साँसों का तार… – विनोद सिन्हा “सुदामा”

अर्पिता मन में अथाह प्रेम लिए पलकपांवडे़ बिछाए बैठी अपने भाई के आने का इंतजार कर रही थी..

एक नई उम्मीद के साथ एक नए अहसास के साथ…इस राखी पर्व पर.अनुभव की राह तक रही थी…

मन की भावनाएं शांत होने का नाम नहीं ले रही थी..खुशी आँखों से आँसूं बन कर निकल रही थी..भाई के प्रति बहन का कोमल प्यार अपने उफान पर था…रह रह कर अपने पति अभिनिवेश से पूछती..कब तक आ जाएगा…घर ..ज्यादा समय तो नहीं लगेगा अब..पूरे दस साल बाद आ रहा है…कैसा लगता होगा…अब तो गबरू जवान हो गया होगा मेरा भाई…

अरे आ जाएगा क्यूँ अधीर हो रही हो…बच्चा थोड़े ही अब..

सोचती हूँ मैं ही चली जाऊँ…इतने सालों बाद आ रहा है….क्या सोचेगा…बहन मिलने तक नहीं आ रही

अभिनिवेश को भी भाई बहन के बीच के अथाह निश्चल प्रेम की समझ थी इसलिए उसने भी अर्पिता को मायके जाने को कह रखी थी…

उसे पता था और शादी के बाद कई सालों से देखता आ रहा था…

अर्पिता हर रक्षाबंधन पर राखी ख़रीदती थी और देर रात तक दरवाजे पर खड़ी हो अनुभव का इंतज़ार करती, ये जानते हुए कि वह नहीं आएगा. फिर भी इंतज़ार करती और अंत में वो राखी संजोकर रख देती, इस उम्मीद पर कि एक दिन वो यह राखी अपने भाई के कलाई पर ज़रूर सजाएगी.

हाँ हो आओ…

तुम्हारा भी मन लग जाएगा….इसी बहाने माँ पापा से भी मिल लोगी…और फिर इतने सालों बाद आ रहा है..उसके आते ही दूसरे दिन राखी है…थका रहेगा…अमेरिका से दिल्ली तक प्लेन से आओ और फिर …ट्रेन का सफर…कहाँ आएगा बेचारा…तुम ही चली जाओ….

और हाँ..इतने सालों से जमा किए सब राखी भी लेती जाना.सब कसर पूरा कर लेना..कुछ नहीं छोड़ना..सारी राखी बाँध देना…कलाई का एक कोना भी खाली न रहे….साले का..

कहकर अभिनिवेश मुस्कुराने लगें

अर्पिता पति के सीने लग गई…


लेकिन मन ही मन सोच रही थी..

.कर्ज..???..कैसा कर्ज..??

भाई-बहन के बीच सिर्फ प्रेम होता है.न.कोई कर्ज न कोई फर्ज…

और क्या पूरा करना और क्या चुकाना…

एक ही कोख के तो जने दोनों..फिर कर्ज और फर्ज क्या.?

दोनों एक दूसरे की जरूरत हैं..

इधर अनुभव भी बहुत खुश था ……..इसबार कितने सालों बाद उसकी कलाई पर उसकी बहन के हाथों से राखी सजेगी….

जबसे विदेश जा बसा बहन की राखी से उसकी कलाई अछूती ही रही सदा…घर से दूर किसी भी पर्व त्योहार में अनुभव को इतनी तकलीफ़ नहीं होती थी जितनी वह राखी के दिन महसूस करता था…

कई कई घंटे अपनी सूनी कलाई को निहारता था..और रोता रहता था…

पर इसबार ऐसा संयोग बना कि जब वह देश लौट रहा है तो राखी पर्व नजदीक पड़ रहा …अनुभव कई खट्टी मीठी यादें एवं मन में कई जज्बातों के डोर बाँधें..हवाई जहाज में बैठा मधुर कल्पनाओं में सफर कर रहा था…

उसने मन ही मन सोच रखा था घर पहुँचते ही सबसे पहले बहन के घर जाएगा…जिसने सदा अपने बड़े होने का फर्ज निभाया था..बचपन में शुरू से ही बिन कहे अपनी पसंदीदा चीज़ें एक क्षण में उसे दे देती थी,..और बड़े होने पर मेरी पढाई के खातिर उसने अपने सपनों का गला घोट दिया था…कितने कर्ज थे उसपर उसकी बहन के..कभी कुछ नहीं कहा..बस यही कहती बड़ा हो जाना तो सब वापस ले लूँगी..

कर्ज…??

अनुभव सोच रहा था..

बहन के उस कर्ज को वह कैसे उतारेगा… उसे तो उसकी बहन ने नई जिंदगी दी थी…

मन अथाह दर्द से व्याकुल हो उठा..

उसकी बड़ी बहन ने उसपर इतना बड़ा कर्ज चढा रखा था..जिसे वह मरकर भी नहीं उतार सकता..आज अगर वह जिंदा हैं तो अपनी बहन अर्पिता के कारण..

समय रहते अगर अर्पीता ने भाई अनुभव को अपनी एक किडनी नहीं दी होती तो शायद उसकी जान भी नहीं बचती..

उस समय को सोच कर वह कांप सा गया…

कितना कमजोर और असहाय हो गया था उस पल..कुछ होश नहीं था..कोई रास्ता नहीं दिख रहा था..डाक्टर जवाब दे चुके थे…ऐसा कोई सगा सबंधी भी नहीं था जो उसकी मदद करता.

सबने हांथ खड़े कर दिए थे…

ऐसे में उसकी बहन ज़िंदगी बनकर आई थी…

उस समय वह बैंगलोर में इंजिनियरिंग की पढाई कर रहा था..घर दिवाली की छुट्टियाँ मनाने आया था… दिवाली के दूसरे दिन उसकी तबीयत काफी खराब हो गई..पेट के पास नींचे असहनीय दर्द हुआ ….पहले भी अक्सर होता था पर हल्का पेट दर्द समझ दवा ले लेता.लेकिन इसबार असीमित दर्द उठा था छटपटाता एकाएक बेहोश होकर गिर पड़ा..

माँ दौड़ी आई….पिता को खबर की..जैसे तैसे उसे

ऐंबुलेंस में उसे अस्पताल ले गए…वहाँ जाने पर पता चला अनुभव की दोनो किडनी खराब हो चुकी है…अगर जल्द ही नहीं बदली गई तो बचना शायद मुश्किल हो..


माता पिता दोनों चिंतित हो उठे..

काटो तो खून नहीं..

इतनी कम उम्र में..बेटे की किडनियों के खराब होने का कारण समझ नहीं आ रहा था उन्हें..

तबतक बहन अर्पिता भी पहुँच गई थी…

वह तो इस सोच से आई थी का भाईदूज पर भाई के हाँथ धागा बाँधेगी लेकिन यहाँ पहुँच उसे पता चला सभी अस्पताल में हैं,वह दौड़ी दौड़ी पति अभिनिवेश के साथ अस्पताल पहुँच गई.. माँ के गले लग रोए जा रही थी…अभिनिवेश डाक्टर से बात कर रहें थे..

डाक्टर ने बताया कि अनुभव की दोनों किडनी लगभग 80 से 90% खराब हो चुकी है…और अगर एक भी नहीं बदली गई तो देर हो सकती है…

युवाओं में पढाई के अतिरिक्त बोझ के कारण उक्तरक्तचाप ,खराब डाइट, लाइफस्टाइल और स्मोकिंग के कारण कम उम्र में एसा होना संभव.हो जाता है..और इग्नोरेंस के कारण बीमारी ध्यान में नहीं आ पाती.

माता पिता दोनों पहले ही सूगर के पेसेंट थे अतः दोनों की किडनी ली नहीं जा सकती थी…और पास इतने पैसे थे नहीं कि इतनी जल्दी किसी और से लिया और इंतजाम किया जा सकता..समय भी कम था..

इस बीच अर्पीता ने पति अभिनिवेश  के मना करने के वावजूद अपनी एक किडनी भाई को देने का फैसला ले लिया था..हालांकि बाद में अभिनिवेश ने भी उसके इस फैसले की काफी सराहना की थी..हाँ अर्पीता के सास ससुर जरूर नाराज थे..लेकिन अनुभव की स्थिति जान उन्होंने भी मन मार लिया था…

इसे वक़्त का क्रूर मजाक कहें या बड़ी बहन का फर्ज या फिर संयोग भाई दूज के दिन बहन अर्पिता ने भाई को अपनी एक किडनी देकर धागे की जगह साँसों का तार जोड़ा था…उपरांत उसका भाई  एक नई जिंदगी जी सका था..

भाई को सोच अर्पिता की आँखे भर आई थी..

वह बड़े जतन से इतने सालों से जमा किए राखी को एक एक कर निहारने लगी और उन्हें करीने से बैग मे रखने लगी…ये सिर्फ सालो से जमा किए राखी नहीं थे..भाई के लिए बहन की आस्था और ईश्वर के अरदास थें

जिनमें उसने इतने सालों का अपना निश्चल प्रेम अहसास और विश्वास पिरो रखा था..

शायद इसलिए ही कहते हैं बहनें ईश्वर का वरदान होती हैं और उसकी बाँधे धागे भाई के लिए रक्षाकवच…जो जीवन भर साँसों का तार जोड़े रखता है.

विनोद सिन्हा “सुदामा”

गया-बिहार

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