प्रसाद – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

सुनो जी… कोई बाहर खड़ा हैँ काफी देर से….

तो देखकर आओ तुम …. कौन है ?? देख नहीं रही मैं अखबार पढ़ रहा हूँ…. चश्मा ऊपर करते हुए कैलाश जी पत्नी श्री से बोले…

घंटी तो बजा ही नहीं रहा…. तभी मैं गयी नहीं… कहीं चोरी करने की फेर में तो नहीं हैँ ये…. तभी तांका झांकी कर रहा हो…. बस घर की तरफ घूर रहा हैँ…

ठीक हैँ देख कर आती हूँ…. आटे सने हाथों से उर्मिला जी बाहर आयी….

बाहर यहीं कोई 24-25 साल का लड़का खड़ा था…. सांवले रंग का, लम्बा , जींस जैकेट  पहने , बड़ी बड़ी आँखें बहुत ही आकर्षक  लग रहा था वो लड़का….

आपको किसके घर जाना हैँ बेटा….. बहुत देर से खड़े हो यहां….

उर्मिला जी उस लड़के से बोली…

जी क्या कैलाश सर रिटायर्ड फरॉम माध्यमिक विद्यालय कलाल खेरिया आगरा, यहीं रहते हैँ…?? वो लड़का आत्म विश्वास से बोला….

लड़के के मुंह से अंग्रेजी के शब्द सुन उर्मिला जी इतना तो निश्चिंत हो गयी कि ये चोर नहीं हैँ….

हां बेटा यहीं रहते हैँ… आप कौन हो बेटा…आपको पहले तो कभी देखा नहीं…??

यह सुन कि यहीं रहते हैँ कैलाश सर… उस लड़के की आँखों में चमक आ गयी…..

जी… आप उन्हे बुला देंगी तो अच्छा रहेगा…. शायद वो पहचान जायें ….

बेटा अन्दर आकर बैठ जाओ….

जी नहीं आंटी…. पहले सर से मिल लूँ…. मैँ यहीं खड़ा हूँ…

तभी अंदर जा उर्मिला जी ने कैलाश जी से बताया कि कोई लड़का आपको बुला रहा हैँ….

नाम क्या हैँ उसका??कैलाश जी बोले…

जी वो तो मैने पूछा नहीं….

तुम हमेशा अधूरे काम करती हो… मैं ही जाता हूँ….

कैलाश जी मफलर सर पर बांधते हुए बाहर आयें…..

उन्होने अपना चश्मा ऊपर कर उस लड़के को निहारा …. बेटा मैने तुम्हे पहचाना नहीं…. क्या नाम हैँ तुम्हारा…. ??

सर…. मैं पहचान गया आपको… उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था… उसने आगे बढ़कर कैलाश जी के चरण स्पर्श किये… सर…. मेरी इतनी दूर आने की मेहनत सफल हुई….

मैं अभी भी नहीं पहचाना बेटा तुम कौन हो??

जी मैं नारायण दास का बेटा हूँ…. जब आप बरेली में पोस्टेड थे….उसी स्कूल में मेरे पिता जी सफाई करते थे…. मैं भी वहीं पढ़ता था….

अरे श्याम तू ….. बस बस अब कुछ कहने की ज़रूरत नहीं… अंदर चल…. श्याम का हाथ पकड़ कैलाश जी अंदर ले गए….

उन्होने उर्मिलाजी को बोला… उर्मिला चाय नाश्ता लेकर आ…. श्याम आया हैँ….. फिर खाने को तैयारी करो… बहुत दूर से आया हैँ मेरा बेटा….

जी…. बनाती हूँ…

श्याम इतनी दूर से तू कैसे आया?? बरेली के बाद तो मेरा ट्रांसफर  कई जगह हुआ….?? और नारायण दास … भाभी जी कैसी हैँ?? उस समय फ़ोन भी नहीं थे कि संपर्क बना पाता … कई बार सोचा आने को…. पर ज़िम्मेदारियों से फुरसत ही नहीं मिली….

सर…बरेली से पता चला आप अयोध्या गए हैँ…. अयोध्या से पता चला जौनपुर ,जौनपुर से पता चला मथुरा , मथुरा से पता चला आगरा…. और आगरा से आप रिटायर होकर अपने घर फिरोजाबाद आ गए…. बस सब जगह पता करते करते पहुँच गया सर….

कैलाश जी की आँखें नम थी कि श्याम ने मुझे ढूंढ़ने के लिए इतनी मेहनत की….

पापा को गए तो 8 साल हो गए सर… माँ हैँ…. अभी तक वो भी सफाई का काम कर रही थी पर अभी दो महीने पहले मैं बैंक में पीओ बन गया तो सबसे पहली सैंलरी मिलते ही आपके पास आया हूँ…. ये लीजिये सर आपके दस हजार रूपये…. श्याम ने पैसे कैलाश जी की तरफ बढ़ाते हुए कहा …

ये पैसे मैं कैसे ले सकता हूँ….?? मुझे क्यूँ दे रहा हैँ ??

सर आप जैसे बड़े लोग हम गरीबों पर उपकार कर भूल ज़ाते हैँ… पर हम नहीं भूलते…. आपने पापा को मेरी आगे की पढ़ाई के लिए दस हजार रूपये दिये थे …. आप जल्दबाजी में सबसे मिले बिना चले गए पर पापा को अंत समय तक ये उपकार याद रहा… ये पैसे मेरे लिए अनमोल थे… इसी से  मैं आगे की पढ़ाई जारी रख पाया… अब समय आया हैँ इस कर्ज को चुकाने का… सर प्लीज रख लीजिये … नहीं तो पापा को क्या जवाब दूँगा ….

कैलाश जी ने श्याम को कसके गले लगा लिया… धन्य हैँ नारायण दास तू … धन्य हैँ तेरी खुद्दारी ….. तुझे शत शत नमन  मेरे दोस्त. …. और तेरे बेटे ने इतनी दूर का सफर सिर्फ इन पैसों का कर्ज चुकाने के लिए किया … विरले मिलते हैँ श्याम जैसे बेटे…..

नारायण दास होता तो उस से लड़ जाता… कहा था उससे कि श्याम मेरा भी तो बेटा हैँ…पर अब उसके ना रहने पर प्रसाद समझ ये पैसे रख ले रहा हूँ….

उर्मिला जी तब तक चाय नाश्ता ले आयी…. श्याम सुबह का भूखा बड़े मन से खाने लगा…. आज वो निश्चिंत जो हो गया था अपने पिता का कर्ज चुका कर ….

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

2 thoughts on “प्रसाद – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!