सम्वेदना : बेटी की माॅ के प्रति – शिव कुमारी शुक्ला  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मीता  तैयार हो ऑफिस के लिए निकल ही रही थी कि तभी पापा विजय जी की आवाज सुनवाई दी ।मीतू इधर आओ  बेटा मुझे तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है। 

मीतू – पापा अभी मुझे देर हो रही है ऑफिस का समय हो गया है शाम को बात करते हैं। 

पापा ठीक है, जाओ। और वह निकल गई। उससे तो विजय जी  ने  जाने को कह दिया! किन्तु उसके जाते ही मालतीजी  ( मम्मी) पर  बरस पड़े। यह सब तुम्हारे लाड प्यार का ही करा धरा है। जो लडकी बात तक करने को तैयार नहीं। क्या जरुरत है नोकरी करने की  अगर करनी ही है तो अपने घर जाकर करें। कम से कम  उसकी शादी कर  अपने भार से मुक्त हूँ। मैं कहता हूँ की समझाओ उसे, बह तो नसमझ है परंतु तुम्हारी बुध्दि पर क्या पत्थर पड गये है। तभी मालती जी ने ऑखों में भर आए आँसुओ को रोकते हुए चुपचाप चाय के बर्तन उठाए और किचन में चली गई। किचन में  जाकर वे अपने आँसूओं को नहीं रोक पाईं। नीया जो कि उनकी बहु थी चुपचाप खडी – खडी देख रही थी उसकी समझ में नहीं आया कि वह क्या कहे।

तभी बेटे देव की आवाज  आई, निया कहाँ हो मेरा टिफिन कहाँ है। मेरा ऑफिस वेग निकाला तुम से कोई काम समय पर नहीं होता।पता नहीं क्या करती रहती हो। बडबडाते हुए निकल गया निया आँखों में आँसू लिए उसे जाते देखती रही शाम को चाय पीने के बाद विजय जी अधीरता से मीतू के आने का इंतजार कर रहे थे।तभी फोन पर बात 

 करते हुए मीता ने घर में प्रवेश किया।  मीता अब समय है विजय जी कीआवाज गूंजी।

 हाॅ पापाआती हूँ। 

  मालतीजी -थकी हुई आई है पहले उसे कुछ चाय-पानी तो कर लेने दो।  लगभग चीखते हुए विजय जी बोले- तुम चुप रहो।

तभी उनकी आवाज सुनकर मीता अपने कमरे से निकल कर आई। और उनके पास बैठते हुए बोली- हाँ पापा पूछिये क्या पूछना है आपको मुझसे। 

ध्यान से सुनो और मुझे तुम्हारी सहमति ही चाहिये मैं ना नहीं सुनना चाहता। मैंने कल नवीन और उसके माता-पिता को बुलाया हे वे कल तुम्हे देखने आ रहे है। है हर हालत में यह रिश्ता करना चाहता हूँ क्योंकि परिवार, और लडका मुझे उपयुक्त लगे और मैं तुमसे केवल हाँ ही सुनना चाहता हूँ। ताकी  शादी कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो  जाॅऊ । मीता बोली पापा जब सारा निर्णय आप ले चुके हैं तो फिर मेरे से क्या पूछना है। आपने तो मुझे बोलने का हक भी नही दिया कि मैं अपने जीवन के इतने अहं  फैसले के बारे में सोच भी सकूं।

 पापा – क्या तुम इतनी बडी और समझदार  हो गई हो कि मेरे जीवन का अनुभव तुम्हारे सामने बेकार है।

नहीं पापा मैं ये नहीं कह  रही किन्तु मुझे भी अपनी बात रखने का आप मौका तो दें। देव भी ऑफिस से आ गया और  वह भी वहीं बैठ गया। निया सब के लिए  चाय बना कर वही ले आई और बह एक तरफ खड़ी हो गई। क्योंकि ससुर सामने के सामने उसे बैठने कि अनुमति नहीं थी।

मीता ने बातों का सिरा पकड़ते हुए बात  शुरु की पापा  मैं बस इतना कहना चाहती हूं  कि मैं अभी शादी नही करना चाहती, कारण मेरे भी अपने कुछ अरमान  हैं, इच्छायें हैं जिन्हें में पूरा करना चाहती हूँ मैं अपने पैरों पर खड़ी होकर आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं ताकि कोई मुझे ये न सुना पाये कि, तुम्हें खाना, कपड़ा देता हूँ सिर पर छत मेरे कारण है।

पापा- तू  ये कैसी बातें कर रही है। अपने शौक ,अरमान  सब जाकर अपने पति के घर पूरे करना यदि पति और सास ससुर अनुमति दें तो। 

और यदि उहोंने अनुमति नहीं दी तो कब और कैसे करूंगी।

 ये सब फिजूल की बातें है ग्रैजुएशन कर लिया। शादी व्याह कर अपनी गृहस्थी में रम जाओ, औरतों को यही शोभा देता है।

 हाॅ, यही शोभा देता है कि जीवन भर अपनी स्वतन्त्रता दूसरों  की इच्छा पर गिरवी रख दो और फिर वे जैसा नाच नचायें नाचो। हर बात के लिए ताने उलाहने सुनो और यदि तकलीफ में रोने का मन करे तो उसकी भी आजादी नहीं। घुट घुट कर सास-ससुर, पति, बच्चों की तीमारदारी में अपनेआस्तित्व को  ही भुला दो।

 क्या तेरी  माँ नहीं रही उसे क्या  कमी है खाना, कपडा, मकान क्या नहीं मिला उसे।

में माँ की तरह महान नहीं हूॅ न मैं उनका सा जीवन जी सकती हूॅ। जहाँ परिवार में अपना गमभी हल्का करने की स्वतन्त्रता  न हो, कोई ऐसा मजबूत काॅधा न मिले जिस पर सर रख कर अपने ऑसू बहा सके।

पापा -बहुत बड़ी हो गई है , बडी बडी बाते करने लगी है कहाँ से सीखती है यह सब ।कहीं तेरी माँ तो तुझे यह सब नही सीखाती।

पापा जोर से मीतू चिल्ला पडी। माँ को बीच में न लायें ये सब मैंने सीखा है आपके माॅ के प्रति व्यवहार से। जब छोटी थी तो नहीं समझती थी। माॅ को रातों में रोते देख सोचती थी  उनके कहीं दर्द हो रहा है ।मैं पूछती  थी  माॅ  क्यों  रो रही हो दवा लगा दूं । तब मेरी बालसुलभ बातें सुनकर हॅस पडती ।ऑखों में ऑसू ओठों पर मुस्कान यही थी उनकी पहचान। फिर जैसे जैसे मैं बडी होती गई कुछ-कुछ बातें मेरी समझ मे आने लगी।मैं देखती थी कि माँ सुबह से देर रात तक काम मे लगी रहती फिर भी कोई उनसे यह नही पूछता कि उन्होंने खाना खाया है या नही ,उन्हे कोई तकलीफ है क्या। दादी दादू, चाचू बुआ और आप भी सब उन पर सवार रहते कि यह नही किया वह नही किया । हर समय जली कटी सुनाना ताने उलहाने माराना ।नानू के घर को लेकर उन्हें उल्टा सीधा बोलना। और अब जब में पूरी तरह सब समझ गई है तो कम से कम मैं तो ऐसा जीवन नहीं चाहूगीं ।आपने कब एक अच्छा पति बन माॅ का साथ निभाया। अपने माता-पिता भाई बहन के कहे अनुसार ही आपने भी तो उन्हें अपमानित किया। अपना घर, मातापिता भाई बहन सबको छोड आपका हाथ पकड आपके भरोसे वह इस घर मे आई थी।  क्या सपोर्ट दिया आपने माँ को। क्या कभी आपने माँ से पूछा कि वह क्या चाहती हैं उन्हें क्या  अच्छा लगता है। खाने की स्वतंत्रता नहीं, पहनने की नहीं, कहीं आनेजाने की नहीं ,सिर्फ सबकी  इच्छानुसार लट्टू सी घूमती  रही ,उनका अपना आस्तित्व ही खत्म हो गया वह केवल मिसेज शर्मा, किसी की बहु,  किसी की भाभी, और अपने बच्चों  की माॅ थी वो खुद कौन थी, क्या थी, पता नहीं | 

अब पापा कुछ संयत स्वर में बोले  तू कब से  इतना सब सोच  रही है।

मैंने जब से होश सम्हाला है माॅ को  रोते ही देखा है। याद है आपको एक बार जब नानी की तबियत खराब थी तब आपने  उन्हें यह कह कर मेरी माँ की भी तबीयत  ठीक नहीं है चुपचाप उनकी सेवा करो मायके जाने का भूलकर भी नाम नहों लेना। माॅ कितना रोई थी,कितना  गिडगिडाई थी कि एक बार  मुझे मेरी मां से मिला दो किन्तु आपने नहीं जाने  दिया ।चौथे दिन नानी माॅ से मिले बिना ही  स्वर्ग सिधार गई। क्या यह अन्याय नहीं था वे पत्नी हैं आपकी बँधुआ मजदूर नहीं जो उनके जाने से काम की परेशानी होगी इस कारण वो अपनों से भी नहीं मिल सकती ।मुझे याद  है माॅ  नानी का फोटो देख-देखकर चुपके-चुपके रोती रहती थीं कोई उन्हें सान्तवना भी   देने वाला नहीं था इस घर में । पापा सब कुछ मैंने देखा है। आपको याद नहीं होगा कि एक बार जब चाचू अपने परिवार के साथ आए थे तो आप कितनी चीजें बाजार से लाए थे। माॅ  से कैसे उनकी  खातिरदारी करवाई थी घंटो वे रसोई में न जाने क्या क्या  बनाती रहती थी ।बुआ के आने पर दादी माँ को कितना सुनाती थी। नन्द आई है ये बना वोकर माॅ चुपचाप करती रहती किन्तु आजतक कभी मेरी मौसी अपनी बहन से मिलने नही आ सकी। मुझे याद है एक बार जब मामा आए थे वे कितना कुछ लेकर आए  थे पूरे  परिवार  के लिए कपडे, माँ के लिए  ऑगूठी, फल, मिठाई फिर भी आपने उनसे सीधे मुँह बात नही की, क्यों पापा क्या में गलत कह रही हूँ। बताइये क्या ये सब माॅ को बुरा नहीं लगता होगा। कल को मेरी ससुराल मे आपका और भैया का कोई ऐसे अपमान करे तो क्या में सहन कर  पाऊँगी। पापा आपके माॅ के प्रति व्यवहार  ने ही मुझे यह सब सीखा दिया। आपके व्यवहार की जो छाप मेरे बालमन पर पडी है वह इतनी पक्की  है कि ससुराल से, शादी से, और  पति नाम के जीव से ही मुझे डर लगता है। इसलिए मैं शादी  न करके रवतंत्र  रहना चाहती हूँ।

आज बेटी की बात सुनकर पापा निरूत्तर थे ,वह कहीं भी कुछ भी गलत नही बोल रही थी। आज वे अपने व्यवहार के लिए शर्मिन्दा थे। फिर भी वे अपनी बेटी को समझते हुए बोले- बेटा जैसे पाँचौ उगलियाॅ बराबर नहीं होती वैसे ही हर ससुराल और पति भी एक जैसे नहीं होते। फिर हमारा जमाना और था,अब नई पीढ़ी में बदलाव आ गया है। नई पीढ़ी के बच्चे अपनी पत्नी का ध्यान अच्छे से रखते हैं, तू चिन्ता मत कर। 

हाॅ ,जैसे मेरे भैया मेरी निया भाभी का रखते है। क्या उम्र हैअभी उनकी  आप लोगों ने उन पर कितनी पाबन्दियाँ लगा रखी हैं साडी पहनो, सिर ढको ,कोई और ड्रेस का तो सोचना ही नहीं ।कोई पूछता है कि उन्हें क्या  खाना पंसद है, कहाॅ आना जाना चाहती है, वो जीवन में क्या शौक रखती हैं, क्या करना चाहती है, भैया ने कभी जाननै की कोशिश की। यदि भैया इतने ही समझदार होते तो वे माॅ की तकलीफ समझते, उसे कम करने का प्रयास करतै वे मुझसे चार साल बडे हैं,किन्तु वे तो आपके नक्शे कदम पर चलकर पत्नी नामक जीव को अपने पेरों की जूती ही समझते हैं। माँ की स्थिती में और भाभी की स्थिती में क्य अन्तर है सिवाय इसके की दादी की तरह माँ उन्हें कभी परेशान नहीं करती सो वह कमी आप पूरी करते हैं।

 माॅ के साथ की बिमला आंटी, म॔जू आंटी और भी  वे सब कितना खुश रहती हैं ,वह तो आपके जमाने के हैं।  अब भैया की शर्मिन्दा होने की बारी  थी। ।बाप बेटे अपने ब्यवहार के कारण बगलें  झंक रहे थे। शब्द उनके मुँह से नहीं फूट रहे थे ।आज बेटी ने उन्हें सच का आइना जो दिखा दिपा था।

पापा मैं स्वतंत्रता के एवज कोई सुख न नहीं चाहती मेरी कुछ शर्तें है वो कल आप पहले नवीन और उसके परिवार वालों से पूछ लेना यदि उन्हें मंजूर हो तो में शादी के लिए तैयार हूँ ।

मैंअपनी इच्छा,अपने अरमान  पूरे करूंगी ।नौकरी करुंगी ,मुझे मेरे मायके मे नाम पर  न तो कोई उलाहना देगा और न आप लोगों से मिलने से कोई रोकेगा। जब इच्छा होगी मैं आपलोगो से मिलूंगी। मेरे मायके वालों का परिवार में उतना ही सम्मान होगा जितना उसके परिवार वालों का ।मेरे पहनने खाने आने जाने पर कोई रोक टोक नहीं  होगी  जैसे में रहना चाहूगीं रहूँगी। यदि उन्हें ये सब मंजूर है तो ही बात आगे बढेगी। नहीं तो मैं जीवन मे उस सुपात्र का इन्तजार करूंगी जो मुझे और मेरी भावनाओं को समझोगा, मेरा साथ कदम कदम पर देगा। जो मुझे केवल अवैतनिक कर्मचारी चौबीसों घंटे  तीनसो पैंसठ दिन की न समझ वास्तव में मेरे सुख-दुःख का साथी होगा ।मेरा पति होने के साथ-साथ वह मेरा दोस्त भी होगा जिससे मैं बिना डरे, बिना झिझके अपने मन की बात कर सकूं। जब मुझे ऐसा साथी मिलेगा तब मैं आपकी अनुमति  से उससे शादी कर लूगीं आप मेरी चिन्ता छोड़ दें।

पापा और भाई अपनी करनी पर सिर झुकाए निरूत्तर थे।

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित मोलिक अप्रकाशित

#अरमान

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