मन का संघर्ष – अनीता चेची

मानस ने जैसे ही किशोरावस्था में प्रवेश किया उसके मन के भीतर एक संघर्ष शुरू हो गया। उसका मन तरह-तरह की कल्पना करने लगा ।कक्षा की लड़कियां उसे अपनी और आकर्षित करती। पढ़ाई की तरफ ध्यान बिल्कुल भी ना लगता ।इस बदलाव को वह समझ ही नहीं पा रहा था। घर में मां की बीमारी के कारण में हमेशा चिड़चिड़ा रहती पिताजी विदेश में नौकरी करते और बड़ा भाई हमेशा उसे डांटता रहता कोई भी ऐसा नहीं था जो उसकी मन स्थिति को समझ पाता अपने इन्हीं मन से हमेशा उहापोह की स्थिति में रहता। एक दिन गणित के अध्यापक ने छोटी सी बात पर मानस की बहुत जोर से पिटाई कर दी ।अपने इसी मन संघर्ष के कारण मानस अध्यापक से भिड़ गया।

उसके इस व्यवहार से गणित अध्यापक के आत्मसम्मान को ठेस पहुंची। और वह रूठ कर प्रिंसिपल मैम के पास आ गया

“या तो आप इस बच्चे को स्कूल से बाहर निकाले नहीं तो मैं आज ही अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दूंगा”

मानस अपने व्यवहार पर आत्मग्लानि से भर रहा था। ना जाने कब कब मैं उसे आक्रोश आ गया और उसके मन का सारा आक्रोश आज अध्यापक पर निकल गया। स्कूल के सभी अध्यापकों ने भी उसके स्कूल निष्कासन की मांग की। मानस बार-बार सभी के सामने गिड़गिड़ा कर अपने अशोभनीय व्यवहार की शमा याचना कर रहा था। परंतु उसके व्यवहार से सभी नाराज थे। प्रिंसिपल मैम ने उसे घर भेज कर अपने माता-पिता को बुलाने के लिए बोला। आज पूरी रात मानस सोया नहीं था वह यह घटनाक्रम किस तरह से अपने बीमार मां को बताएगा और भाई तो उसे और भी जोर से पीटेगा। इसी उहापोह की स्थिति में पूरी रात जगता रहा। उसकी कक्षा अध्यापिका थी जो उसकी बातें सुनती थी वह काफी दिनों से छुट्टी पर गई हुई थी। मानस इन सब से क्षुब्द होकर आत्महत्या करने की सोचने लगा। आत्महत्या से पहले उसने अपनी कक्षा अध्यापिका से बात की।




“मैम मैंने बहुत बड़ा पाप किया है मैंने अपने अध्यापक पर हाथ उठाने की कोशिश की, मुझे इस संसार में रहने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए मैं मरने जा रहा हूं।”

जैसे ही कक्षा अध्यापिका ने मानस का यह संदेश पढ़ा उसने तुरंत उसे फोन किया  बेटा आत्महत्या करना किसी भी समस्या का हल नहीं है, मैं कल स्कूल आकर आपकी समस्या का समाधान करूंगी”

मानस की कक्षा अध्यापिका ने स्कूल प्रशासन और उसकी माता व भाई से बात की। और भविष्य में इस तरह की गलती दोबारा ना हो इसका आश्वासन मानस से लिया। अब कक्षा में मानस का व्यवहार बदल गया था ।वह अनुशासित होकर  धीरे-धीरे पढ़ने लगा था उसके इस बदलाव को देखकर उसकी कक्षा अध्यापिका मन ही मन खुश हो रही थी।

अनीता चेची, मौलिक रचना

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