” आज मुझे ऐक्टिव सर्विस से रिटायर होने में बस एक हफ्ते ही रह गए हैं “
ऑफिस के लंच ब्रेक में अकेली बैठी सीनियर मैनेजर ‘दर्शना’ की आंखों के सामने स्मृति के चलचित्र चल रहे हैं।
करीब इक्कीस बर्ष की थी मैं जब
न्यू कोऑपरेटिव कालोनी के उस पीले रंग की बड़े से मकान की बहू रानी बन कर आई थी।
सुंदरता ,सलज्जता और सौम्यता की प्रतिमूर्ति दर्शना पहली ही नजर में रोहित को भा गई थी।
मेरा मन पढ़ाई में बहुत लगता था। शादी की पहली रात ही पति रोहित ने मुझसे वादा किया था ,
” तुम जब तक चाहो अपनी पढ़ाई जारी रखी सकती हो। आगे अगर तुम्हारी इच्छा सर्विस करने की होगी तब अवश्य करना “
” मेरी तरफ से किसी प्रकार की बंदिश नहीं होगी “
फिर क्या था ?
शायद रोहित को इसकी आशंका पहले से ही थी कि वे मुझको बीच राह में अकेला छोड़ कर जाने वाले हैं “
बहरहाल … मैंने रोहित के सुंदर साथ और साहचर्य
की बदौलत घर-गृहस्थी में संतुलन बनाए रखते हुए अपनी पढ़ाई बदस्तूर जारी रखी एवं बैंक की प्रतियोगी परीक्षा में पास हो कर सीनियर मैनेजर की पोस्ट तक आ पहुंची हूं।
उम्र के चालीसवीं पड़ाव पर रोहित मुझे मेरे बेटे के साथ अकेले छोड़ कर चले गए।
मेरी जिंदगी वीरान हो कर बिखरने के कगार पर थी।
मुझे कुछ भी होश नहीं रहा था।
मन पर छाई उदासी का आलम यह था कि घर- बाहर की दुनिया से पूरी तरह निर्लिप्त हो कर खुद को घर में कैद कर ली थी।
शादी के महज कुछ बर्षों बाद ही कितना कुछ घटित हो गया था।
सन्तोष मिला है तो सिर्फ़ दो बातों से …
” बेटे ‘ केशव ‘ ने मुझ पर समस्त ध्यान रखते हुए भी अपनी पढ़ाई पर पूरी तरह से काबू़ रख कर
हमेशा प्रथम श्रेणी में पास करता हुआ स्कौलरशिप पाने में भी सफल रहा “
” महज चौदह बर्ष की आयु में मेरा बेटा अक्षय मुझसे कहीं बहुत अधिक होशियार निकला “
उस छोटी सी उम्र में उसने एक पिता की भांति मजबूत सहारा बन कर न सिर्फ मुझको संभाला वरन् वह मेरा संबल बने गया।
मैं आश्चर्य में डूब जाती जब उन कठिन परिस्थितियों में भी कितनी बार मेरे द्वारा पूर्णतः चुप्पी साध लेने पर वह स्वयं आगे बढ़ कर मेरी पीठ थपथपाता ,
” ठीक है मां , आप नहीं कुछ कहोगे तो भी चलेगा ‘ मैं हूं ना ‘ “
उसकी हिम्मत देख मुझमें भी हिम्मत आ जाती।
फिर धीरे- धीरे मैंने खुद को समेटना शुरू किया।
केशव के सहारे मैं खुद को फिर से जगाने में सफलता हासिल की। उसने मुझे मेरे दोस्तों , परिवार ,नाते – रिश्ते सबसे फिर से मिलवाया एवं बराबर मुझे सबसे जुड़े रहने को प्रेरित करता रहता।
जैसा कि अक्सर होता आया है। जब तक बेटों की शादी नहीं होती है मां उनके लिए आदर्श होती है।
मैं इसकी अपवाद नहीं हूं। केशव ने पढ़ते समय से ही साथ की पंजाबी लड़की के साथ ब्याह करने की सोच मुझसे इजाजत मांगी।
मैं भी बहुत खुश थी अब तो पंजाबन बहू के हाथ के सरसों के साग के साथ मकई की रोटी खाने को मिलेगी।
शादी की सभी रस्मों में खूब बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया बहू घर आ गयी।
सब कुछ ठीक ही चल रहा था। मेरा ऑफिस , बहू का मायका कुल मिलाकर तालमेल बढ़िया था ।
अब जहां एक टोकरी में चार बर्तन रहेंगे वहां थोड़ी बहुत छनछुन तो होगी ही यह सोच मैंने अपना दिल ऑफिस वर्क और मित्रों-दोस्तों में लगा दिया है।
खूब घूमना फिरना , कभी बाहर ट्रिप पर भी निकल जाती केशव का पूरा समर्थन मुझे प्राप्त है पर बहू को अब यही सब अखरने लगा ।
उसे लगता ये मां- बेटे मिल कर खुद ही सब कुछ तय कर लेते हैं।
जीवन की कुछ लड़ाइयां भी ना !
कभी खत्म ना होने वाली होती हैं। वे क्रमशः वार चलती हैं।
यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं कि वह अगले ही दिन खत्म हो जाए बल्कि कभी- कभी तो शांति युद्ध लंबा खिंच जाता है।
मेरी आज और अब की किचकिचाहट की असली वजह यही है। केशव मुझसे बहुत दूर ऐब्रौड में नौकरी करते हुए बहू हिमांशी और बच्चों के साथ अपनी नयी जिंदगी में रम गया है।
दो चार सालों में आकर कभी घूम जाता है।
फोन पर पहले तो अक्सर अब कभी- कभार ही बातें हो पाती हैं।
मैं ने भी खुद को औफिस के कामों पूर्णतया समर्पित कर जनमानस के उत्तरोत्तर विकास में झोंक दिया।
इससे बच्चों की कमी भी नहीं खला करती।
लेकिन अब मेरे रिटायरमेंट के बस एक हफ्ते ही बच रहें हैं। आगे की पहाड़ जैसी जिंदगी किस तरह और किसके सहारे कटेगी ?
इतने दिनों तो काट लिया अब ?
सोच- सोच कर परेशान हो रही थी कि अचानक फोन की घंटी बज उठी ,
” हैलो , मां … “
उधर फोन पर केशव है।
भरी हुई तो मैं पहले से थी। आवाज सुन कर भाव एकदम से उमड़ पड़े , जोरों से रुलाई फूट पड़ी ,
” बेटा , राजा बेटा … अब क्या ? कैसे काटूंगी दिन तुम सबके बगैर ? “
” हमारे बगैर ? क्या – क्या सोच रही हैं आप ?
आप इस तरह कैसे सोच भी सकती हैं ?
पता है आपको ?
मैं ने यहां एक बैंक में बात की है।
वे आपके बायोडाटा और पिछली सफल उपलब्धियों के आधार पर आपको सलाहकार के रूप में नियुक्त करना चाहते हैं,
” मैं अगले हफ्ते आ रहा हूं।
वहां आपके रिटायरमेंट की शानदार पार्टी और्गेनाइज की है।
आपको अगले महीने से ही ज्वाइन करना है फिर हम सब साथ चले आएंगे बस आप सब तैयारी कर के रखिएगा “
खुशी के मारे मेरे बोल ही नहीं फूट रहे थे।
” बस करिए मां , सिर्फ़ रोती ही रहिएगा कि अपनी रजामंदी भी बताएंगी जिससे आगे के पेपर वर्क्स की फौर्मैलिटिज पूरी की जा सके “
क्या बोलती ?
फिर भी किसी तरह खुद को ज़ब्त करते हुई ,
“केशव, मुझे तुमसे इसी सहारे की उम्मीद थी बेटा !! ” बोल कर फोन रख दिया।
” हे ईश्वर जैसे मेरे दिन बदले हैं वैसे ही सबके बदलें “
कहते हुए मेरे हाथ उपर वाले की सिज़दा में खुद व खुद उठ गये हैं।
#सहारा
सीमा वर्मा / नोएडा