरी यशोदा मां।

रौशनी और रमन ने एक बड़ी सी पूजा रखी और अपने बेटे से सबको मिलवाया…रमन की मां की खुशी का ठिकाना नहीं था क्योंकि उनको पोता जो मिल गया था।

सभी खुश थे अब घर के आंगन में किलकारियां गूंजने लगी थी और बच्चे का सुख मिल गया था।

सचमुच एक ‘सौगात’ ही थी रौशनी और रमन के लिए अब दिन रात दोनों बच्चे की बातों में लगे रहते और जीवन में फिर से खुशियों ने दस्तक दे दिया था।

गुंजन कभी नहीं आई मिलने पर वादे के अनुसार रमन और रौशनी ने अपनी बात पूरी की थी।सब खुश थे और एक अधूरा परिवार अब पूरा हो गया था ईश्वर की कृपा से।

 

                                प्रतिमा श्रीवास्तव

                                नोएडा यूपी

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