सही फ़ैसला – करूणा मलिक  : Moral stories in hindi

 रूबी, तेरा फ़ोन बज रहा है । उठा ले जल्दी, देख कहीं तेरी ससुराल से ही तो नहीं । मम्मी , मैं तो बाथरूम में हूँ । आप ही देख लो ना । अरे , मेरे हाथ तो आटे से सने हैं, नहीं तो उठा लेती । ले ये तो फ़ोन कट गया । चश्मा भी नहीं लगा रखा , पता नहीं किसका था ? चल , आजा नहाकर , देख लेना । तभी रूबी नहाकर निकली और मेज़ पर रखे फ़ोन को देखकर बोली – बरेली से स्वीटी भाभी का फ़ोन है । कल ही तो मिले थे,

क्या बात करनी होगी ? मम्मी! आप बात कर लो ना । कोई बात ना , तेरी होने वाली जेठानी है । कर ले बात । कोई ऐसी घर परिवार की बात पूछे तो ज़रा सोच- समझकर बोलना और कुछ लेन-देन के बारे में पूछे तो कह देना कि मम्मी से बात कर लें । कहीं अपने आप ही दादी बन बैठे । इसलिए ही तो कह रही हूँ, आप खुद बात कर लो । कुछ मुँह से निकल गया तो ?

मुँह से निकालेगी तो ही निकलेगा ना । चल ,लगा फ़ोन जल्दी, तेरे नंबर पर किया है तो कर ले बात । माँ के कहने पर रूबी ने फ़ोन किया और क़रीब दस-पंद्रह मिनट बात करके बोली – थैंक गॉड ! कोई ऐसी-वैसी बात नहीं पूछी । बस ये ही पूछ रही थी कि कल सगाई की साड़ियाँ कैसी लगीं ? उन्होंने खरीदवाई है अपनी पसंद से । कह रही थी कि वहाँ के लोगों की पसंद तो एकदम गँवार टाइप की है । तूने तो इस बात पे कुछ ना कह दिया ? नहीं मम्मी! मैं तो चुप उनकी हूँ- हाँ करती रही । आप यहीं तो थी ।

कुछ सुना मेरे मुँह से । वैसे तो बड़ी फ्रैंडली सी लगी । चल ठीक है हो सकता है कि मेलजोल बढ़ाना चाह रही हो । पर बेटा ! तू अपने मुँह से कोई बात मत बोलना । जब तक फेरे होके वहाँ ना चली जाती , बात कच्ची ही समझना । इस तरह नीना ने अपनी बेटी रूबी को होने वाली ससुराल के बारे में थोड़ी सावधानी बरतने की बात समझाई । अगले ही दिन फिर स्वीटी का फ़ोन आ गया । रूबी ने उस दिन यह कहकर जल्दी से माफ़ी माँग ली कि आज उसे मम्मी के रूटीन चेकअप के लिए उन्हें डॉक्टर के पास लेकर जाना है, फिर बात करेंगे ।

आलम यह हो गया कि स्वीटी रोज़ तो क्या, दिन में दो-दो तीन-तीन बार फ़ोन करने लगी । शुरू-शुरू में तो रूबी बहुत ही ध्यान से बात करती थी पर धीरे-धीरे औपचारिकता का स्थान बेबाक़ी ने ले लिया । अब तो घर की , खाने-पीने की , घर की छोटी-छोटी खिट-पिट की बातें भी होने लगी । स्वीटी द्वारा ससुराल के निंदा- पुराण में रूबी भी हाँ- ना करने लगी यहाँ तक कि स्कूल और कॉलेज के बॉयफ़्रेंडस के क़िस्से- कहानियों को , एक- दूसरे के साथ चटकारे लेकर साझा किया ।

उधर घर में शादी की तैयारियाँ ज़ोर पकड़ रही थी और इधर होने वाली देवरानी- जेठानी की दोस्ती परवान चढ़ रही थी । एक आध बार रूबी के होने वाले पति आकाश का भी फ़ोन आता पर आकाश कुछ शर्मीले और गंभीर स्वभाव का लड़का था। ऊपर से जेठानी जी ने सुझाव दिया- रूबी, हमारे देवर को थोड़ा दबा कर रखना । ज़रूरी नहीं कि हमेशा उसके फ़ोन का जवाब दो । और अपनी तरफ़ से तो कभी फ़ोन करने की गलती मत करना । अरे , इन भाइयों की रग-रग से वाक़िफ़ हो चुकी हूँ मैं ।

अपनी छोटी बहन मानती हूँ तुम्हें । इसलिए ये सब बता रही हूँ वरना मुझे क्या है ? और बेवकूफ रूबी न जाने कैसे उसकी हर बात पर अंधविश्वास करती थी ? वैसे वो पढ़ी- लिखी समझदार लड़की थी पर कई बार अच्छे से अच्छा व्यक्ति भी घरेलू हथकंडों या यूँ कहिए षड्यंत्रों को समझ नहीं पाता । इधर नीना यह सोचकर अपनी तैयारियों में व्यस्त थीं कि रूबी को हर ऊँच-नीच समझा दी है ।

उसे क्या पता था कि हर रोज़ तोते की तरह दोहराना पड़ेगा । शादी के आठ दिन पहले एक दिन स्वीटी का सुबह-सुबह फ़ोन आया- रूबी, आज हम लोग दस बजे तक नोएडा आ रहे हैं तुम्हें शापिंग करवाने । मैं और ये दोनों भाई । सुनो , मम्मी जी ने तो बरी में ग्यारह जोड़ी कपड़े दिलवाने और दो सेट दिलवाने को कहा है पर तुम आकाश के सामने अड़ जाना । यही मौक़ा है अपनी बात मनवाने का । फिर दुकानदार के सामने कोई कुछ बोल भी नहीं पाएगा । इक्कीस जोड़ी से कम , भला कौन देता है आजकल ।

दो सोने के सेटों के साथ एक डायमंड का भी होना चाहिए । भई , मैंने तो अपनी छोटी बहन समझकर बता दिया, बाक़ी तुम्हारी मर्ज़ी । और सुनो , सबके सामने मेरा नाम मत ले देना । मैं तो इसलिए कह रही हूँ कि शादी में ही दिया जाता है, फिर कौन देता है और वो भी बहुओं को? चल , ठीक है । पहुँचने पर फ़ोन करूँगी । आज रूबी को स्वीटी की बातें बड़ी ही बचकानी सी लगी।

उसने सोचा कि मैं ऐसे कपड़े- गहने लेने की बात कैसे कह सकती हूँ । मैंने तो कभी मम्मी से इस तरह की ज़िद नहीं की फिर आकाश क्या सोचेंगे, मेरे बारे में ? रूबी का दिल स्वीटी की कही बातों पर अमल करने की गवाही नहीं दे रहा था । नीना ने बेटी को छोटे भाई के साथ निश्चित किए मार्केट में भेज दिया । पहले उन सभी ने चाय नाश्ता किया फिर कपड़ों और गहनों की दुकान पर गए ।

शादी के लिए आकाश और रूबी ने मैचिंग कपड़े ख़रीदे । इस बीच रूबी ने महसूस किया कि आकाश की पसंद बहुत अच्छी और प्रैक्टिकल है । स्वीटी बार-बार कोहनी मारकर रूबी को अपनी कही बात याद दिलाने की कोशिश कर रही थी पर रूबी के कानों में केवल माँ की कही , वे बातें गूँज रही थी जो उन्होंने मार्केट आते हुए कही थी- रूबी, आकाश बहुत भला और होनहार लड़का है ।

जब मैंने उससे कहा था कि अपनी पसंद के कपड़े ख़रीद लेना तो उसने बड़े सम्मान के साथ जवाब दिया था- मम्मी जी, हर माँ-बाप अपने बच्चों के लिए अपने से अच्छा ही ख़रीदना चाहता है । आप अपनी पसंद से जो भी देंगी, मैं उसी को पहनूँगा । बेटा , वो तो आजकल फ़ैशन हो गया है इस तरह एक साथ शापिंग करने का । वरना पहले कौन एक साथ ख़रीददारी करता था ।

हर सास अपनी बहू के लिए अपनी तरफ़ से अच्छा ही ख़रीदती है । कपड़े-गहने तो ज़िंदगी भर बनते रहते हैं पर कभी-कभी छोटी- छोटी बातें उम्र भर की टीस बन जाती हैं । इसी बीच आकाश की माँ का फ़ोन आया । सास की कही बातें तो स्वीटी के कानों में नहीं पड़ी पर रूबी ने कहा- नहीं मम्मी जी, आपने जो भी, जैसा सोचा है, सब मुझे पसंद है । एक साथ इतनी साड़ियों का करूँगी भी क्या ? जब ज़रूरत पड़ेगी, बन जाएगा । रूबी की बातों से स्वीटी का मुँह उतर गया पर आकाश के चेहरे पर संतोष नज़र आ रहा था ।

करूणा मलिक 

 

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