संस्कार का बीजारोपण….. – कामिनी केतन उपाध्याय

दूसरे दिन जतिन ने गरमागरम चाय लिए किसनलाल जी को उठाया, किसनलाल जी ने चाय पीते हुए कहा,” बेटा, एक बात कहना चाहता हूॅं घर की लक्ष्मी से इस तरह की बातें करना अच्छा नहीं है। तुम दोनों तो इस घर के पहिए तो दोनों एक दूसरे का साथ नहीं दोगे तो कैसे चलेगा ? बहू को समझा लो बेटे और उसका साथ दो । मेरा तो क्या है आज हूॅं कल नहीं भी रहूं फिर तुम अकेले रह जाओगे।” 

“ठीक है पापा, आप के कहने पर उससे बात कर समझा लेता हूॅं पर आप को भी पता है कि आप का कोई अपमान करें ये मुझसे बर्दाश्त नहीं होता है। मुझे पता है कि आप ने किस तरह मुझे पाल पोस कर बड़ा किया है ” कहते हुए आंखों में आसूं लिए जतिन किसनलाल जी के पास से उठकर अपने कमरे में चला गया ‌। कुछ सोचकर उसने अवनि को तैयार होने को कहा साथ ही अपने बच्चों को भी..!!

जाने से पहले जतिन ने किसनलाल जी का पसंदीदा नाश्ता वेजिटेबल उपमा बना कर किसनलाल जी को अपने हाथों से खिलाया साथ में बच्चों को भी ..!! अवनि को भी एक प्लेट में निकाल कर दिया । नाश्ता करा कर जतिन ने किसनलाल जी को कहा,” पापा, आप आराम करिए, मैं बच्चों और अवनि को घुमाकर आता हूॅं।” किसनलाल जी ने हॉं में सिर हिला दिया ।

जतिन, अवनि और बच्चों को शहर से दूर पर गांव के करीब एक पुराने खंडहर जैसे घर के सामने खड़ा कर दिया । अवनि और बच्चे जतिन की ओर देख रहे हैं, जतिन ने चाबी लेकर घर का ताला खोला और घर में प्रवेश किया। बच्चों और अवनि को भी घर में आने को कहा। घर में प्रवेश करते ही जतिन भावुक हो गया फिर भी अपने आप को संभालते हुए कहा,” अवनि, पहचानती हो इसे ?” 




अवनि ने सिर्फ सिर हिला कर ना कह दिया ।

जतिन ने होंठों पर मुस्कान लिए कहा,” कैसे पहचानोगी तुम ? क्योंकि तुम ने इसे कभी देखा ही नहीं । ये मेरे और मेरे पापा की अनमोल धरोहर है जो कभी हम यहां रहा करते थे । यहां मेरे बचपन से जवानी तक कि यादें सिमटी हुई है जो मैंने और मेरे पापा ने साथ गुजारी है ।

पापा गांव के अस्पताल में बतौर एक कम्पाउन्डर नौकरी करते थे, मॉं के चले जाने के बाद मुझे संभालने के लिए उन्होंने पूरी जिन्दगी रात की ड्यूटी को अहमियत दी। दिन भर मेरे साथ आगे पीछे घूमते रहते और रात में अपने साथ ले कर जाते और वहां अपनी आंखों के सामने सुला कर खुद की ड्यूटी संभालते ।

पापा ने मेरा ख्याल पिता के साथ साथ एक मॉं बन कर भी रखा, शायद मॉं होती तो भी इतना ख्याल और साथ ना दे पाती जितना पापा ने दिया । मेरी एक मांग या ख्वाहिश पूरा करने के लिए वो दिन रात जुट जाते, मुझे अभी भी याद है कि उन्हें अच्छी तरह से खाना बनाना नहीं आता था पर पर मेरे लिए उन्होने वो सबकुछ सिखा जो मॉं बना कर मुझे खिलाया करती थी और मैं बड़े चाव से खाता था । एक रात मुझे जोरों की भूख लगी थी और मैंने रात में ही बेसन के चीले खाने की मांग कर दी। अब पापा को बनाना नहीं आता था उन्होंने कभी मॉं को बनाते हुए देखा ही नहीं था तो कहां से आता ? 

फिर भी उन्होंने आधी रात में गांव गए और जाकर साथ में ड्यूटी करने वाली आंटी से रेसिपी पूछ कर वापस आ कर बेसन के चीले बना कर मुझे खिलाए । तब तक सुबह हो चुकी थी, ऐसे तो कई बातें हैं जो मैंने उनके पास की है और उन्होंने कभी मुझे मना नहीं किया है। सिर्फ खाने तक ही नहीं उन्होंने हर जगह हर पल मेरा साथ दिया है तो अब आप ही बताइए कि जब अब उन्हें संभालने की बारी मेरी है तो क्यों मैं अपने क़दम पीछे करुं ? वो चाहते तो मेरा तिरस्कार कर दूसरी शादी कर सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया । अब जब मेरी बारी है उनके साथ रहने और चलने की तो मैं क्यों उनका तिरस्कार करुं ? क्या मेरे पापा की जगह तुम्हारे पापा होते तो तुम उनका करतीं तिरस्कार ? “कहते हुए जतिन फफक फफक फफक रो रहा है।

अवनि के साथ साथ बच्चों की आंखों में भी आसूं आ गए, रोते हुए अवनि ने कहा,” जतिन, मुझे माफ़ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई है कि मैंने पापा जी को ग़लत समझा । मैं वादा करती हूॅं कि अपने जन्मदाता से बढ़कर उनका ख्याल रखूंगी।” 




जतिन ने उसे गले लगाते हुए कहा,” मुझे तुम से यहीं उम्मीद है कि तुम घर के साथ साथ मेरे पापा का भी ख्याल रखो।”

” फिर हमारा ख्याल कौन रखेगा ” दोनों बच्चे साथ में बोल पड़े तो हंसते हुए जतिन और अवनि ने कहा,” हम और कौन ?”

आज जतिन ने अपनी सच्चाई बयां कर पत्नी के साथ साथ अपने बच्चों में भी संस्कार के बीजारोपण कर दिया है कि पापा से बढ़कर और कोई नहीं है जो आप की ज़िन्दगी को हर हाल में बेहतर बनाता है।

#संस्कार

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद,

 कामिनी केतन उपाध्याय

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