रोने से नहीं बदलती क़िस्मत – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : शिवानी आंटी अपनी किस्मत लकीरों में ढूंढ़ ही नहीं पाई कभी।भोर की पहली किरण के निकलने से पहले ही उठ जाती थीं।कॉलोनी में धनवान घरों के कपड़े धोती थीं वह।सुबह सवेरे कॉलोनी के सार्वजनिक नल में कपड़े धोते -धोते ही उजाला हो जाता था।वापस आकर आंटी पापड़,चिप्स और बड़ी बनाने में जुट जाती थीं।सुधा के घर में किराएदार थीं शिवानी आंटी।चार बेटियां थीं उनकी।

दो बेटियों की शादी कर चुकीं थीं। दुर्भाग्यवश उनके पति कुछ काम नहीं करते थे। संयुक्त परिवार में रहतीं थीं वह।देवरानियों और जिठानियों के हिस्से के सारे काम करके उनके साथ रह पा रहीं थीं।तीसरी बेटी वीणा ,सुधा के विद्यालय में सहकर्मी थी।सजातीय लड़के के साथ प्रेम-विवाह करने के कारण ,घर वालों ने अपने घर से निकाल दिया था शिवानी आंटी को।सुधा का घर बहुत बड़ा था,अंदर की तरफ दो कमरे किराए में देने के लिए बने थे।वीणा के कहने पर ही शिवानी आंटी वहां रहने लगी थीं,अपनी छोटी अविवाहिता बेटी करुणा के साथ।

सुधा भी विद्यालय में पढ़ाती थी।मां को सहारा हो गया था,सारे दिन का।जब से आंटी किराएदार बनकर आईं,कभी उन्हें किराया देने की जरूरत ही नहीं पड़ी।मां उनसे महीने भर अचार ,पापड़ और बड़ियां बनवाती थीं।घर के कपड़े भी धुलवा लेतीं थीं।शिवानी आंटी सिलाई -बुनाई में भी पारंगत थीं।सुधा कभी-कभी हंसकर मां से कहती”ये जो किराएदार रखा है हमने,किराया तो कभी लेते हुए देखा नहीं तुम्हें।
“मां भी हंसकर टालते हुए कहती “अरे,बिचारी बेसहारा हैं,कितना ही दे पाएंगे?जैसे हमारा गुज़ारा अब तक हो रहा था,आगे भी हो जाएगा।”
शिवानी आंटी की कमर तोड़ मेहनत का लोहा मानती थी सुधा।अधिकतर उन्हें अपने लिए परांठे और दही बघारा खाते हुए देखती थी।उनकी छोटी बेटी करुणा ,मां की दुलारी थी।उसका खाना सुधा के यहां ही हो जाता था।
सुधा ने शिवानी आंटी को कभी क़िस्मत कोसते नहीं देखा। धीरे-धीरे अपने हुनर से उन्होंने अच्छा खासा व्यापार ही संभाल लिया था।उनके बनाए अचार,बड़ी और पापड़‌ बहुत पसंद किए जाने लगे।
आंटी की छोटी बेटी की शादी तय हो गई।तब तक सुधा की भी शादी हो चुकी थी। करुणा की शादी में गई तो,आंटी शादी का सामान दिखाने लगी।उनकी तैयारी देखकर सुधा की आंखें फटी की फटी रह गई।सालों जी तोड़ मेहनत करके इतना कुछ जमा कर रखा था ,एक मां ने।किसी और के सामने हांथ फैलाने‌ की जरूरत ही नहीं थी।
उनके हांथ रूखे और कड़े हो चुके थे।सुधा ने दहेज का सामान देखकर उनके हांथ चूमते हुए कहा”आंटी,इस दुनिया में सभी क़िस्मत को कोसते रहतें हैं।अपने भाग्य का रोना रोते रहतें हैं।आपने अपने हांथों की लकीरों में अपनी किस्मत छिपाकर रख ली।मेहनत करके आपने जो मिसाल बना दी ,कभी कोई औरत हारेगी नहीं मुश्किलें देखकर।”
उन्होंने भी रोते-रोते कहा”सुधा बिटिया,रोने से नहीं बदलती क़िस्मत।मैं बहुत किस्मत वाली थी कि तुम लोगों का घर मिला रहने को।तेरी मां चिल्लाती तो बहुत है,पर उसने कभी हमें किराएदार नहीं समझा।जान बूझकर कुछ ना कुछ मुझसे बनवाती रही,ताकि मेरे ऊपर किराए का बोझ ना पड़े।इस घर ने मेरी किस्मत बदल दी।यदि मुझे मेरे परिवार वाले घर से नहीं भगाते,तो मैं सारी ज़िंदगी उन्हीं की गुलामी करती रहती।यहां आकर मैंने अपनी पसंद का काम शुरू किया।इस घर में बहुत बरकत है बेटा।”
शिवानी आंटी की बातें सुनकर सुधा ने भी माना कि इस घर में बहुत बरकत है।ईश्वर ने दादा -दादी से यह विरासत शायद इसलिए बनवाई थी कि यही हमारे भविष्य का सहारा बनेगा यह घर।पिता की मौत के बाद इस घर में जवान विधवा मां के साथ तीन जवान होती बेटियों को संभाला इस घर ने।एक बेसहारा मां की बेटी को भी सहारा दिया इस घर ने।
दो साल के अंदर शिवानी आंटी ने सुधा का घर छोड़ दिया।मां से यह जानकारी मिली थी,सुधा को। पंद्रह साल रहीं वे इस घर में।अब उन्होंने जमीन खरीदकर अपना ख़ुद का घर बनवा लिया है।सुधा को बहुत खुशी हुई।मायके जाने पर आंटी से मिलने गई।आंटी ने अब अपनी मदद के लिए एक लड़की रख ली थी।सुधा ने चिप्स खाते हुए उन्हें छेड़ते हुए पूछा”अभी भी आप अपना काम कर रहीं हैं?कब तक हांथों को थकाती रहेंगीं आप?
अब तो आराम कीजिए।कमर झुक गई।बेटियां -दामाद सब आपको अपने साथ रखना चाहते हैं।क्यों नहीं जातीं आप उनके साथ।वीणा कल ही शिकायत कर रही थी।”
आंटी चाय का कप थमाते हुए बोली”सुधा ,इस हांथ ने ही मुझे सम्मान के साथ जिंदा रखा है।जिस दिन मैं अपने हांथ नहीं चला पाऊंगी ना,समझ लेना मेरी सांसें रुक गई।मेरे इन रूखे कड़े हांथों में ही मेरी किस्मत है।
मैंने मुट्ठी में अपनी तकदीर का जितना हिस्सा आया बंद कर रखा है।जब तक मेरा शरीर चलेगा,सभी पूछेंगें।जिस दिन बोझ बन गई ना किसी पर ,कोई नहीं पूछेगा।मैंने अभी भी फिलहाल साल भर का अचार ,बड़ी और पापड़ बनाकर रखा है।तू खाकर बता कैसे बने हैं चिप्स??”
सुधा ने शिवानी आंटी के हांथों को माथे से लगाकर कहा”आंटी,आपने‌ मुझे हमेशा की तरह फिर सिखा दिया कि किस्मत हमारे ख़ुद के हांथ की लकीरों में ही होती हैं।हम उन्हें इतना ज्यादा ढूंढ़ने लगते हैं कि वे भूल-भुलैया की तरह गायब हो जातीं‌ हैं।जो किस्मत का रोना ना रोकर अपने हालात में खुश रहतें हैं,क़िस्मत उन्हीं की बदलती है।”
शुभ्रा बैनर्जी

#किस्मत 

 

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