“समझौता ज़िन्दगी का” – कुमुद मोहन

ड्राइवर गाड़ी रोको!सुधी शापिंग को निकली थी!रास्ते में एक ठेलेवाले के पास किसी को देखकर उसने गाड़ी रूकवायी! उतरकर सब्ज़ी खरीदती महिला को देखकर सुधी चिल्लाई “नीता! तू यहाँ? कहकर उससे लिपटने वाली थी कि नीता संकोच से पीछे हटने लगी!

सुधी और नीता बचपन से साथ पढ़ीं एक दूसरे की पक्की सहेली थीं! दोनों की दोस्ती दोनों के परिवार और पूरे काॅलेज में मशहूर थी!दोनों के ब्याह भी तीन चार महीने आगे पीछे ही हुए थे!

 

“क्या हाल बना रखा है तूने अपना,चल गाड़ी में बैठ इतने बरसों का हिसाब लेना है!”ये बता तेरे घर चलें या मेरे?सुधी जो नीता की दशा देखकर परेशान हो गई थी  जो अपनी उम्र से दस साल बडीं दिख रही थी! सुधी जल्द-से-जल्द नीता की पिछली ज़िन्दगी की हालत जान लेना चाहती थी!

नीता ने बहुत कहा कि फिर किसी दिन मिल लेंगें पर सुधी कहाँ मानने वाली थी!

खैर! तय हुआ कि नीता के घर चलते हैं!

नीता रास्ता बताती गई और कार एक संकरी सी गली की चार मंजिली पुरानी सी बिल्डिंग के पास पहुँच गई!

सुधी को बड़ा अजीब लगा नीतू और यहाँ रह रही है!लिफ्ट नहीं थी इसलिए वे हांफते हुए सीढ़ी चढ़कर फ्लैट पर पहुँचीं तो नीता के पति मनीष ने दरवाजा खोला!

 

जिस शख़्स को बांके दूल्हे के रूप में देखकर ब्याह में आऐ मेहमान नीता के भाग्य पर रश्क कर रहे थे आज उसकी बढ़ी दाढी,बेजान सी आँखे ढुलमुल काया को देखकर सुधी आवाक् रह गई!

 

छोटे छोटे दो कमरे जिनमें पुताई शायद बरसों से नहीं हुई थी!

फिर भी नीता की उसे तरतीब से रखने की भरसक कोशिश दिखाई दे रही थी!नीता और मनीष सुधी के सामने नार्मल रहने की कोशिश कर रहे थे!एक कप चाय पी कर नीता का नम्बर लेकर उससे जल्दी मिलने का वादा कर सुधी वापस आ गई !मनीष के सामने उसने नीता से कुछ नहीं पूछा।

एक दो दिन बाद सुधी ने नीता को नीता के घर के पास ही एक रेस्टोरेंट में बुलाया !

सुधी को याद था कि नीता के ससुर एक नामी गिरामी जमींदार शम्भु नाथ जब उसे देखने आऐ थे तो उन्हें शहर के सबसे बड़े होटल में ठहराया गया था !उस जमाने में होटल में ठहराना बहुत बड़ी बात हुआ करती!

उनके लिए खाना चांदी के बरतनों में परोसा गया था!जाते समय वे नीता के हाथों में सोने की कई सारी चमकती गिन्नियों थमाकर गए थे!मनीष इंजीनियरिंग करके अपने दो भाइयो के साथ अपना पुश्तैनी बिज़नेस संभाल रहा था



 

नीता के ब्याह में ससुराल से जो जेवर कपड़ा आया था उसे देखकर सभी की आँखें चौंधिया कर फटी की फटी रह गई थीं!

नीता के रिश्तेदारों और जान-पहचान वालों में नीता के ब्याह के चर्चे कई दिनों तक होते रहे सब नीता के भाग्य को सराह रहे थे कि उसे इतना अच्छा घर-वर मिला।”रानी बन के रहेगी हमारी नीता,ऐसा राजकुंवर सा दूल्हा और इतने पैसे वाली ससुराल मिली है”नीता की मां हर मिलने जुलने वालों से अपनी खुशी का इज़हार करती नहीं थकती!

 

अब सुनें नीता की कहानी उसकी जुबानी

नीता ब्याह कर पहुँची आलीशान हवेली,नौकर चाकर,बाग बगीचा हर वक्त नीचे से ऊपर गहनों से लदी!

सबकुछ था वहाँ बस एक चीज थी जो नही थी वो थी आज़ादी!

जल्दी ही नीता को पता चल गया यहाँ बाबू(ससुर जी)की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता!

नीता को जल्दी समझ आ गया कि उसकी आजादी का समझौता ससुर के शानो शौकत और ठाठ-बाट से हुआ था!

शाम को उनकी ताशों या शतरंज की बाजी जमती!

 

जनानखाने से नाश्ते की प्लेटें भरभर कर भेजी जातीं!पैग पर पैग खाली होते रहते।

पढ़ी लिखी नीता अपनी सास और जेठानी की तरह चौका ही संभालती रह गई!

फिर एक दिन ससुर जी नहीं रहे!

 

उसके बाद पता चला वे आकंठ कर्ज में डूबे हुए थे!रोज-रोज कोई न कोई पैसों का तकाज़ा करता हवेली के बाहर खड़ा मिलता!

 

फिर घर की कुर्की की नौबत आई तो मनीष नीता ,मां और बहन को लेकर सबकुछ छोड़कर वहाँ से निकल गए!दोनों बेटे देश के बड़े पब्लिक स्कूल में पढ़ रहे थे!उन्हें स्कूल से निकालना पड़ा।

दोनों भाईयों को पहले ही भनक लग गई थी वे धीरे  धीरे सारा पैसा और जेवर लेकर पहले ही अपने ससुराल चले गए थे।

नीता के पिता ने अपने पास बुलाना चाहा पर मनीष तैयार नहीं हुए!



पंद्रह साल इंजीनियरिंग किये हो गए थे इसलिए नौकरी भी नहीं मिली!

नीता ने अपने जेवर बेच दिये और पिता के दिये कुछ रूपयों से उसने ये फ्लैट किराए पर लिया बाकी पैसा फिक्स्ड कर उसकी ब्याज से घर चला रही थी!

 

बड़े बेटे शलभ ने किसी तरह पढ़कर नौकरी कर ली फिर ब्याह हुआ तो वो ससुराल वालों का ही होकर रह गया क्यूंकि जानता था मां-बाप के पास अब कुछ नहीं है।बस अब कभी खोज खबर भी नहीं रखता कि हम जिन्दा हैं या मर गए!

 

छोटा समर अपनी मेहनत के बलबूते पर एक अच्छी कंपनी में अच्छे पद पर हो गया तो लगा शायद अब हमारे भी अच्छे दिन आएंगे!

पर किस्मत तो जैसे रूठी थी किसी हाल मानने को तैयार नहीं!

 

छोटे का ब्याह किया तो बहू ने सास-ससुर के साथ रहने में आपत्ति जताई! हमारी मजबूरी कि कोई ठिकाना नहीं कहाँ चले जाऐं!बहुत समझाया नहीं मानी फिर मायके जाकर डाईवोर्स फाईल कर दिया!बाद में पता चला उसका किसी से अफ़ेयर था!

बेटे ने जितना कमाया था सब देकर उससे पीछा छूटा!

 

मनीष हार्ट पेशेंट है!पेस मेकर लगा है!

समर हमारा खर्चा उठा रहा है!मैं कुछ बच्चों को आर्ट सीखा देती हूं!बस किसी तरह ज़िंदगी चल रही है।

 

सुधी को बहुत आश्चर्य हुआ किस परिवार से आई थी कहाँ पहुँची थी पर किस्मत का लिखा आदमी को कहां से कहाँ ले जाता है!पल भर में राजा को रंक बना देता है!

 

जिन्दगी से समझौता कर इतने दुख झेलकर भी नीता एकदम शांत थी उसकी हिम्मत और हौसले की दाद देनी पड़ेगी और कोई होता तो टूट कर बिखर जाता! अपने पति और बेटे के साथ चट्टान की तरह खड़ें हो कर उसने एक मिसाल कायम की!

दोस्तो

मेरी यह कहानी नहीं सच्ची घटना है।आप सबसे शेयर करना चाहती थी ! किस्मत से समझौता कर नीता ने बड़ी से बड़ी मुश्किल में धैर्य नहीं खोया अपनी आस नहीं छोड़ी। धन्य है वो देवी।

आपको पसंद आए तो प्लीज लाइक-कमेंट अवश्य दें

#समझौता 

आपकी

कुमुद मोहन

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