उम्मीद भरे हाथ – लतिका श्रीवास्तव

..आज फिर उम्मीद लगा बैठी थी सुरम्या कि कोई उसे मनाने आयेगा बिना बताए ही समझ जायेगा कि उसके मन को कौन सी बात मथ रही है लेकिन सुबह से शाम और रात हो गई सब अपने अपने में व्यस्त हैं रात में उसने खाना भी नहीं खाया विराग ने कुछ चिंता से पूछा था खाना क्यों नहीं खा रही हो तब उसने भी यूं ही भूख नहीं होने का बहाना किया और विराग ने तुरंत यकीन भी कर लिया कि हां शाम को तुमने ज्यादा नाश्ता कर लिया होगा  अब रात में खाना नहीं खाओगी तो अच्छा रहेगा……!

भूख क्यों नहीं है ,क्या चिंता कर रही हो !!ये सब तो एक तरफ रह गया मनुहार से खाना खिलाएंगे वो भी नहीं….तुम आराम करो कहते हुए उसने ने आराम से टीवी सीरियल देखते हुए खाना खा लिया।

इस तरह की उम्मीद मैं इन लोगों से लगाती ही क्यों हूं….किसी को फुर्सत नहीं है मेरे पास बैठने बतियाने की….उम्र हो गई है ना मेरी अब…ठीक से सुनाई भी तो नहीं देता है…शायद आंखों से ठीक से नहीं देख पाने के कारण सुनाई भी नहीं पड़ता है….कभी पूरा घर मेरे चारो तरफ घूमता था … सब्जी कौन सी बननी है!!कौन बाजार जायेगा!नए कपड़े कहां से खरीदने है!! बच्चों का स्कूल!!से लेकर मेहमान नवाजी ,शादी ब्याह,तीज त्योहार, लेन देन सब कुछ सुरम्या करती रहती थी…उसके बिना तो मानो घर सांस ही नहीं ले पाता था..!

….और अब….दो दिनों बाद उसकी पोती शिवी की सगाई होनी है …उसके ससुराल वाले आए थे बात करने…सब कुछ तय हो गया…वो लोग चले भी गए…किसी ने एक भी बार उससे कुछ पूछा क्या  मिलने मिलाने तक के बारे में नहीं सोचा..!!ड्राइंग हॉल के पीछे ही तो सुरमया का कमरा है…सारी आवाज़ उसको दिन भर सुनाई पड़ती रही…बात करने हंसने खाने पीने की…विभिन्न प्रकार के सुस्वादु व्यंजनों की सुगंध और काल्पनिक स्वाद से उसका मन तरंगित होता रहा…हर आहट उसके दिल में एक नई उम्मीद जगाती रही कि अब उससे मिलने उसको बुलाने कोई आ रहा है…पर ऐसा कुछ नहीं हुआ…आज उस चहकती रौब जमाती सुरम्या की जगह एक अशक्त असहाय शिथिल नाउम्मीद  सुरम्या ने ले ली थी..!



 

पर  आज की घटनाओं की जानकारी लेने की अभिलाषा उसे कमरे से खींच कर डाइनिंग हॉल तक ले आई थी….उसने खाना खा रहे विराग के पास बैठ कर कुछ कहना ही चाहा था कि बेटा क्या कहा उन लोगों ने !!कौन कौन आया था!!….तब तक विराग भड़क उठा था ..आप क्यों यहां चली आईं!!आपको क्या करना है ये सब जानकर आपके जानने लायक कुछ होगा तो बता दिया जाएगा…माला है… सब संभालना आता है उसे…!!…निरुत्तर सी सुरम्या वापिस अपने शांत एकांत कक्ष में निरुपाय सी बैठ गई…..उसके कमरे में एक थाली में भोजन भिजवा दिया गया था वो भी मेड के हाथों….जिसको कौन आया था क्या बात हुई इन सबकी कोई जानकारी नहीं थी वो तो बस निरपेक्ष भाव से खाना रख कर चली गई थी। सुरम्या भूख होने के बावजूद खाना नही खा पाई थी

शायद प्यार सम्मान और अपनापन पाने की भूख ने भोजन की भूख को परास्त कर दिया था।

उसे पूरी उम्मीद थी कि बहू माला जरूर आएगी सब हाल चाल बताएगी लेकिन वो भी नहीं आई…विराग तो उसका बेटा है जब उसी ने अपनी मां को अपनी मां की राय को कोई महत्व नहीं दिया तो किसी से क्या उम्मीद करना!!दिन भर के बाद रात का खाना नहीं खाने पर भी वो उद्वेलित नहीं हुआ!!सुरम्य को आज अपनी जिंदगी व्यर्थ प्रतीत हो रही थी …!!ये सब तो उसके घर के लोग ही है ना अब इनसे वो उम्मीद नहीं लगाएगी तो भला किससे लगाएगी!!कल तक तो सबकी उम्मीद वही पूरी करती रहती थी..पर आज घर का इतना बड़ा काज करते समय उसकी परवाह तक किसी को नहीं है उससे बिना पूछे सब कुछ तय किया जा रहा है!!



मेरे ही घरवालों को मेरी परवाह नहीं है…वो सब मुझसे घर में रहते हुए भी घर से निरपेक्ष रहने की उम्मीद करते हैं…किसी भी घरेलू मसले में उदासीन रहने की उम्मीद करते हैं….किसी भी तरह की टोका टाकी ना करने की ….अपने दिल की जिज्ञासाएं अबूझ रहने की उम्मीद करते हैं…निशी मेरी पोती है उसकी सगाई है शादी होगी …मैं उदासीन कैसे और क्यों रहूं!! मैंने भी उसकी शादी को लेकर कितनी उम्मीदें बांध रखीं हैं…कितने अरमान सजा रखें हैं…!मेरी बहु मुझसे सभी रस्म रिवाजों के बारे में पूछेगी…मेरा बेटा अपने समधी लोगों से बहुत सम्मान से मेरा परिचय करवाएगा…! उम्मीदें सारे अवरोध तोड़ कर आसमान छूने को आतुर थीं..!

उम्मीदों से ही तो जीवन रचा बसा है एक उम्मीद टूटती है दूसरी बंध जाती है ..जिंदगी का दूसरा नाम उम्मीद ही तो है।

…आज सगाई थी शिवी की …बहुत गहमागहमी थी घर में पर अब सुराम्या के दिल की सारी गहमागहमी घरवालों के अवहेलनापूर्ण बर्ताव से मृतप्राय थी..फिर भी वो चुपचाप आंख और मुंह बंद किए.. किसी से बिना कोई शिकायत किए ईश्वर से शिवी के सुख और कल्याण की मंगल कामना कर रही थी…तभी..” दादी मां चलिए ना मैं तो आपके ही साथ चलूंगी ..”.सुनकर उसकी आंखें खुली तो सामने सजी धजी सुंदर सी शिवी को देख कर निहाल हो गईं….हर्ष विव्हल आंखों से आनंद अश्रु की धारा बहने लगी…सुखी रह बेटा खुश रह ईश्वर तेरी झोली सदा खुशियों से भरे…गदगद हो गई सुरम्या ..कितनी सुंदर है मेरी पोती नजर ना लगे किसी की …….!!

…..अरे बेटा.. मैं वहां कहां जाऊंगी तू जा अपनी मां के साथ मुझे तो ना ठीक से दिखाई देता है ना सुनाई देता है तेरे ससुराल वालों के सामने मेरे कारण तेरी आंख नीची हो जायेगी तुझे देख कर ही मन तृप्त हो गया सुरम्या ने उसे गले लगाते हुए कहा तभी बहू माला सुंदर सी साड़ी और शॉल लेकर आ गई नहीं मांजी आपके आशीर्वाद के बिना ये काज सफल नहीं हो सकता… आज सगाई कार्यक्रम में आप ही शिवी को लेकर चलेगी ये लीजिए साड़ी आइए तैयार हो जाइए …हां दादी आइए ना आज मैं आपको तैयार करती हूं कहते हुए शिवी ने दादी की तरफ अपने मेंहदी भरे  हाथ बढ़ा दिये…

ये उम्मीद भरे हाथ ही तो सुरम्या की जिंदगी थे।

#उम्मीद 

लतिका श्रीवास्तव 

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