राजा साहब (भाग 1 ) – रश्मि प्रकाश

“अरे बाबू आपको क्या ज़रूरत पड़ी थी इस गाँव में आकर अपना बुढ़ापा काटने की…. पैदल चलते चलते हम सब थक गए हैं पर आप में अभी भी जोश है जाने कितने कोस की दूरी और तय कर लेंगे ।” हरिया ने राजा साहब से कहा

शहर से साथ आए परिवार के सदस्य भी थक के चूर चूर हो गए थे ।परिवार ज़्यादा बड़ा तो नहीं था पर एक बेटा बहू और उसके दो बच्चे और ये हरिया जो सालों से राजा साहब के साथ उनकी सेवा में लगा पड़ा था ।कहने को तो वो उनका सेवक था पर राजा साहब का सखा भी वही था और बचपन से लेकर आजतक हर राज का भागीदार भी।

“ बस थोड़ी दूर और फिर आ जाएगा अपना गाँव.. ।”अपना गाँव कहते राजा साहब की आवाज रौबदार हो गई थी ।

“ हरिया दादू आपको क्या ज़रूरत थी दादू की बात मानकर हम सबको यहाँ लेकर आने की?कितना अच्छा तो हम शहर में रह रहे थे…. पता नहीं कैसा गाँव होगा…. दादू बताओ तो सही मिट्टी का घर है क्या? हमें सुबह सुबह बाहर खेतों में तो नहीं जाना पड़ेगा ? ” जो कभी गाँव आए नहीं और जो सिनेमा में देखा वैसे ही गाँव की कलपना कर सोहम अपने दादू से सवाल किए जा रहा था

बारह साल के सोहम के साथ दस साल की सोहा भी गाँव आने के नाम पर नाक मुँह सिकोड़ रही थी , पर घर के मुखिया राजा साहब के आगे सबकी जबान पर ताला लग जाता है । बेटा संतोष और बहू सोना तो राजा साहब की हर बात आँख बंद कर मानते थे… राजा साहब की बोली ही ऐसी थी कि कोई भी उनसे बहस कर ही नहीं सकता था।

कहने को तो वो राजा साहब थे पर बस नाम राजा था…गाँव में थोड़ी सी ज़मीन थी और एक कच्चा पक्का घर।शहर जाकर वो पहले मज़दूरी करने लगे थे फिर धीरे-धीरे ठेका लेकर काम करना शुरू कर दिया था ।संतोष को भी उसी काम में लगा दिया था । दोनों बच्चे स्कूल जाते थे पर त्योहार पर छुट्टी मिली तो सोचा सबको एक बार गाँव ले चले.. एक बार अपना गाँव भी देखना ज़रूरी है ।

थोड़ी देर में राजा साहब ने कहा ,“ देखो अब ये पगडंडी सीधे हमारे घर की ओर जाने वाली बच्चे अपनी चाल बढ़ा कर आगे निकलने लगे।

थोड़ी दूर पर एक घर के बाहर खड़े होकर सवाल करने के नजर से राजा साहब को देखने लगे कि ये घर है क्या?



तभी घर के अंदर से एक बुजुर्ग महिला बाहर निकल कर आई और बोली ,“ अरे दीनदयालु देख तो रे रजवा आया है पूरा परिवार के साथ।”

अंदर से एक चालीस वर्ष का मर्द बाहर आया जो दीनदयालु ही था झपट कर बाहर आया और राजा साहब के चरण स्पर्श करते हुए बोला,“ आ गए चचा बहुत सालों बाद गाँव की तरफ आए हो… कितने दिन रह के जाओगे… अबकी हो तो आप सब यही रूक जाओ ।”

“ हाँ बिटवा हम तो यहीं रहने वाले हैं अब… बहुत रह लिए शहर में अब गाँव में रह कर दिन गुज़ारने है।”

“चलो आपका घर खोल देते हैं.. हमने सब व्यवस्था कर दिया है और हम अभी आप सब के लिए चाय नाश्ता लेकर आते हैं । रात का खाना कला बना देंगी सो आप लोग बस घर में आराम से बैठो।” घर का दरवाज़ा खोलते दीनदयालु ने कहा

राजा साहब के घर में सोना दूसरी बार ही आई थी पहली बार शादी के बाद विदा होकर और आज दूसरी बार बारह पन्द्रह साल पहले जब ब्याह कर आई थी तब इस घर में सासू माँ मिली थी.. कितने प्रेम से वो सोना का गृह प्रवेश करवाई थी… साल भर बाद खेत में काम करते ज़हरीले साँप ने काँट खाया और गाँव में वैध हकीम के चक्कर में जान बच न पाई।आज घर में घुसते सोना मंदिर में दिया बती कर सास की तस्वीर के पास भी जाकर एक दिया जला आई।

दीनदयालु के पास इस घर की चाभी रहती ही थी, उसने हर ज़रूरी चीज लाकर रख दिया था।

“ माँ मुझे यहाँ कहीं भी बाथरूम नहीं दिखाई दे रहा.. ।” हैरान परेशान सी सोहा ने कहा

“ अरे बेटा यहाँ घर के अंदर नहीं पीछे बाथरूम बना हुआ है ..चलो मैं दिखाती हूँ ।” कहकर सोना पीछे आंगन की तरफ़ चली गई

देखा तो बड़े से ड्रम में साफ पानी भरा हुआ था।हैण्डपम्प तो पहले से ही लगा हुआ था। सोहा को समझा कर सोना उधर ही बगीचे को निहारने लगी।

यहाँ आकर उसे भी बहुत अच्छा लग रहा था।

दीनदयालु सबके लिए चाय नाश्ता लेकर आया।संतोष और दीनदयालु हम उम्र थे और बचपन में साथ साथ ही खेलते पढ़ते बड़े हुए थे।इसलिए दीनदयालु सोना से हँसी मज़ाक़ कर लेता था उसे चाय पकड़ाते हुए बोला,“ भौजाई आप तो एकदम शहरी हो गई हो.. तनिक हमरी मेहरारू को भी मिल कर उसे टिप टॉप बना दो।”

“ धत्त भाई साहब आप भी ना मज़ाक़ करने का कोई बहाना ना छोड़ते ।” सोना लजाते हुए बोली

रात का खाना खा कर सब सोने चले गए।

हरिया और राजा साहब एक साथ ही सोते थे।

“ हरिया तनिक कल उसके गाँव पता करके तो आओ वो सब ठीक तो है..।राजा साहब ने धीरे से कहा

“ अच्छा तो आप इसलिए शहर से भागे भागे गाँव आए हैं… आप अभी भी ना भूलें बाबू….. हम तो सपने में भी ई बात सोच नहीं सकते थे।” हरिया ने कहा

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राजा साहब भाग 2

राजा साहब (भाग 2 ) – रश्मि प्रकाश

रश्मि प्रकाश

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