ससुराल से करेगी खुद प्यार! – मीनू झा

विवेक अपनी पत्नी को समझा…शादी का साल लगने को है पर उसका मायका प्रेम छूटने का नाम ही नहीं लेता…आज वो भाई आ रहा है,कल वो चाचा आने वाले हैं, फुफेरी बहन की शादी है तो ममेरे भाई के बच्चा हुआ है…और मां बाप के तो जो चोंचले हैं वो अलग–यमुना देवी ने अपने बेटे को अकेला देख समझाया।

मां वृशा की फैमिली बहुत बड़ी है आप तो जानती ही हैं और सबलोग मिल जुलकर रहते हैं, बहुत सारे संबंधी भी इसी शहर के ही हैं तो फोन और बुलावा तो आएगा ना… मैं उसे क्या समझाऊं इसमें…

यही समझा कि वो बड़ी फैमिली उसकी पहले थी…अब हमारा परिवार ही उसका सबकुछ है…इधर ध्यान दें…हां कभी कभार बात करना या आना जाना सही है पर उसके तो हर हफ्ते चक्कर लगने तय है…मायके में ही डूबी रहेगी तो ससुराल की कश्ती कौन संभालेगा…ये एक शादीशुदा लड़की के लिए अच्छी बात नहीं.

 

 

मुझे इन सब पचड़ों में मत पड़ाओ मां…अगर हफ्ते में एक आध बार चली भी गई और खुश होकर लौटीं तो मुझे ये बातें उतनी भी ग़लत नहीं लगतीं पर अगर तुम्हें बुरा लगता है तो तुम बात करो ना,जब तुमसे वो कहीं जाने के लिए पूछने जाती है तो तुम तो खुशी खुशी उसे जाने की इजाजत दे देती हो और मुझे ये सब सुना रही हो…जो समझाना है उसे समझाओ.

तू समझता क्यों नहीं बेटा… मैं जानकर उससे कुछ नहीं कहती जमाना बुरा है ना एक आध बार ना बोल दूं तो तुरंत मुझे अन्यायी और बुरी सास का मेडल मिल जाएगा और पति तो ससुराल में सबसे अपना होता है ना उसकी बातें बुरी नहीं लगती और लगती भी है तो संबंध खराब नहीं होते…और तुझसे तो कोई कुछ कहेगा भी नहीं .

ठीक है देखता हूं —कुछ सोचते हुए विवेक ने कहा वो अब इस पर सच में कुछ करना चाहता था क्योंकि जब वृशा घर में नहीं होती मां यही राग लेकर बैठ जातीं..जबकि वो देखता कि वृशा अपने मायके के बुलावे पर कभी अपने ससुराल के कामों या जिम्मेदारियों को अनदेखा कर नहीं जाती थी और जबरदस्ती विवेक पर भी हर फंक्शन या मिलने मिलाने के लिए जोर नहीं डालती थी क्योंकि उसे पता था कि विवेक पर दफ्तर घर सारी जिम्मेदारियां हैं…पर शायद मां के मन में भय समाया था कि अगर बहू का ज्यादा मायके जाना आना हुआ तो वो ससुराल की नहीं हो पाएगी… हमेशा कहती विवेक से

“मेरी दादी कहती थी जो लड़की मायके से ज्यादा जुड़ी होती है उसका घर कभी ढंग से नहीं बस पाता,उनकी खुद की गृहस्थी खराब हो जाती है।”



 

 

विवेक को पता था कि दशकों पहले की इस बात का आज के समय में कोई औचित्य नहीं है…तब बेटियों के मायके से जुड़ने में सच में उनकी गृहस्थी खराब होने का भय इसलिए था क्योंकि उनका मायके जाना आना या बात होना इतना सरल नहीं था..आज इंसान भारत के किसी कोने में चला जाय दूसरे दिन अपनी जगह वापस आ सकता है…पर उस समय दूर दराज आने में समय बर्बाद होता था तो जो बेटी हर एक दो महीने में अपने मायके आती जाती थी उनके तो दस पंद्रह दिन आने जाने और रहने में बर्बाद हो जाता था… क्योंकि बात तो रोज होती नहीं थी और दूर से आई बेटी दो दिन में जा नहीं सकती थी…पर मां अभी तक उन्हीं पुरानी बातों में उलझी पड़ी हैं।खैर कुछ तो करना ही होगा।

शाम को वृशा लौट आई और फिर‌ उसने चहकते हुए बताया कि अगले हफ्ते बुआ जी की पच्चीसवीं शादी की सालगिरह है…सबको बुलाया है।

यमुना जी ने विवेक की तरफ देखा तो विवेक ने उन्हें धैर्य रखने का इशारा दिया।

वृशा… मैं क्या कह रहा था कि बुआ जी के ही शहर जा रहा हूं मैं मेरी वहां मीटिंग है..उसी दिन जिस दिन उनकी एनीवर्सरी है…मां तो जाएगी नहीं क्योंकि पापाजी का बीपी शुगर बढ़ा हुआ है,रावी की भी अगले दिन परीक्षा है…तो मैं क्या कह रहा था कि तुम अगर बुरा ना मानों तो तुम यहीं घर पर रह जाओ क्योंकि पापाजी की तबीयत सही नहीं है.. मैं तो जा ही रहा हूं मैं अटैंड कर लूंगा।

 

 

विवेक ने देखा थोड़ी उदासी आई वृशा के चेहरे पर फिर उसने खुद को संभाल कर कहा–हां हमदोनों में किसी एक का यहां भी होना जरूरी है और वहां भी कोई नहीं गया तो बुरा लगेगा…ठीक है मैं बुआजी को समझा दूंगी आप ही हो आना वहां से…।



फिर तो ये सिलसिला सा ही चल पड़ा..अक्सर वृशा के मायके विवेक ही चला जाता..या कभी कभी अपने ही शहर में होता तो दोनों चले जाते और शाम तक लौट आते। यमुना देवी ने बेटे के ज्यादा ससुराल जाने पर हस्तक्षेप किया तो विवेक बोला–

मां मैं साथ होता हूं तो आपके अनुसार उसे किसी को सिखाने पढ़ाने का भी मौका नहीं मिलता ना…।

यमुना जी निरूत्तर हो जाती…अभी तक तो बहू को लेकर सशंकित थी अब तो बेटा भी धीरे धीरे ससुराल का ही होने लगा था…बहू के बिना भी चला जाता और दो एक दिन रह भी आता..वो कुछ कहती तो कहता वृशा को रोकने के लिए ये तो करना ही पड़ेगा ना सीधे सीधे कहने से उसे बागी बनने में कितनी देर लगेगी?? यमुना जी का वार उल्टा पड़ गया था…बहू को जिम्मेदार बनाने के लिए मायके जाना कम करवाना था यहां तो बेटा ही ससुराल का होने लगा था…।

इसी बीच वृशा के अपने भाई की सगाई तय हो गई…दो दिन के लिए विवेक और वृशा का मायके जाने का प्रोग्राम था..विवेक और वृशा शाम को निकलने वाले थे और दुसरे दिन शाम को यमुना जी उनके पति और रावी भी जाने वाले थे।

विवेक और वृशा को पहुंचे घंटा भर नहीं हुआ था कि बदहवास सी रावी का फोन आया कि पापा चक्कर खाकर बाथरूम में गिर गए हैं।

 

 

विवेक आननफानन में निकलने लगा तो वृशा भी साथ हो गई…और तो और वृशा का भाई जिसकी सगाई थी वो भी साथ आ गया…विवेक ने वृशा और उससे रूक जाने को कहा तो दोनों का जवाब था कि



अभी पापाजी की हेल्थ पहली प्राथमिकता है

जबतक वो लोग पहुंचे एंबुलेंस आ चुकी थी…अस्पताल पहुंचते ही इलाज शुरू हो गया…चक्कर खाकर गिरने से सर में भी चोट आई थी जिससे निकले खुन को देखकर रीवा और यमुना और घबरा गई थी।

चिंता की बात नहीं है… हमें डर था हर्ट अटैक तो नहीं है पर बीपी घट जाने की वजह से इन्हें चक्कर आया और ये गिर पड़े…चोट भी ज्यादा गहरी नहीं है… हमने दवाईयां शुरू कर दी है,कल डिस्चार्ज दे देंगे —डाॅक्टर ने आकर कहा तो सबके चेहरे पर राहत के भाव आए।

बेटा माफ़ करना तुम्हें भी परेशान होना पड़ा—यमुना जी ने वृशा के भाई से कहा

क्या बात करती हैं आंटी जी… मैं क्या घर का हर कोई आने को तैयार था पर भीड़ लगानी भी तो सही नहीं है ना अस्पताल में… मैं अभी घर पर फोन कर देता हूं कि अंकल जी अब सही है —उसने कहा और फोन लगाने लगा।

बहू तुम भी भाई के साथ चली जाओ…विवेक तो है ना यहां –यमुना जी ने कहा।

नहीं मम्मी जी…जबतक पापाजी घर नहीं जाते मैं नहीं जाने वाली वापस… मैं अपने मायके में मजे और मस्ती तभी कर सकती हूं जब मुझे एहसास रहे कि मेरे ससुराल में सब ठीक है कोई दिक्कत नहीं… मैं जब मन चाहे मायके जाती आती हूं आपलोग कभी कुछ कहते नहीं रोकते नहीं,और आज जब घर पर विपदा आई है तो मुझे क्या समझ में नहीं आता, मैं तो चली जाऊंगी पर मेरा मन यहीं टंगा रहेगा तो क्या फायदा..कल पापाजी घर पहुंच जाएंगे फिर आकर भाई मुझे ले जाएगा—वृशा बोली

 

 

क्यों…कल विवेक ही चला जाएगा तुम्हारे साथ

नहीं मम्मीजी जी ये घर पर ही रहेंगे…इतना बड़ा रिस्क मैं नहीं ले सकती…किस्मत हमेशा साथ नहीं देती—वृशा बोल पड़ी।

विवेक आंखों ही आंखों में मां को कह रहा था–देखा मां वृशा बिल्कुल वैसी नहीं जैसा तुम सोच रही थी..हमने कभी उसपर कोई रोक टोक नहीं लगाई तो उसके मन में सहज समर्पण का भाव आ गया…खुद ब खुद अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो गया…जो शायद एहसास दिलाने में आप भी बुरी बन जाती और शायद वो भी…..।

प्यार और समर्पण देने से वहीं हमारे पास लौटकर आता है वो कहते हैं ना ताली एक हाथ से नहीं बजती…।

#तिरस्कार 

मीनू झा 

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