समय का चक्र – स्वप्निल “आनंद” : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सरिता जी प्रत्येक गर्मी की छुट्टियों में अपने दोनों बेटों को लेकर अपने मायके चली जाती थीं। उनके मायके में उनका छोटा भाई, भाई की पत्नी ऋतु और उनके 2 छोटे–छोटे बच्चे थे। गांव का समाज था, इसलिए सामाजिक प्रचलनों का भी पालन करना अनिवार्य माना जाता था।

सरिता जी के आने से ऋतु पर जिम्मेदारियां बढ़ जाती थी। सरिता जी कभी भी रसोई में ऋतु का हाथ बंटाने नहीं जाती थी। उनका मानना था, “वर्ष में एक बार तो मायके आती हूं, यहां काम क्यों करूं? एक महीने आराम से रहने का तो अधिकार है मुझे।”

बेचारी ऋतु अपनी बड़ी ननद से किसी भी मदद के लिए कुछ कह नहीं पाती थी।

घर का सारा काम करके ऋतु जैसे ही अपने कमरे में सोने जाती, सरिता जी अपने दोनों बच्चों को उसके पास भेज देती।

ऋतु उनके बच्चों को संभालती रह जाती और सरिता जी चैन से सो जाती थी।

इतना ही नहीं, पूरे दिन भारी साड़ी और आभूषणों में लिपटी, घूंघट किए हुए ऋतु का गर्मी से बुरा हाल हो जाता पर प्रथाओं का लिहाज तो करना ही था। ननद की सेवा में वह कोई कमी नहीं छोड़ती परंतु फिर भी सरिता जी संतुष्ट नहीं होती थी।

10 वर्षों बाद अब सरिता जी के बड़े बेटे का विवाह हुआ। बहू कुछ महीनों तक तो सामान्य रही, फिर धीरे–धीरे उसके तेवर प्रकट होने लगे। अब बहू किचन में जाती तो सरिता जी को सब्जियां काटने के लिए बुला लेती। बर्तन वह धुलती तो कपड़े धोने का काम सरिता जी के जिम्मे आ गया। बहू की बिटिया हुई तो उसकी देख–भाल की भी अधिकतर जिम्मेदारी अब सरिता जी को ही संभालनी पड़ रही थी।

हद तो तब हो गई, जब बहू ने एक दिन घर में दूध कम होने पर सरिता जी को दूध में पानी मिला कर पीने को दे दिया।

हाथ में दूध का गिलास थामे सरिता जी के आंखों से # पश्चाताप के आंसू झरने लगे। एक तरफ जहां उन्होंने ऋतु के सेवा भाव को कोई खास अहमियत नहीं दी थी, वहीं दूसरी तरफ वृद्धावस्था में उन्हें अपनी ही बहू द्वारा ऐसे तुच्छ व्यवहार का सामना करना पड़ा। आज मन ही मन वह ऋतु के साथ अपने पूर्व के बरताव को सोच –सोच कर शर्मिंदा हुए जा रही थी और पछताते हुए ईश्वर से क्षमा मांगने लगी।

#पश्चाताप

© स्वप्निल “आनंद”

स्वरचित और अप्रकाशित

 

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