कैदी नंबर सात सौ छियासी – डॉ संगीता अग्रवाल   : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : आज कैदी नंबर सात सौ छियासी की रिहाई का दिन था,वो तो आज भी जेल से जाने के नाम खुश न था और सारे कैदी,यहां तक की जेल स्टाफ उसके जाने से दुखी था क्योंकि वो था ही इतना अच्छा।

उसकी सजा बीच में ही माफ कर दी गई थी क्योंकि उसका परम मित्र राघव ने आकर ये बयान दिया था कि जिस अपराध के लिए इसने सजा काटी वो असल में इसने किया ही नहीं,उसका दोषी तो मैं हूं।

सब लोग आश्चर्य में पड़ गए,ऐसा कैसे हुआ लेकिन जो कहानी राघव ने सुनाई वो सबकी आंखें भिगो गई।

कहानी की शुरुआत होती है एक छोटे से शहर चांद नगर से जहां बिरजू नामक एक युवक रहता था जो बहुत गुणी था,घर परिवार से समृद्ध,पढ़ा लिखा नौजवान,अच्छी कमाई करता बस एक ही कमी थी उसमें कि वो रंग का काला था और वो ही थोड़ा बहुत नहीं,एकदम उल्टा तवा जैसा।रात में कोई अचानक देख ले तो चीख निकल जाए।

विधि का विधान देखिए,उसका मित्र, राघव बहुत सुंदर,गोरा चिट्ठा था पर गरीब था,वो बिरजू जैसा अमीर बनने की ख्वाहिश रखता, सो उसने एक तरीका निकाला कि अपनी बहन रागिनी की शादी बिरजू से करवा देगा,इस तरह बिरजू हमेशा उसका ऋणी भी हो जायेगा और उसके धन पर ही कुछ अधिकार तो उसका हो ही जायेगा।

समय बीता,बिरजू के पिता के बचपन के दोस्त,अपनी बेटी रूपा का रिश्ता बिरजू के लिए लाए तो सारे घर में उल्लास की लहर दौड़ गई।

बिरजू समझ नहीं पा रहा था कि ये सब कैसे हो गया,रूपा,बहुत गोरी,सुंदर,गुणवान थी,भला उसका और रूपा का क्या मेल लेकिन उसके पिता दोस्ती की खातिर तैयार थे।

राघव को जब ये बात पता चली वो क्रोधाग्नि से जल उठा।एक तो उसकी बहन वाली बात उसके दिल में रह गई दूसरे इतनी सुंदर लड़की से काले कलूटे बिरजू की शादी..उसे हजम न हुई।

वो आए दिन,बिरजू के कान भरता,बिरजू! संभल के रहना!!आजकल की लड़कियां बड़ी तेज होती हैं,क्या पता इसने तुमसे शादी तुम्हारे रुपए पैसे के लिए की हो?”

नहीं..नहीं..रूपा बहुत भोली है,वो मुझसे सचमुच प्यार करती है।दरअसल बिरजू खुद बहुत अच्छा था फिर भी राघव की बातें उसके दिमाग में शक का बीज बो ही गई थीं,शायद उसको खुद कॉम्प्लेक्स था अपने रंग को लेकर इसलिए उसे डर बना रहता था।

बिरजू ने राघव के कहने पर एक अंगूठी रूपा को उपहार में दी और कहा,इसे हमेशा अपने साथ रखना,ये मेरे प्यार की निशानी है,मरते दम तक ये तुम्हारे पास होनी चाहिए।

रूपा भी उसे जान से ज्यादा संभाल के रखती।

समय बीतता गया,रूपा गर्भवती थी,बिरजू उसका बहुत ख्याल रखता,उसे नियमित चेकअप के लिए ले जाता।उसका डॉक्टर मित्र जोसेफ था,उसकी पत्नी की निगरानी में रूपा की डिलीवरी होनी थी।वो लोग बहुत अच्छे मित्र थे और अक्सर आपस में गपशप करते,खाते पीते और समय बिताते।

राघव अभी भी ताक लगाए रहता कि कोई मौका मिले और बिरजू और रूपा में झगड़ा करा के उन्हें अलग कर दे।भले ही इससे,उसका क्या भला होता पर बिरजू को दुखी कर उसे सुख मिल जाता।

एक दिन,रूपा की हालत बहुत बिगड़ गई,इमरजेंसी में,जोसेफ आकर रूपा को अपनी गाड़ी में हॉस्पिटल ले गया।

पीछे,जब बिरजू घर लौट रहा था,उसका एक्सीडेंट हो गया,उसके फ्रैक्चर हो गया था,इसलिए उसे बिस्तर पर ही रहना पड़ा महीना भर।

उसकी अनुपस्थिति में,राघव बिरजू के कान भरता,रूपा भाभी जोसेफ के साथ गई हैं..कब तक आएंगी?

अरे!वो हमारा दोस्त भी है और फैमिली डॉक्टर भी,रूपा को सेवेंथ मंथ चल रहा था, उस दंपत्ति की मदद से ही रूपा की डिलीवरी सही वक्त पर होगी,वो न होते तो क्या होता?”

बहुत भोले हो तुम!राघव कहता,ये देखो!रूपा भाभी और जोसेफ की तस्वीरें,साथ में पिकनिक मना रहे हैं शायद..दोनो के हाथ में आइसक्रीम का कोन था,खा रहे थे और मुस्करा रहे थे।

बिरजू टकटकी लगाए देखता रहा,एक तो बीमारी के कारण,लगातार बिस्तर पर रहने की चिड़चिड़ाहट,दूसरे खुद का कॉम्प्लेक्स कि मै काला हूं और जोसेफ गोरा ,रूपा भी कम गोरी नहीं,क्या पता मुझसे दिल भर ही गया हो?

शाम को रूपा आई,बिरजू का मूड उखड़ा था,रूपा दो कप फिल्टर कॉफी बना कर लाई जिससे उसका मूड अच्छा हो जाए पर उसके दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुला रहा था।

तुम्हारी अंगूठी कहां है जो मैने तुम्हें दी थी?”गुस्से से पूछा बिरजू ने।

आज से पहले कभी इस टोन में नहीं बोला था बिरजू,रूपा कांप गई, उतार दी थी वो,प्रेगनेंसी में उंगली सूज रही थी तो फंस गई थी।

लेकर आओ,कहां रख दी,कहा था ना उतारनी नहीं है..”वो चिल्लाया।

वो तो डॉक्टर जोसेफ के क्लिनिक पर रह गई,अब तो रूपा डर से रोने लगी लेकिन बिरजू की आंखों में खून सवार था।

वो रूपा के करीब आया,तुमने मुझे धोखा दिया?तुम मुझे पसंद नहीं करतीं,उसने रूपा को अपने करीब खींच कर भींच लिया।

क्या कर रहे हो,दर्द हो रहा है,बेवहज शक मत करो बिरजू,कल अंगूठी लाकर दे दूंगी।”

नहीं!तुम दगा बाज हो,राघव कब से मुझे समझा रहा था मैं ही बेवकूफ था जो नही सुनता था उसकी, कहते हुए,बिरजू के हाथ,रूपा की गर्दन पर कसते चले गए,तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था रूपा, मै तुम्हें बहुत प्यार करता था।

वो बोलता गया और रूपा की गर्दन निढाल होकर एक तरफ लटक गई।

जब तक वो होश में आया,रूपा जा चुकी थी उसे छोड़कर।

वो फूट फूट कर रोने लगा और खुद को अरेस्ट करवा दिया, मै खूनी हूं,मैंने अपनी प्यारी पत्नी को मार दिया।

राघव का काम हो गया था,बिरजू की सारी संपत्ति का अघोषित मालिक वो ही था अब।उसने बहुत पैसा बनाया,शादी भी की,उसकी बीबी बच्चे उसे खूब चाहते थे लेकिन अक्सर रातों को उसकी नींद उड़ जाती जब भी वो बिरजू के लिए सोचता।वो जानता था रूपा निर्दोष थी,उसने बिरजू को मजबूर किया कि वो रूपा पर शक करे और मार ही डाले,इस अपराध बोध से उसका जीना मुहाल हुआ जाता।

एक दिन वो ,सपरिवार वैष्णो देवी के दर्शन को गया,उसने सोचा,देवी मां से अपने गुनाहों की माफी मांग लूंगा शायद कुछ दिल हल्का हो।

जाते वक्त,उसकी पत्नी और बच्चे जिस वाहन पर सवार थे,वो दुर्घटना ग्रस्त हो गए और मर गए और वो अकेला ही बच गया।

तब से लेकर अब तक उसे एक पल चैन नहीं था,वो चीख पड़ता,रूपा की आत्मा मुझसे बदला ले रही है ,वो मुझे नहीं छोड़ेगी और जब उसकी दिमागी हालत बिगड़ने लगी तो उससे पहले ही जेल जा पहुंचा,उसने अपना जुर्म कुबूल किया,रूपा को बिरजू ने नहीं मारा जज साहेब!उसे मैंने मारा है,आप मुझे गिरफ्तार कर लीजिए।

बिरजू अवाक था,उसने अपने तथाकथित दोस्त के बहकावे में आकर,अपनी देवी जैसी पत्नी पर शक किया,उसे उसका फल मिल चुका था।

#शक

डॉ संगीता अग्रवाल

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