संस्कार बड़ों से ही बच्चों को मिलते हैं – के कामेश्वरी

विनय मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मा था । अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था । पिता एक बहुत बड़े प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे ।विनय बहुत ही होनहार छात्र था इसलिए उसने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई बिट्स पिलानी में पूरी की थी।अहमदाबाद के कॉलेज में आइ बी एम की पढ़ाई पूरी की थी । माता-पिता को अपने बेटे पर गर्व महसूस होता था कि अकेला बेटा होने के बाद भी उन्होंने उसकी अच्छी परवरिश की थी। 

विनय ने अपने पिता से कहा कि वह अमेरिका में एम एस करना चाहता है । उन्होंने कभी अपने बेटे की किसी भी बात पर इनकार नहीं किया था क्योंकि बचपन से उसने कभी उन्हें नहीं सताया था ख़ानदान में सब अपने बच्चों को विनय का उदाहरण देते थे कि वह कितना होनहार है अपने माता-पिता का आज्ञाकारी संस्कारी बेटा है देखो उसके समान बनो । 

पिता ने विनय से कहा ठीक है बेटा आप तरक़्क़ी करना चाहते हैं तो हमें कोई एतराज़ नहीं है । अमेरिका जाकर एम एस कर लो। पिता के हाँ कहते ही उसने वहाँ के लिए परीक्षा लिखी होनहार तो था ही अच्छा स्कोर आया जिसके तहत उसका अच्छे कॉलेज में दाख़िला भी हो गया था । माता-पिता को बॉय बोलकर वह पढ़ने के लिए अमेरिका चला गया था । 

पढ़ाई करते हुए ही उसने नौकरी भी करनी शुरू कर दी था । हर रोज़ माता-पिता से बात करता था पूरे दिन की बातें बताकर सोने जाता था । एम एस करने के बाद एक अच्छी कंपनी में नौकरी ले कर इंडिया पहुँच गया था । माता-पिता की आज्ञानुसार ही उनकी पसंद की लड़की सीमा से शादी की थी।  सीमा भी पढ़ी लिखी थी और बहुत समझदार थी । 




विनय शादी के बाद वापस अमेरिका गया और थोड़े ही दिनों में घर भी ख़रीद लिया अपने माता-पिता को वहाँ ले जाता था या खुद आता था । इस बीच उसके भी दो बच्चे हुए लड़का संपत लड़की सुरुचि । दादा दादी हर साल बच्चों से मिलने अमेरिका चले जाते थे । विनय की माँ भी पढ़ी लिखी स्वतंत्र विचारों वाली महिला थी । इन्हीं दिनों पिता की मौत हृदयघात से हो गई थी । माँ को विनय ने अपने पास ही बुला लिया परंतु उन्होंने कहा कि जब तक मैं अकेली रह सकती हूँ रह लूँगी नहीं तो तुम्हारे पास आ जाऊँगी विनय ने कहा ठीक है । विनय को भी नौकरी में ज़िम्मेदारी बढ़ गई थी । बच्चे बड़े हो गए और बाहर जाकर पढ़ने लगे । इसलिए उसे अपनी माँ से बात करने की फ़ुरसत नहीं मिलती थी । माँ ही फ़ोन करती थी तब भी वह माँ कॉल है बाद में करता हूँ कह देता था । ऐसा करते हुए उनमें दूरियाँ बढ़ गई । आज वह पंद्रह बीस दिन में सिर्फ़ यह पूछने के लिए कि पैसे चाहिए क्या कैसी हो बस दो बातें होती थी । माँ ने भी बात करना बंद कर दिया था पर हाँ पोता पोती उनसे बराबर बात करते थे । 

करोना काल के बाद विनय इंडिया आया पूरे चार साल बाद उसने इंडिया में पैर रखा था । ऑफिस का काम था। विनय के पहुँच ने के दो दिन बाद सीमा भी आ गई थी । दोनों ने हैदराबाद पूना मुंबई में बहुत घूमे । दस दिन यहीं रहकर अपनी माँ से मिलने नहीं गया जो बैंगलोर में रहती थी । सीमा ने भी अपना सारा समय शापिंग में बिताया पर अपनी सास को फ़ोन भी नहीं किया था । पंद्रह दिन इंडिया में बिताकर बिना अपनी बूढी माँ से मिले विनय अमेरिका चला गया था । 

(यह कल की बात थी आज की बात पढ़िए )…..




विनय और सीमा अपने बेटे से फ़ोन पर बात कर रहे थे। विनय उसे डाँट रहा था कि तीन दिन हो गए हैं संपत तुम्हारा फ़ोन नहीं आया है। तुम्हें मालूम है न कि हम दोनों तुम्हारे और सुरुचि के फ़ोन का कितनी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं । ऐसे कौनसे काम कर रहे हो कि अपने माता-पिता को एक फ़ोन कॉल नहीं कर सकते हो । तुमसे छोटी है तुम्हारी बहन कम से कम अलट्रानेट डेस में बातें तो कर लेती है।हमने आपको यही संस्कार दिए हैं क्या बड़ों की कद्र करना सीखो बेटा तुम्हारी माँ को तो तुम्हारे फ़ोन के न आने से नींद ही नहीं आती है । अब हम भी बड़े हो रहे हैं हमारे लिए आप दोनों ही तो हो ।

 संपत ने उनकी बातें सुनी फिर कहा- पापा आप इंडिया गए थे।

विनय ने कहा— हाँ बेटा ऑफिस के काम से गया था तो माँ को भी ले गया था। 

संपत— अरे वाह कितने दिन रहे वहाँ । 

विनय— पंद्रह दिन रहे थे संपत तुम्हारी माँ ने बहुत शापिंग की थी । तुम लोगों के लिए भी बहुत कुछ खरीदा है ।जब आओगे तब दिखाएँगे । 

संपत— दादी के घर नहीं गए पापा!!!

विनय— नहीं संपत समय ही नहीं मिला था। अगली बार वहीं पहले जाऊँगा मैंने सोच लिया है । 

संपत— वाह पापा मैंने फ़ोन नहीं किया था तो आप और माँ एक घंटे से मुझे बातें सुना रहे हैं। आप दादी के इकलौते बेटे हो तीन साल बाद इंडिया गए हो और अपनी माँ से मिले नहीं और न ही फ़ोन किया है। मुझे दादी ने सब बताया है।आपको नहीं मालूम है मैं और सुरुचि रोज़ दादी से बातें करते हैं । पापा आप से ही तो हम सब सीखते हैं। आप सोचिए कि हमारे बात नहीं करने पर आपको कितनी तकलीफ़ हो रही है फिर दादी को भी तो बुरा लगा होगा न मैं आपको ग़लत नहीं ठहरा रहा हूँ दादी कल जब रो रही थी तब मुझे बुरा लगा तो मैं आपको एहसास दिलाना चाहता हूँ कि हम आपके लिए जैसे हैं दादी के लिए आप वैसे ही हो। एक बात बताऊँ पापा दादी आपके लिए सोचती है आपको मालूम जब आप दादी से मिलने नहीं गए तो भी उन्होंने आपको गलत नहीं समझा सिर्फ़ यही कहा कि उसे फ़ुरसत नहीं है बेटा इतने बड़े पोस्ट पर है।अपने बेटे से यह सब सुनकर विनय और सीमा को अपनी गलती का अहसास हो रहा था। विनय सोच रहा था कि जरूरी नहीं है कि बच्चे बड़ों से सीखे कभी-कभी बड़े भी बच्चों से बहुत कुछ सीख लेते हैं । मेरी माँ ने मुझे अच्छे संस्कार दिए थे। वे ही मेरे बच्चों में भी हैं । संपत ने मेरी गलती न बताते हुए भी बता दिया था । 

दोस्तों माता-पिता के लिए भी समय नहीं निकाल सके तो इससे दुखद बात और कुछ नहीं हो सकती है । हम कितने भी व्यस्त क्यों न हो उनके लिए समय निकालना हमारा धर्म है । हमें देख हमारे बच्चे भी यही सीखते हैं। 

#संस्कार 

के कामेश्वरी

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