संस्कारहीन – रोनिता कुंडु : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : सुमन..! चाय नाश्ते का क्या हुआ..? बुआ जी के जाने के बाद नाश्ता लाओगी क्या.? सरला जी ने कहा…

 सुमन हड़बड़ाते हुए चाय नाश्ता लेकर आई और कहा हो गया मम्मी जी… ले आई…

सरला जी:   क्या कहूं जीजी..? यह आजकल की लड़कियां सिर्फ फैशन करना जानती है… कुछ काम कह दो तो बस फिर तो श्यामत है.. एक हमारा समय था सास के कुछ बोलने से पहले ही काम खत्म… संस्कार तो हमारे रग रग में थी जीजी… पर आजकल की लड़कियां बिल्कुल ही संस्कारहीन हो गई है… बस चार किताबें क्या पढ़ लेती है सोचती है कि सब आ गया… 

सुमन को यह सब सुनकर बुरा लगा, अभी कुछ ही महीने हुए थे सुमन को ब्याह कर इस घर में आए हुए और तभी से सरला जी उसे हर एक बात के लिए टोकती… कभी यह सही नहीं हुआ तो कभी ऐसा मत करो… वह हमेशा ही उसके कामों में नुक्स निकालती.. आज भी बुआ जी के आते ही सुमन रसोई में चाय नाश्ते के लिए चली गई, उसे गए बस अभी 15 मिनट ही हुए थे की सरला की उसे आवाज देने लगी 

अगली सुबह सरला जी:   सुमन..! परसों प्रतिभा आ रही है, वह दामाद जी भी उसे छोड़ने आ रहे हैं तो उनके लिए अच्छा खाना बना देना और दामाद जी को गुलाब जामुन बहुत पसंद है, तो वह तो जरूर बनाना…

 सुमन:  ठीक है मम्मी जी..! 

उसे दिन सुबह-सुबह ही सुमन को सरला जी ने ना जाने कितने ही पकवान बनाने के लिए लिस्ट थमा देती हैं और सुमन भी लग पड़ती है उस लिस्ट को पूरा करने में… फिर सरला जी की बेटी और दामाद अरुण आने के बाद में सभी दोपहर में खाने बैठते हैं… खाने के बाद सरला जी अरुण से कहती है… रुकिए दामाद जी आपके लिए गुलाब जामुन भी है अभी… जा सुमन ले आ

सरला जी के गुलाब जामुन कहते ही सुमन को याद आया कि उसने तो गुलाब जामुन बनाया ही नहीं… पर अभी अगर वह यह बात सरला जी को बताएगी तो सरला जी फिर उसके संस्कारों का पोथा खोलकर बैठ जाएगी… इस बात से घबराते हुई सुमन रसोई में परेशान घूमने लगी 

इधर प्रतिभा कहती है.. मां गुलाब जामुन हम हाथ धोकर आराम से सोफे पर बैठकर बातें करते हुए खाएंगे, यह कहकर वह रसोई में जाती है फिर थोड़ी देर बाद सुमन सबके लिए गुलाब जामुन लेकर आ जाती है 

सरला जी:   यह कैसे गुलाब जामुन बनाए हैं सुमन.. सच में कोई गुण नहीं है तुममे… इस अच्छा मैं शंकर के दुकान से ही ले आती, बेकार में दामाद जी को यह गुलाब जामुन तो नहीं खाने पड़ते…

 प्रतिभा:  मां यह गुलाब जामुन शंकर के दुकान के ही है… जिसकी अभी आप बड़ी तारीफ कर रही है… सरला जी:   यह क्या कह रही है तू बेटा..? यह गुलाब जामुन उसके हो ही नहीं सकते.. 

 प्रतिभा:  मां आप चाहे तो उनसे पूछ सकती हैं..

 सरला जी:   पर यह कैसे हो सकता है..? मैंने तो इसे घर पर ही बनाने को कहा था और इसने दुकान से मंगवा लिया..? तो तुम अब अपनी सास को उल्लू बनाने की सोचने लगी हो..? बस ऐसे ही तुम्हें मैं संस्कारहीन नहीं कहती..

 अरुण:  हां मम्मी.. प्रतिभा भी बिल्कुल संस्कारहीन है.. जब भी घर में कोई मेहमान आता है… आधा खाना यह बनाकर बाकी का ऑनलाइन ऑर्डर कर लेती है.. यह भी हमें ऐसे ही उल्लू बनाती है 

सरला जी:   यह क्या कह रहे हैं दामाद जी आप..? अब आपके यहां तो हमेशा ही मेहमान आते हैं, तो ऐसे में कोई कितना खाना बनाए. अगर इसी वजह से कभी ऑनलाइन ऑर्डर कर भी दिया तो यह कोई जुर्म थोड़े ही ना हो गया..?

 अरुण:  पर मम्मी अभी आपने सुमन को तो इसी बात पर संस्कारहीन कहा ना..? फिर वह प्रतिभा के लिए अलग कैसे हो गया..?

सरला जी:   दामाद जी… सुमन की बात और है.. उसने बिना मुझे बताएं यह सब किया, जबकी प्रतिभा आपको बता कर करती है…

 प्रतिभा:   नहीं मां मैं भी बता कर नहीं करती, करने के बाद बताती हूं…

 सरला जी:   जरूर तेरी कोई मजबूरी रहती होगी और उसके हिसाब से तो जो तुझे ठीक लगता है वही करती होगी, पर इसकी क्या मजबूरी है..?

 प्रतिभा:  मां सुबह से इतना सारा खाना बनवाया आपने, तो बेचारी भूल गई तो इस पर आप हमेशा संस्कार पर उंगली उठा दोगी तो फिर यह कभी आपसे अपने दिल की बात नहीं कर पाएगी… तो क्या हुआ जो गुलाब जामुन बाहर से मंगवा लिए..? बेटी की मजबूरी के साथ-साथ उस बेटी की मजबूरी भी देखनी पड़ेगी जो अपना घर बार छोड़कर यहां तक अपने माता-पिता को भी छोड़कर आपका घर बसाने आई है 

अरुण:   पता है मम्मी… हमारे बीच हमेशा इस बात को लेकर बहस हो जाती थी पहले, क्योंकि बचपन से मैंने भी हमेशा औरतों को समझौता करते देखा है, तो मेरे दिमाग में यही बात बैठी थी, की औरत कभी तक नहीं थकती, गलती नहीं कर सकती, कोई फरमाइश नहीं कर सकती, पर यह सब जब अपनी बेटी करे तो फिर बर्दाश्त भी नहीं होता और तभी से मेरा नजरिया भी बदल गया… आखिर मेरी बेटी भी कल किसी की बहू बनेगी, तब उसे भी इन सब छोटी-छोटी बातों के लिए संस्कारहीन कहा जाएगा तो मुझसे भी बर्दाश्त कहां होगा..?

प्रतिभा:  मां..! आज सुमन को रसोई घर में डरताऔर परेशान देखकर मैंने ही शंकर की दुकान से गुलाब जामुन मंगवा लिया… आप सुमन के हर एक काम में नुक्स निकालती, जबकि उसका बनाया हर खाना आज लाजवाब था… पर नुक्स निकालते निकालते आपने उस खाने पर भी नुक्स निकाल दिया जो उसने बनाया ही नहीं… मां आपको मेरी जली कच्ची रोटियों में भी स्वाद आता था, पर आज सुमन के साथ ऐसा व्यवहार क्यों..? उसका बनाए स्वादिष्ट खाना भी आपको बेस्वाद क्यों लग रहा है.? 

सरला जी:   बेटा तेरी दादी के नक्शे कदम पर चलकर एक खडूस स बनने चली थी, पर मैं यह भूल गई थी कि तेरी दादी के उस रवैये के कारण मैंने कभी उन्हें दिल से सम्मान नहीं किया… हमेशा खटकती थी वह मुझे और आज मैं अपने बहू के लिए वैसे ही बन रही थी… पता नहीं क्या हो गया था मुझे..? माफ कर दे सुमन… हम औरतें हमेशा अपनी सास के नक्शे कदम पर चलना चाहती है और सोचती है जो मैंने झेला है, वही परंपरा है… बस इसी कारण यह खोखले परंपरा हमारे सर का बोझ बन जाती है और घर में क्लेश का कारण भी बन जाती है.. 

क्यों दोस्तों सही कहा ना मैंने..? अपने राय विचार मुझसे अवश्य सांझा करें 

धन्यवाद 

#संस्कारहीन

– रोनिता कुंडु 

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