रिश्तों के बीच की बार छोटी-छोटी बातें बड़ा रूप ले लेती है। –  मुकुन्द लाल : hindi kahani

hindi short story with moral : साची की हाल ही में शादी हुई थी। प्रारम्भ में अपने पति प्रतीक से अथाह प्यार और दुलार मिला। सास-ससुर उसके रंग-रुप, आचार-विचार और शिष्टता से सराबोर उसके व्यवहार के कायल थे। जेठ उदित और जेठानी श्रावणी भी उसकी खूबसूरती और मिले  दान-दहेज़ की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। जेठ के तीनों बच्चे ‘चाची-चाची’ कहते हुए उसके पास ही मंडराते रहते थे। वह भी बच्चों को प्यार और दुलार करने में पीछे नहीं रहती थी।

   लेकिन कुछ माह के बाद जब किचन की जिम्मेवारी उसको मिली तो उसके द्वारा बनाए गए भोजन से सबका मन खट्टा हो गया। रोटियाँ गोल न होकर टेढ़ी – मेढ़ी व बेडौल  देशों के नक्शों की तरह  अनियमिताकार होती थी । सब्जियांँ बेस्वाद होती थी।

कभी नमक अधिक तो कभी कम होता था। मिर्च-मसाले का अनुपात भी सही नहीं होता था।

  प्रारम्भ में तो सभी ने नई बहू का लिहाज करके कुछ नहीं कहा, मन मसोस कर रह गए कि शीघ्र ही रसोई में सुधार आ जाएगा। लोग आधा खाना खाकर उठ जाया करते। किचन में बनने वाले भोजन का लगभग आधा हिस्सा कूड़ों के ढेर पर फेंका जाने लगा जो जानवरों का निवाला बनने लगा।

  जेठ-जेठानी ने दबी जुबान में उसको तानों – उलाहनों की सौगात देना शुरू कर दिया कि तुम्हारी मांँ और भौजाइयों ने खाना बनाने के लिए नहीं सिखाया था कि शादी पक्की करने के समय तुम्हारे मांँ-बाप और अन्य परिजनों का दल डींग हांक  रहा था कि लड़की पढ़ी-लिखी तो है ही खाना बनाने में भी एक्सपर्ट है, हर तरह की डिश बनाने में महारत हासिल है। कहां चला गया पाक-कला का ज्ञान, लगता है मांग में सिन्दूर पड़ते ही सारा ज्ञान गंगा स्नान करने चला गया। स्पेशल डिश की बातें तो जाने दीजिए प्रतिदिन रसोई में सामान्य भोजन तैयार करने का भी ज्ञान आधा-अधूरा है।

   उनकी नश्तर की तरह चुभने वाली बातें सुनकर साची दौड़कर अपने कमरे में चली गई और रोने लगी।. 

   उसके ससुर प्रताप जो पेंशनभोगी थे, उन्होंने विनम्रता के साथ कहा, “समय के साथ सब सीख जाएगी बड़ी बहू।.. दूसरी जगह हर घरेलू मोर्चे पर ऐडजस्ट करने में कुछ समय लगता है। धैर्य रखिए।.. महीना दो महीना आप और इसकी सास(अंजना) छोटी बहू को गाइड कर दीजिए तो वह किचन के कामों को पूर्ण रूप से सीख जाएगी।”

   अपने ससुर के प्रवचन सुनने के बाद बिना कोई जवाब दिए हुए श्रावणी अपने बाल-बच्चों को साथ लेकर मुंँह बिचकाते हुए अपने कमरे में जाकर दुबक गई। 

   किन्तु  अंजना(सास) ने प्रताप की बातों का समर्थन करते हुए कहा कि शुरू में तो प्रायः ऐसा होता है, किसी-किसी के साथ ऐसा नहीं भी होता है, चिन्ता की बात नहीं है सब ठीक हो जाएगा। 

   उस समय उसका पति किसी आवश्यक काम से घर के बाहर गया हुआ था। 

  अक्सर खाने के मुद्दे पर किचकिच होने लगी। 

   उस दिन जेठ के सामने साची ने खाने की थाली रखी तो थाली में पूर्ण रूप से गोल रोटी नहीं देखकर उसकी आंखों से क्रोध की चिंगारियां निकलने लगी। उसने यह कहते हुए कि यह आदमी का खाना है?.. न रोटी ठीक बनी हुई है, न सब्जी.. यह तो जानवर का चारा है। उसने थाली उठाकर फेंक दी, फिर चीखते हुए उसने कहा, “मैं ऐसा खाना खाकर बीमारी मोल नहीं ले सकता हूँ.. क्यों इससे खाना बनवाती हो… इससे बर्तन मंजवाओ, साफ-सफाई करवाओ, भोजन बनाना इसके वश के बाहर की बात है।” 

   प्रताप ने उदित को समझाने का  प्रयास किया। उसने यह भी कहा कि कुछ महीनों की बाते हैं। सब ठीक हो जाएगा। तुम्हारी मांँ के घुटनों का दर्द ठीक हो गया है। अब किचन में छोटी बहू को वह सहयोग करेगी। 

   किन्तु उसने अपने पिता की बातों पर ध्यान नहीं दिया उल्टे उसने कहा कि यह लड़की जब अपने मैकै में कुछ नहीं सीख सकी तो शादी के बाद क्या सीखेगी। इसका ध्यान तो हर वक्त मोबाइल पर रहता है। जब देखो किसी न किसी से छुप-छुपकर बातें करती रहती है। गाना सुनती रहती है। 

   वह अपने जेठ का जवाब न देकर कमरे में जाकर रोने लगी। 

  प्रतीक प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में घर की दूसरी मंजिल पर एकांत में पढ़ता रहता था। 

   उस परिवार का घर-खर्च प्रताप के पेंशन से ही चलता था। घरेलू खर्च में उसका बड़ा पुत्र भी आर्थिक सहयोग करता था। वह भी कहीं जाॅब करता था। प्रतीक भी नौकरी के लिए प्रयासरत था। उसने कई लिखित परीक्षाएं पास कर ली थी। लोगों को उम्मीद थी कि उसको भी जल्द ही सर्विस लग जाएगी। 

  शोर-गुल सुनकर वह तेजी से नीचे आया ‘क्या बात है?’ कहते हुए। 

  सारी बातों की जानकारी मिलने के बाद उसने उदित को शांति से समस्या का समाधान करने की सलाह देकर वह साची के कमरे में प्रवेश कर गया उसने अपनी पत्नी को कहा, “उनलोगों ने ठीक ही कहा है। तुम्हारी मांँ और तुम्हारे मायके के अन्य लोगों ने पाक-कला का समुचित ज्ञान दिया होता तो आज ऐसी घटनाओं की नौबत नहीं आती और न किसी को तुम पर उंगली उठाने का मौका मिलता।… ढंग से रहो, ढंग से खाना बनाओ” तल्ख आवाज में प्रतीक ने कहा। 

   पल-भर रुकने के बाद उसने पुनः कहा,” भाभी अनुभवी है, उसकी खुशामद करो, विनम्र बनकर उनसे सीखो। खाना बनाने में वह एक्सपर्ट हैं “

   लोगों ने प्रयत्न किया किन्तु खाने के मुद्दे पर जेठ-जेठानी और साची के बीच अक्सर कचकच का सिलसिला थमता नजर नहीं आया। 

  यह तो निश्चित है कि किसी भी इल्म को पूर्ण रूप से सीखने में समय तो लगता ही है किन्तु उसकी जेठानी उसकी पारी में खाना बनाने से संबंधित कार्यों में न तो सहयोग करती थी और न सिखाना चाहती थी। ऐसी परिस्थिति में उदित की सोच थी कि घर-खर्च में उसके रुपये भी खर्च होते हैं तो फिर वह रद्दी खाना क्यों खाएगा। 

   प्रारंभ में जब वह शादी के बाद ससुराल आई थी तो उसकी खूबसूरती के खूब चर्चे थे। लोग-बाग कहते थे कि छोटी बहू की खूबसूरती की तुलना में बड़ी बहू की सुन्दरता कुछ भी नहीं है। लड़का भाग्यशाली है कि उसे शिक्षित और खूबसूरत पत्नी मिली। कहीं न कहीं श्रावणी के दिल में उसकी प्रशंसा चुभ रही थी। परन्तु घर का माहौल अब ऐसा हो गया था कि साची की खूबसूरती की सुगन्ध तो समाप्त हो गई थी, उसकी जगह आलोचना ने ले ली थी। वह अपने ही परिवार की नजरों में खटकने लगी। 

  आदमी काम की निपुणता व दक्षता को महत्व देता है है, इस संदर्भ में खूबसूरती तो क्षणिक आकर्षण पैदा करता है लेकिन गुण से जो आकर्षण उत्पन्न होता है वह स्थायी होता है। 

  इस छोटी सी बातों का दूरगामी प्रभाव पड़ा। उदित ने अपना चूल्हा अलग कर लेने का फैसला सुना दिया। 

   हलांकि प्रताप और अंजना ने अपने बड़े बेटे को समझाने का बहुत प्रयास किया कि उसकी बदनामी होगी। उसके मायके के लोगों की नजर में हमलोग गिर जाएंगे। शादी हुए साल भर भी नहीं हुआ है। किन्तु वह अपने जिद्द पर अड़ा रहा। 

   अन्ततोगत्वा उसका चूल्हा अलग हो ही गया।

   प्रतीक को भी बहुत दुख हुआ। उसने विनम्रता के साथ अपने बड़े भाई और भाभी को समझाया कि नियुक्ति होने दीजिए, वह स्वयं अपनी पत्नी के साथ जहाँ पोस्टिंग होगी वहाँ चले जाएंगे किन्तु न तो वह माना और न उसकी भाभी। बल्कि उदित ने खरी-खोटी सुनाते हुए कहा कि उसको अपने परिवार की जान प्यारी है। ऐसे अधपके व कच्चे-कोचले खाने से पेट की बीमारी पकड़ लेगी, कौन अपनी पत्नी और बाल-बच्चों के स्वास्थ्य को खतरे में डालेगा… और उसकी पत्नी मशीन तो नहीं है कि किचन का सारा भार अपने सिर पर ले ले, उसको भी बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, स्कूल भेजने की तैयारी और उसके दफ्तर जाने जैसे अनेक काम उसके ही जिम्मे है। इसलिए वह अलग ही रहेगा। 

  उसके जवाब से प्रतीक का मुंँह बन्द हो गया। वह उसका चेहरा देखता रह गया। वह विश्वास करने की कोशिश कर रहा था कि क्या वही उसका बड़ा भाई है? 

   जिस परिवार में हंसी-खुशी, उमंग और उल्लास का वातावरण रहता था, उसकी जगह खामोशी ने ले ली थी। चहल-पहल को मानो किसी मनहूस की नजर लग गई थी। एक-दूसरे से नजरें चुराते हुए उस घर में लोग अपने-अपने कामों को निपटाते। 

  हर छोटी-मोटी घरेलू बातों पर आपस में विवाद होने लगे। प्रतीक बार-बार घर के सदस्यों को समझाता कि छोटी-छोटी बातों को गहराई से नहीं लें, उसमें टांग मत अड़ाया करें लेकिन कभी घर की सफाई व अन्य मुद्दे ऐसे थे जो कौमन थे, जिसके कारण नहीं चाहते हुए भी वाद-विवाद में उलझना ही पड़ता था। 

  अपने जीवन की निरसता व ऊब को दूर करने के लिए अक्सर वह मोबाइल से चिपकी रहती थी। घरेलू कामों को अपने सास के सहयोग से निपटाने के बाद बचे-खुचे समय को वह मोबाइल के सहारे ही व्यतीत करती थी। 

  प्रतीक उसके इस आचरण से खफा होकर उस दिन उसे बहुत डांँटा-फटकारा, इतने से भी उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उसने मोबाइल छीनकर उसको फर्श पर पटककर तोड़ डाला यह कहते हुए कि सब फसाद की जड़ मोबाइल ही है। अपना सारा समय अपनी सहेलियों और मायके के दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ बातचीत में गंवा देती है। क्या सीखेगी?… उसकी तो किस्मत ही फूट गई। एक तो बेरोजगारी, दूसरी तरफ घर में फैलती वैमनस्यता और मतभेद उसके जीवन को बर्बाद करके ही दम लेंगे। 

   समय बीतने के साथ-साथ घर के माहौल में नकारात्मकता बढ़ने लगी। एक ही घर में परिवार दो खेमों में बंट गया था। दोनों खेमों के लोग एक-दूसरे को कटुता भरी नजरों से देखते। उसके जेठ के बच्चे अपने माता-पिता की हिदायतों के अनुसार सहमे-सहमे रहते। जिस चाचा(प्रतीक) के बिना उन्हें एक पल भी काटना भारी मालूम पड़ता था, आज उन्हें अलग-थलग रहना पड़ रहा था। 

   वातावरण ऐसा विषाक्त और कलह से परिपूर्ण हो गया था मानो घर बारूद के ढेर पर अवस्थित हो, जिसमें कभी भी विवाद के कारण विस्फोट हो सकता था और घर टूटकर विनष्ट हो सकता था, मटियामेट हो सकता था। 

  घर का पूरा परिवार इसके लिए छोटी बहू को ही दोषी मान रहा था। 

   प्रतीक का मन भी उससे कलुषित हो गया था। साची के प्रति उसका मन खट्टा हो गया था। उससे वह उखड़ा-उखड़ा रहने लगा। छोटी-छोटी बातों पर उसे वह डांँट दिया करता। वह अपने कमरे में रोती रहती। उसका सहारा मोबाइल भी टूट ही गया था, जिसके सहयोग से उसका उदासी भरा समय कट जाया करता था। उसे अपना जीवन बोझ समझ में आने लगा। 

   कहा गया है कि जब भावनाएं बुद्धि के विपरीत भागने लगती है तभी बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएं घटती है। 

  प्रताप ने घर के बड़े बेटे और छोटे बेटे के परिवारों को समझाया भी था कि वेलोग मिलजुलकर रहें। छोटी-छोटी बातों और विवादों को दरकिनार कर दें। रिश्तों के बीच पनप रही कटुता को मिटाएं नहीं तो यही, रिश्तों के बीच छोटी-छोटी बातें बड़ा रूप ले लेगी। अपने दिमाग को शांत रखें, तनावमुक्त रहें किन्तु अपने अनुभवी पिता की सलाह पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। 

   ऐसा ही कुछ नवविवाहिता साची के साथ घटित हो गया। 

   उस दिन प्रतीक के मोबाइल पर किसी युवक का फोन आया। उसने इच्छा जाहिर की थी कि वह साची के साथ कुछ आवश्यक बातें करना चाहता है। उसने जानना चाहा कि वह कौन है, उसका साची से क्या रिश्ता है, किन्तु उसने गोल-मटोल जवाब दिया। उसके जवाब से प्रतीक संतुष्ट नहीं हुआ। उसे लगने लगा कि आखिर क्यों कोई अनजान और अपरिचित युवक उसकी पत्नी से बात-चीत करना चाहता है। उसने डांँटते हुए पूछा कि वह कौन है?.. और क्यों बात करना चाहता है?… किन्तु उसने जवाब नहीं देकर फोन का कनेक्शन काट दिया। 

   परन्तु इस फोन-कौल ने उसके दिल में शक का बीजारोपण कर दिया। 

   जब साची से इस बाबत बातें की तो उसने साफ शब्दों में कहा कि वह अपने घर और रिश्तेदारों के दायरे से बाहर के किसी भी आदमी से उसका किसी भी प्रकार का न तो संबंध है, न परिचय है। 

    समय-समय पर संदेह में पगे हुए प्रतीक के आक्रोश का शिकार किसी न किसी बहाने वह होने लगी रह-रहकर शंका के कीड़े उसके दिमाग में रेंगने लगे। वह अप्रत्यक्ष रूप से घुमावदार व फरेबी शब्दों का बातचीत में इस्तेमाल करके अपनी शंका जाहिर करने लगा। 

  घोर घरेलू कलह से तो वह परेशान पहले से ही थी ऊपर से अपने पति की कटाक्ष भरे संवाद उसके कलेजे को लहूलुहान कर देता था। 

   उसे ऐसा महसूस होने लगा कि उसके पति का सहारा भी अब समाप्त हो गया है। वह अन्दर से पूर्ण रूप से टूट चुकी थी। उसका अपना जीवन उसे बोझ समझ में आने लगा था। जीवन से उसका मोह भी समाप्त हो गया था। 

   प्रतीक घर में नहीं था। साक्षात्कार देने के लिए जिला-मुख्यालय गया हुआ था। 

   उस दिन सुबह देर तक जब साची के कमरे का दरवाजा नहीं खुला तो घर के लोगों ने दरवाजे पर दस्तक दी, फिर भी किसी प्रकार की न तो आवाज हुई और न दरवाजा खुला, तब लोगों ने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया। उसके बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तब अनहोनी की आशंका को ध्यान में रखते हुए पुलिस को खबर की गई। 

   पुलिस की उपस्थिति में जब दरवाजा तोड़ा गया तो साची बिस्तर पर  मृत पड़ी हुई थी कमरे में खून पसरा हुआ था। उसने अपनी कलाई की नसें काट ली थी। 

   कानूनी कार्रवाई पुलिस ने प्रारम्भ कर दी थी। 

     स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                    मुकुन्द लाल

                    हजारीबाग(झारखंड) 

 

  

  

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