वाह बेटा बड़ी चिंता होने लगी पत्नी की. – कनार शर्मा 

बहुत हुआ समीर तुम्हें क्या लगता है “मुझे किसी के सहारे की जरूरत नहीं है”???? क्या ये बच्चा सिर्फ मेरा है?? क्या बच्चा पैदा करने के बाद मां तुरंत रिकवर हो जाती है??… तुम्हें अंदाजा भी है प्रेग्नेंसी के 9 महीने तरह-तरह के बदलाव सहन किए, बदलते हारमोंस, चिड़चिड़ापन उल्टी की शिकायत, उठना बैठना, चलना मुश्किल हो गया था फिर भी मांजी ने मुझसे आखरी दिन तक घर के सारे काम कराए, पटले पर बैठकर कपड़े,बर्तन धुलवाए, चक्की चलवाई ताकि नॉर्मल डिलीवरी हो सके मगर हुआ क्या डॉक्टर ने अचानक सीजर कर बोल दिया… इतने कटने के बाद 10 दिन तक बिस्तर से उठना मुश्किल हो गया। उस पर भी बच्चे को फीड कराना एक बड़ा संघर्ष जैसा लग रहा है। उसका पेट नहीं भर पाती अपने आपको दोष देती हूं, रातभर सोता नहीं, सुसु पॉटी से परेशान रहती हूं… कहने को 30 दिन होने आए मगर कोई कमरे में  मेरी मदद कराने कमरे में नहीं आता

अरे यार तुम्हें तो पता है ना कि मम्मी के नियम,सूतक 40 दिन तक कोई भी कमरे में नहीं घुसेगा वो तो आज मेरा मन मुन्ना को देखने का कर गया… तो ऑफिस जाने से पहले आ गया और तुम्हें पता है मम्मी के घुटनों में कितना दर्द रहता है, दोनों बहने कॉलेज जाती हैं… और फिर तुम कौन सी दुनिया की पहली औरत हो जिसने बच्चे पैदा किए हैं हर औरत करती है और फिर थोड़ा बहुत तो तुम्हें सहना पड़ेगा ही… बड़ी लापरवाही से बोला!!

बिल्कुल सही कहा मैं दुनिया की पहली औरत नहीं हूं पर क्या बच्चे की सारी जिम्मेदारी सिर्फ मां की होती है… नहीं वो तो पूरे परिवार की होती है शायद ये बात आपको बताना आपकी मां आपको भूल गई…!!

और जब जिम्मेदारी आई तो किसी को दर्द तो किसी को नियम याद आए ये सब तब क्यों याद नहीं आता जब एक लड़की को ताने दिए जाते हैं 2 साल होने आए लगता है बच्चा पैदा नहीं कर पाएगी, कोई कमी है इसमें, मेरा लड़का फंस गया, अब मेरे लड़के का क्या होगा?? वंश कैसे बढ़ेगा?? ये सब बोलने से पहले किसी को कोई नियम याद नहीं आते… अब जब आज बच्चा पैदा हो गया तो सब नियम बनाकर बैठे हैं… पोता हो गया तो मुझे मायके नहीं जाने दिया 40 दिन यही रुकना पड़ेगा मगर कोई मुझे ढंग से खाना तो दो लड्डू, घी, दूध ऑपरेशन हुआ है कहकर नहीं देते… दूध की ताकत कहां से आएगा?? बच्चा कैसे पनपेगा?? कुछ नहीं तो मूंग की दाल,दलिया और दो रोटी तो ढंग से दे दो… वो भी दरवाजे से सरकाकर चले जाते हैं जैसे कि मुझे कोई छुआछूत की बीमारी हो गई है… ऑपरेशन का बहाना बनाकर ही मालिश वाली भी नहीं लगाई कि थोड़ी मदद वही कर जाती!!




आज जब मुझे सबकी जरूरत है तो सब ने हाथ ऊपर कर दिए अब क्यों नहीं करते अपने वंश की देखभाल… दो साल से जब बच्चा पैदा नहीं हो रहा था तो दोष मुझे देते थे आज जब बच्चा हो गया है तो छोड़कर बैठे गए हैं… और सात जन्म तक साथ निभाने वाले पति ने कितनी आसानी से कह दिया “सहन करो”… क्यों ना एक बार तुम सहन करो… कुछ नहीं तो पेट पर 10 किलो का पत्थर बांध लो फिर पता चल जाएगा सहन करना किसे कहते हैं… अगर 1 घंटे भी बांधकर रख लिया ना तो मेरा नाम बदल देना… एक तरह से यह मेरे साथ अन्याय है और इसके खिलाफ मैं बोलकर ही रहूंगी आप खुद ही सोचें कल आप अपने बूढ़े होते मां बाप की सेवा मुझसे किस मुंह से करवाएंगे आज यहां सब मिलकर मेरी बेकद्री कर रहे हैं क्या मैं कल इज्जत से उनकी कदर कर पाऊंगी और उसका कारण भी आप ही होंगे… गुस्से में नंदिनी बोली!!

बहुत बड़ी गलती हो गई जो तुम्हारे कमरे में आ गया मां ने तो सख्त हिदायत दी थी… पर मैं ही मूर्ख हूं… समीर नंदिनी की बात सुन झुंझलाकर बोला!!

 हां तुम मां की ही बात मानो अपनी पत्नी और बच्चे की चिंता मत करना चाहे हम मर जाए या डिप्रेशन में चले जाएं उससे भी अगर  बच गए तो फिर तुम मेरा इस्तेमाल करना और मेरा बच्चा मेरा बच्चा कहकर सीना चौड़ाकर लेना… मगर जब संभालने की बात आई तो कमरे में मत घुसना।

 एक बात बताइए मैं खुद तकलीफ में हूं ऊपर से छोटा सा बच्चा संभालना पड़ता है आप अगर थोड़ी सी मदद कर देते तो आपका क्या जाता???? मगर नहीं मां ने कह दिया पत्थर की लकीर आपकी खुद की अकल तो मिट गई है… आपका खाना पीना तो सब मां कर ही रही हैं ऑफिस गए ऑफिस से आए टीवी देखा और सो गए दूसरे कमरे में…. कभी सोचा कि मेरी पत्नी कैसी है, उसे कोई तकलीफ तो नहीं… “समीर इस समय मुझे जहां अनुभवी हाथों की जरूरत है उसी तरह आपके प्यार और सहारे की भी जरूरत है”… ये बात किसी को नहीं समझ में क्यों नहीं आती??…. कहते हुए नंदनी फफककर रो पड़ी…!!

नंदनी को देख समीर को समझ आया कहीं ना कहीं इसकी हर बात सही है बच्चा नहीं हो रहा था तब भी इसने मानसिक तनाव झेला, बच्चा होने लगा तो मानसिक और शारीरिक तनाव झेला और अभी भी झेल रही है। यही अगर हम सब घरवाले मिलकर  इसकी परेशानी बांट लेते तो आज ये इतनी चिड़चिड़ी ना होकर  खुश होती मगर नहीं हम तो सिर्फ वंश बढ़ गया यही सोच सोच कर खुश हैं। 

अरे जब एक नया सदस्य बढ़ा है तो उसकी देखभाल और जिम्मेदारी भी तो सबकी बनती है आखिर ये मां बनी है, तपस्या इसकी है मगर मैं भी तो बाप बना हूं, मां बाबूजी भी तो दादा-दादी बने हैं। सच ही तो है जिम्मेदारी हम सबकी है फिर हम क्यों बच्चें का बोझ सिर्फ मां पर डालकर फालतू के नियम कायदे बना रहे हैं…!!




समीर ने तुरंत रोते हुए मुन्ने को गोद में उठाकर रसोई की तरफ बढ़ गया वहां पर चंपा बाई जी सबके लिए नाश्ता बना रही थी। समीर ने उससे कहा सारा काम छोड़ दूध, दलिया तैयार करो और भाभी के कमरे में दे कराओ।

 मगर भैया मांजी ने तो ऐसा कुछ नहीं कहा अगर मैंने ऐसा किया तो मुझे बहुत डांट लगाएंगी। भाभी का खानपान तो मांजी ही संभालती हैं।

 मैं तुमसे क्या कह रहा हूं वो सुनो सबसे पहले दलिया निकालो तैयार करो उसे दे कराओ बाकी काम और बातें बाद में…

क्या हुआ?? लल्ला क्यों चिल्ला रहे हो क्या देकर आना है?? किसको देकर आना है?? विमला जी रौबदार आवाज में बोली (घर परिवार में उनका एक छत्र राज चलता है धनाढ्य परिवार से थी जिसका उन्होंने बहुत फायदा उठाया धीरे-धीरे उनका वर्चस्व बढ़ता गया। उनकी एक आवाज पर लोग थरथर कांपते हैं अगर उन्होंने कोई एक फैसला कर दिया उसे पलटना किसी के बस की बात नहीं यहां तक कि उनके पति घनश्याम ही नहीं सास ननदें भी चुप रह जाती थी। ऐसा रूतवा उनका वर्षों से चला आ रहा है)

मां नंदनी बहुत परेशान है बच्चा रातभर परेशान करता है। दूध भी नहीं उतरता ढंग से, बेचारी मुरझा गई है…!!

 वाह!! बेटा बड़ी चिंता होने लगी पत्नी की और मां के सब नियम, धर्म भूल गया… देखा मैंने मना किया था ना उसके कमरे में मत घुसना और देख क्या हुआ?? मां से जबान चलाने लग गया और एक बात बता मुन्ना को तू कमरे से बाहर लेकर क्यों घूम रहा है?? सूतक लगा है इसे कमरे में ही रहने दे… जा छोड़कर आ और चंपा तुम नाश्ता तैयार करो उसके लिए रोटी और मूंग की दाल बाद में बनाना..!!!

 मगर मां मैंने तो दलिया बनाने को बोला है अभी उसे भूख लगी है!!

 तुम चुपचाप ऑफिस जाओ ज्यादा घर के मामले में पड़ने की जरूरत नहीं….!!!

 नहीं ये गलत है आपको क्या लगता है उसे हमारे सहारे की जरूरत नहीं… बहुत ज्यादा जरूरत है और मैं अब महीने भर की छुट्टी ले रहा हूं… मुन्ना को मैं संभाल लूंगा और उसके खाने-पीने का ध्यान मैं खुद रख लूंगा और उसके कमरे में ही सोऊंगा ताकि रात में मुन्ना परेशान करें तो मैं भी संभाल सकूं और वो थोड़ा आराम कर सके। वो मेरी पत्नी है अगर उसे कुछ हो गया तो आप समझ सकती हैं मेरा और मेरे परिवार का क्या होगा???? मुन्ना को कौनसा संभालेगा??? मां बहुत हुए आपके नियम, सूतक मैं नहीं मानता जहां किसी की जान चली जाए वहां ये सारे नियम कायदे कानून भूल जाना चाहिए… बोल नंदनी के कमरे में चला गया।




अपने बेटे में आए अचानक परिवर्तन को देख विमला जी घबरा गई अगर यह नौकरी छोड़कर घर में बढ़ जाएगा तो महीने का खर्चा कौन चलाएगा यही तो मेरा कमाऊ पूत है और उन्हें अच्छे से पता था वह अपनी बहू की जिम्मेदारी से बचने के लिए ही ऐसा कर रही है जानबूझकर ही उसे खाना खाने को नहीं दे रही है पैसे बचाने के चक्कर में मालिश वाली नहीं लगाई बस कैसे भी कर कर सूतक के 40 दिन निकल जाएं तो फिर से बहू को रसोई में झोंक देंगी… यही सोचकर बैठी थी मगर ये क्या ज्यादा अकड़ बताई तो बेटा, बहू और पोता सब हाथ से चले जाएंगे।

 फटाफट चंपा से दूध दलिया तैयार करवाया और लड्डू तैयार करने के लिए सामान निकालकर भुनने, सेकने को बोल नंदनी के कमरे में पहुंच बोली “बहु सबसे पहले नाश्ता करो जिससे तुम्हें ताकत आएगी” और दोपहर से मालिशवाली को बुलाया है। तुम्हारी और बच्चे दोनों की मालिश करेगी और तो और मैंने डॉक्टरनी से पूछ लिया है ऑपरेशन में शुरू में लड्डू नहीं दे सकते मगर कुछ दिन बाद शुरूकर सकते हैं। कल से तुम्हें लड्डू देना शुरूकर दूंगी ताकि तुम्हें ताकत बनी रहे और मुन्ना भी भूखा नहीं रहेगा… अच्छा लल्ला एक काम कर तू निश्चिंत होकर दफ्तर जा मैं जच्चा और बच्चा दोनों की देखभाल में कोई कमी नहीं रखूंगी और प्रिया नीता को कॉलेज से आने दे एक-एक कर रात में यही सोने की ड्यूटी उनकी लगाऊंगी ताकि मुन्ना रात में उठे तो बहू को परेशानी ना हो और वह आराम कर सके..!!

ठीक है मां तुमने अच्छा निर्णय लिया मगर आज की तो मैंने छुट्टी ले ली है कल रविवार है 2 दिन तक मैं मुन्ना के साथ ही रहना चाहता हूं इतने दिन से इन दोनों के बारे में नहीं सोचा मगर साथ रहकर इनका “सहारा” मैं भी बनना चाहता हूं….!!

नंदनी अचानक हुए इस बदलाव को देखकर आश्चर्य में थी और विमला जी अपने बेटे की बात सुन मुंह बिचकाकर कमरे से बाहर निकल गई… अब उन्हें भी समझ आ गया कि सही को सही और गलत को गलत कहने का समय आ गया है.…!!!

दोस्तों,

 सहते रहने से बात नहीं बनती कई बार बोलकर अपना दुख, तकलीफ बताना होता है।

 इंसानी फितरत है वो सोचता है हमें किसी के सहारे की जरूरत नहीं मगर नहीं ऐसा नहीं है जरूरत सबको होती है बस हम उसे स्वीकार नहीं करना चाहते।

या फिर कई बार मजबूर होकर बोल नहीं पाते मगर चुप रहने से स्थिति सुधरती तो नहीं है इसलिए एक बार बोलकर प्रयास जरूर करें ज्यादा नहीं तो कोई थोड़ा तो आपको समझेगा… ऐसा मेरा मानना है…. आपकी क्या राय है जरूर बताइएगा….!!

आशा करती हूं आपको मेरी रचना जरूर पसंद आएगी धन्यवाद 

आपकी सखी 

कनार शर्मा 

(मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित)

#सहारा

 

 

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