रेवा-उमा वर्मा 

मेरी दीदी,  रेवा को  उसके  मायके से ले तो आया अमन पर उसका पारा गर्म  था, आखिर हुआ क्या, बताओ तो सही? अमन के पूछते ही आग उगलने लगी वह ।अपनी दीदी से कह दो, मेरी जिंदगी में दखल देना  बंद कर दे।चार दिन के लिए मायके क्या गई उनहोंने उपदेश का पुलिंदा भेज दिया ।कितना भला बुरा कहा उनहोंने उस खत में । पर दीदी तो ऐसी नहीं है, जरूर तुम को गलत फहमी हो गई है ।अच्छा वह खत दिखाओ तो ।रेवा ने अमन को खत थमा दिया ।लिखा था ‘” प्रिय रेवा, अम्मा की तबियत  बहुत खराब है और भाई को खुद रसोई    बनाने  में हाथ जल गया है ।तुम्हारा घर तुम को बुला रहा है  रेवा,अब आ भी  जाओ ।बस इतना ही तो  लिखा था ।कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी ।अमन के दीदी से लगाव को वह सहन नहीं कर पाती थी ।अमन के सामने बीता हुआ कल दिखाई दे रहा था ।जब वह तीन  साल का ही था जब पापा गुजर गए थे तब दीदी और जीजा जी जाकर माँ और दोनों भाई बहन को ले आए थे ।बहुत कोशिश के बाद माँ की नौकरी लगवा दी थी ।माँ तो आफिस चली जाती तो अपने बच्चों के साथ दीदी अमन और अनु को भी नहलाती धुलाती, खिलाती और पढ़ाती।अमन देखता कितना मेहनत और तनाव झेलती है दीदी मायके और ससुराल वालों को मिला कर चलना, लाख तकलीफ झेलती पर एक मीठे मुसकान चेहरे पर लिए रखती ।शायद रेवा समझ नहीं पाई कभी

।अमन की शिक्षा समाप्त हुई और वह एक अच्छी कंपनी में सेटल हो गया ।तब दीदी ने ही उसकी पसंद को ध्यान में रखते हुये बहुत धूम धाम से उसका ब्याह  किया था ।दीदी ने सास का धर्म भी निभाया ।रेवा को वे बहुत ही प्यार करती।फिर बच्चे होने की जिम्मेदारी भी निभाई ।लेकिन अमन देखता उसका झुकाव मायके में अधिक था।समय पंख लगाकर भाग रहा था ।लेकिन उसी दौर में  दो बात और हो गई बहन की शादी और अलग घर बसाने की रेवा की जिद।कभी कभी अपने से भी हार मान लेनी होती है ।अमन के जीवन में भी यही हो रहा है ।अलग घर  बस गया ।रेवा बहुत खुश हो गई ।फिर मुन्ना साल भर का हुआ तो उसका जन्म दिन खूब धूम धाम से मनाने की सारी तैयारी दीदी ने ही की।मेहमान सारे आ चुके थे, केक काटने की बात थी कि रेवा के पेट में जोर से दर्द होने लगा ।वह बेचैनी से छटपटाने लगी।दीदी ने ही तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया ।अपेंडिक्स फटने ही वाला था ।तुरंत आपरेशन किया गया ।सारी परेशानी में दीदी भागती रही।न खाने की सुधि, न सोने की सुधि ।रेवा के घर आने पर भी  उसकी सेवा में लग गयी।अपने हाथों फल ,दवाई, और खाना खिलाती ।दस दिन में रेवा ठीक होने लगी।पर उसका रवैया फिर पहले जैसा हो गया ।अमन को इस बात से बहुत तकलीफ होती ।दीदी न जाने किस मिट्टी की बनी थी ।चेहरे पर सदैव एक मीठे मुसकान लिए रहती ।सब कुछ ठीक चलने लगा था की रेवा ने मायके जाने की जिद की।अमन ने बहुत समझाया ।देखो,अभी तबियत पूरी तरह से ठीक नहीं है बाद में चलेंगे।पर वह कहाँ मानने वाली थी ।एक सप्ताह में वह आ गई ।और आते ही बरसने लगी थी दीदी के खत को लेकर ।बहुत बात बढती तभी रेवा के सीने में फिर तेज दर्द उठा ।अमन को लगा खाने की बदपरहेजी हो गई होगी ।गैस की शिकायत होगी ।लेकिन तकलीफ अधिक हो गई तो अस्पताल में भर्ती कराया गया ।जांच के बाद डाकटर  ने हार्ट की शिकायत बताया ।तुरंत आपरेशन किया गया ।इस बार फिर दीदी प्रस्तुत थी ।अस्पताल के तीमारदारी से लेकर खून देने में सबसे आगे ।आपरेशन सफल रहा ।आठ दिन में रेवा ठीक होने पर घर आ गई दीदी सेवा भाव से लगी रही ।अमन ने रेवा से पूछा ” कैसी तबियत है “?तबियत की मत पूछो जी,यह दीदी  मेरी नन्द नहीं माँ  बनकर आई है, मै ही गलत थी जो देवी स्वरूप दीदी की पहचान नहीं पायी ।मुझे माफ कर दीजिये ।तभी दीदी पहुंच गयी।क्या बात हो रही है तुम लोग तो मेरे बच्चे हो।अमन रेवा के सोच पर चकित रह गया

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