साथ की जरूरत…रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi

बच्चे दरवाजे पर आज तीन दिनों से… सुबह शाम नजर गड़ाए हुए थे…कब आएंगे अंकल… गोलू बोला… “लगता है आज भी नहीं आएंगे अंकल…!”

” नहीं ऐसा मत बोलो… अंकल जरूर आएंगे…! गुड़िया बोल पड़ी…

 अचानक से एक बच्चा चीखा…” वह देखो अंकल की कार…!”

 सारे बच्चे उधर ही दौड़े… हां यह तो अंकल की गाड़ी ही है… रुक गई गाड़ी… लेकिन इस बार तो बस अंकल ही आए हैं… कोई और भी होगा देखो ठीक से… मुनिया जो थोड़ी दूर में थी बोली… नहीं रे बस अंकल ही हैं… आज अकेले आए हैं… चलो आए तो… सभी बच्चे भाग कर अंदर कमरे में जाकर अंकल का इंतजार करने लगे…!

 कौशल जी कोई भी त्यौहार अकेले नहीं मनाते थे… घर से कुछ दूरी पर एक अनाथालय था “सेवाश्रम”… वहां आकर सभी बच्चों को नए कपड़े ,मिठाइयां, आदि जरूरत के सामान दे जाते… हर बार… बच्चों को भी जैसे उनकी लत लग गई थी.…

 कल होली थी… इसलिए सारे बच्चे आस लगाए बैठे थे… कि अंकल आएंगे तो रंग, पिचकारी, गुलाल, रंगों वाले गुब्बारे, मिठाइयां, सब लेकर आएंगे… कौशल जी बड़े त्योहारों में अपने पूरे परिवार के साथ तीन-चार दिन पहले ही आ जाते थे… क्योंकि उन्हें भी पता था कि बच्चों को तीन-चार दिन पहले से ही मस्ती करना होता है… चाहे दिवाली हो या होली… पटाखे और रंगों की बच्चों को कभी कमी नहीं हुई…

 थोड़ी देर में एक मैडम के साथ अंकल आए और सारा सामान एक जगह रखकर सबको प्यार से बांटने लगे…गोलू ने आगे बढ़कर बड़ी मासूमियत से अंकल से पूछ ही लिया…” अंकल आप अकेले ही आए हैं… भैया दीदी कोई नहीं आया…!”

” नहीं बेटा…!” कौशल जी की आंखों में आंसू भर आए…” कोई नहीं आया… सबको अपने-अपने काम हैं ना…!” सभी बच्चों को एक बराबर सारे सामान बांटकर कौशल जी आज वहां से तुरंत ही निकल गए… हर बार तो काफी समय बिताते थे उनके साथ… पर आज बहुत ही दुखी थे… वे चले गए… बच्चे तो आखिर बच्चे होते हैं उन्हें अपने खिलौने और मिठाइयों से अधिक किस चीज से मतलब होगी… पर कुछ बच्चे अंकल से बहुत घुले मिले थे… उन्हें अंकल को दुखी देखकर अच्छा नहीं लगा…!

 कौशल जी पिछले 30 सालों से हर त्यौहार में सेवाश्रम जरूर जाते थे… खासकर होली दिवाली या अपने घर के किसी खास उत्सवों पर तो जरूर ही आते थे… वहां का हर बच्चा से लेकर कर्मचारी शिक्षक सभी उन्हें पहचानते थे… और उनकी तारीफ करते थे…!

 सबसे पहले जब उनकी सुनंदा जी से शादी हुई थी तब उनके साथ आए थे… फिर तो धीरे-धीरे सिलसिला ही बन गया…रीना, राहुल के जन्म से लेकर… मुंडन उपनयन यहां तक की शादी हर खुशी में उन्होंने बच्चों को भी मिठाइयां बांटी… कई बच्चे तो वहां से निकल कर अपनी अपनी दुनिया में रच बस गए…

कुछ को वह आज भी याद थे वे कभी कभार उनसे मिलने घर भी जाया करते थे… श्रद्धा भी उन्हीं में से एक थी… बच्चों से सुनकर की अंकल दुखी थे श्रद्धा का जी भर आया… वह उसी दिन शाम को अंकल से मिलने घर चली गई… पूरा घर सुनसान लग रहा था… दरवाजे से ही पता चल गया उनकी उदासी का कारण…

रीना की तो पहले ही शादी हो चुकी थी… तो वह बाहर ही रहती थी और राहुल जो साथ में रहता था… अपने बीवी बच्चों के साथ अभी कुछ दिन हुए उसने एक इंटरनेशनल कंपनी ज्वाइन कर लिया… कौशल जी लाख मना करते रहे पर विदेश जाने की इच्छा इतनी तीव्र थी… कि राहुल ने अमेरिका में जॉब ज्वाइन कर लिया… और पत्नी बच्चों को लेकर चला गया… अगर देश में रहता तो फिर भी आश रहती की महीने दो महीने 6 महीने में घर आएगा… पर अब तो आशा ही खत्म हो गई… बिना 2 साल 4 साल के अब कहां देख पाएंगे… इसी गम से उनका मन बोझिल हो गया था…!

 श्रद्धा को देख उन्हें बहुत खुशी हुई… “आओ बेटा आओ… आज इतने दिनों बाद आई…!”

“कुछ नहीं अंकल… मैं भी सेवाश्रम घर गई थी… वहां पता चला आप दुखी थे…!”

” अच्छा किसने कहा तुमसे…!”

” अरे वही गोलू गुड़िया सभी तो बता रहे थे…!”

 “वाह… बड़े समझदार हो गए हैं बच्चे.… दुखी क्या रहूंगा.… अकेला घर खाने को दौड़ता है… मन ही नहीं लग रहा…!”

 तभी सुनंदा श्रद्धा के लिए चाय पानी लेकर आ गई… सुनंदा का चेहरा भी अचानक ही काफी वृद्धि लगने लगा था… श्रद्धा दोनों की हालत देखकर काफी दुखी हुई… वह बचपन से ही दोनों का प्यार पाती आई थी…!

 अगले दिन होली थी… श्रद्धा चार-पांच बच्चों को जिन्हें कौशल जी से विशेष लगाव था… लेकर उनके घर पहुंच गई… सुबह-सुबह बच्चों को पूरी तैयारी के साथ घर आया देख कर तो कौशल जी और सुनंदा जी की आंखें चमक उठीं… सुनंदा जी ने जमकर स्वादिष्ट पकवान बनाए… और बच्चों के साथ मस्ती में कब हंसते खेलते होली का दिन निकल गया पता ही नहीं चला… जब शाम को बच्चे जाने लगे तो सुनंदा जी का जी भर आया… श्रद्धा को गले लगा कर बोलीं…” कितना प्यार है तुम्हें हम बूढ़े लोगों से.…!”

 वह हंसते हुए बोली…” आंटी आप ही लोग तो हमारे अपने हो… आपके अपने भले कई सारे हों… लेकिन हमारे अपने तो आप लोग जैसे कुछ ही लोग हैं… हमारा कोई अपना थोड़े ही है…!”

 श्रद्धा सेवाश्रम से निकलने के बाद एक छोटी सी जॉब कर रही थी… बाहर ही रहती थी… पर हफ्ते में एक बार सेवाश्रम जरूर आती थी…!

 सबके वहां से निकल आने के बाद कौशल जी और सुनंदा जी पुनः अपनी व्यथा के साथ उदास हो गए… परंतु सुनंदा के मन में एक बात बैठ गई थी… कि अपना पराया कुछ नहीं है… अपना वही है जिससे अपनापन मिले… प्यार मिले… इसलिए सालों से अपने मन में चल रहे एक विचार को आज उन्होंने कौशल जी से साझा किया…” क्यों ना हम एक बच्चे को गोद ले लें…!”

 कौशल जी हंसते हुए बोले…” आज अचानक यह क्या सूझी… अब इस उम्र में बच्चे पालोगी…!”

 सुनंदा जी बोलीं…”इतने दिन भी तो पाल ही रही थी… पहले अपने बच्चों को… फिर नाती पोतों को… इसी चक्कर में तो कभी यह बात जबान पर लाई नहीं गई… पर अब क्या… अब तो बेटे, बहु,बेटी, सब अपनी-अपनी गृहस्थी में लग गए… तो हम ही क्यों उनके इंतजार में अपनी जिंदगी रोते बिताएं…!”

” बात तो सही है सुनंदा… मैं तो शुरुआत से ही चाहता था… पर कभी हिम्मत नहीं पड़ी…!”

” चलिए ठीक है… जो जवानी में नहीं कर सके वह अब करेंगे… बुढ़ापे में… हम कल ही जाएंगे और एक बच्चे को ले आएंगे…!”

” पर वहां तो सभी बच्चे हमें प्यार करते हैं… किसी एक को लाएंगे तो बाकी बच्चों को बुरा नहीं लगेगा क्या… और एक बच्चा अकेला भी तो यहां बोर ही होगा… हम बुड्ढे बुड्ढी के साथ…!”

” तो फिर क्या करें…!”

” मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा… चलो कल चलकर देखते हैं…!”

 दूसरे दिन कौशल जी और सुनंदा जी सेवाश्रम पहुंचे तो वहां बच्चों की क्लास चल रही थी… कौशल जी को देखते ही गोलू और गुड़िया दौड़ कर आ गए…अंकल जी आंटी जी कहकर उनसे लिपट गए… कौशल जी उनका हाथ पकड़ उनके क्लास में गए.… सभी बच्चों से बोले…” आज तो मैं कुछ भी लेकर नहीं आया… खाली हाथ ही आया हूं…

आओ बच्चों आज कुछ बातें करते हैं…!” सभी बच्चे धीरे-धीरे वहां से निकलते गए… घंटा भर होते केवल गोलू और गुड़िया ही थे जो अभी बैठे हुए थे…” क्यों गोलू तुम नहीं गए… और गुड़िया तुम भी नहीं गई…!” सुनंदा जी ने पूछा तो गुड़िया ने सर झुका कर कहा…” हमें आपको छोड़कर नहीं जाना… आप जाएंगे फिर हम जाएंगे…!”

” पर आज तो हमारे पास कुछ भी नहीं है देने को…!” “नहीं चाहिए कुछ भी…!” गोलू बोल पड़ा…

 सुनंदा और कौशल जी को उनका जवाब मिल गया था… गुड़िया की उम्र लगभग 10 साल थी और गोलू लगभग चार-पांच साल का बच्चा… दोनों अक्सर साथ ही रहते थे…!

 सुनंदा जी ने पूछा…” तो बच्चों हमारे घर चलोगे… वहीं पढ़ना, रहना, खेलना……!”

“हां आंटी… आप रखेंगी हमें…!”

” हां… हम इसीलिए तो आए थे… देखने की किसे हमसे प्यार है… और किसे चॉकलेट खिलौने से…!”

” चलो फिर घर चलते हैं…!”

 कौशल जी ने सारी कागजी कार्यवाही पूरी की और दोनों बच्चों को घर ले आए… पहले तो रीना और राहुल को बहुत बुरा लगा… पर बाद में अपने माता-पिता को खुश देख… उन्होंने भी इस बात को स्वीकार कर लिया… आखिर कितने दिनों तक वे माता-पिता का साथ दे पाते… उन्हें भी तो साथ की जरूरत थी… जो पूरी हो गई…!

 गोलू और गुड़िया भी कुछ-कुछ दिनों में सेवाश्रम जाते रहते थे… बाकी सब से मिलने… अपने माता-पिता के साथ… खिलौने… मिठाइयां… कपड़े लेकर……!

स्वलिखित मौलिक अप्रकाशित

रश्मि झा मिश्रा

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