*प्रसाद* – *नम्रता सरन ” सोना “*

मंदिर के बाहर बहुत लंबी कतार थी दर्शनार्थियों की ,हर किसी को जल्दी से जल्दी भगवान के दर्शन पाने थे। कई लोग पंक्ति के बीच में घुसकर खुद को आगे बढाने का भी प्रयास कर रहे थे।लोगों मे धक्का मुक्की हो रही थी , कहासुनी भी हो रही थी, कोई कह रहा था.. ये कोई तरीका है दर्शन करने का.., तो कोई कह रहा था..–हम यहाँ पहले से खड़े थे.. ।

रमा भी अपने पति के साथ खड़ी धीरे धीरे कतार में आगे बढ़ रही थी।कतार इतनी लंबी थी कि रमा का नंबर आने मे अभी भी लगभग एक घंटा लगना था।

बहुत शोर भी हो रहा था… कोई मंत्र जप कर रहा था….कुछ लोग जयकारे लगा रहे थे।रमा भी मन ही मन ईश्वर का नाम लेती हुई पग पग आगे खिसक रही थी।

कतार में आगे बढ़ते बढ़ते रमा ने देखा… रेलिंग के पार एक महिला खड़ी है ..जिस के तन पर पुराने से कपड़े थे और हाथ मे एक छोटा सा बच्चा था ।वो महिला कातर दृष्टि से सबको देख रही थी , किसी से भीख भी नही मांग रही थी , उसका बच्चा रह रहकर रोता था…वो बैचेन सी उसको छाती से लगा लेती….बच्चा छाती में मुँह घुसा लेता …पलभर को चुप होता.. फिर वापिस रोने लगता… और वो महिला फिर उसे छाती से चिपका लेती..।

भीड़ के शोर में उसकी आवाज़ तो सुनाई नही दे रही थी.. लेकिन उसके हावभाव से उसकी मजबूरी और परेशानी साफ़ नज़र आ रही थी।

कतार धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी…. पर रमा तो जैसे वहीं जड़ हो गई.. बार बार उसको देखती और बैचेन हो जाती।

‘सुनो…रमा ने पति से कहा।’

‘क्या हुआ…. रमा का पति बोला।’

‘वो देखिए.. वो बच्चा कितनी देर से रो रहा है.. उसकी माँ कितनी परेशान लग रही है…रमा ने कहा।’



‘तुम उधर क्यों देख रही हो… ये तो इन लोगों का धंधा है..छोटे छोटे बच्चों को गोद मे लेकर भीख मांगने का… जल्दी जल्दी चलो पहले ही बहुत भीड़ है….पतिदेव कुछ झिड़कते हुए बोले..।”

रमा चुप हो गई… धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी। पर उसका ध्यान उस महिला पर ही केन्द्रित था…बच्चा बार बार रो रहा था.. माँ बैचेनी से उसको चुप कराने का निष्फल प्रयास कर रही थी।रमा का मन विचलित था…उसको एक एक कदम उठाना भारी लग रहा था।

अचानक कोई कतार में बीच में घुसने की कोशिश करने लगा..उस पर लोग चिल्ला पुकार करने लगे..।कतार की गति और धीमी हो गई।रमा ने देखा ,,उस महिला की आँखों से आँसू निकल रहे थे… बच्चा चुप नही हो रहा था।

रमा से रहा न गया… वो पति से बोला..”मैं दो मिनिट मे आती हूँ”

“चुपचाप यहीं खड़ी रहो…फालतू बातों में अपना दिमाग मत खपाओ….पतिदेव लगभग डांटते हुए बोले।

रमा आगे चलने लगी।अगले ही पल चुपचाप भीड़ से निकलकर लगभग भागते हुए महिला की तरफ़ दौड़ी।

“रमा….रमा….सुनो,…..पतिदेव ज़ोर से बोले।

रमा बिना उन्हें देखे दौड़कर सीधे महिला के पास पहुंच गई।

“बच्चा क्यों रहा है….रमा ने पूछा”

“भूखा है बहनजी…महिला ने नीची नज़रे करके उत्तर दिया…”

“तुम किसी से कुछ मांग भी नही रही.. क्या बात है….रमा ने पूछा।

“मांग मांग कर थक चुकी हूं बहनजी… कोई विश्वास नही करता कि बच्चा सच मे भूखा है….सबको लगता है कि मैं चिकोटी काटकर बच्चे को रुलाती हूँ..ताकि लोग दया करके मुझे भीख दे दें…मै कह कहकर थक चूकी हूँ कि , मेरा बच्चा सच मे भूखा है , उसे कुछ खाने को नही मिला तो वो दम तोड़ देगा… लेकिन कोई विश्वास नही करता… एक साँस मे वो महिला बोली.. और फफककर रोने लगी… बच्चा भी हिचक हिचक कर रो रहा था…”

रमा ने सारा प्रसाद , जो उसने भगवान को अर्पित करने के लिए लिया था… उस महिला को दिया और साथ मे ईश्वर को चढावे के लिए हाथ में पकड़े एक सौ एक रुपये भी उस महिला को देकर बोली…”जल्दी से बच्चे को कुछ खिला दो….।”

महिला रमा के पैर छूकर बोली-” आप तो भगवान हो बहनजी….मंदिर से निकलकर ,मेरे बच्चे मे प्राण फूकने आई हो…..आप तो भगवान हो बहनजी…।”

रमा ने पीछे मुडकर देखा…. पतिदेव कतार मे लगे…उसीको घूर रहे थे।

रमा धीरे धीरे आराम से चलकर गई और कतार में सबसे पीछे खड़ी हो गई… उसे कोई जल्दी नही थी…मंदिर में पहुंचने की… उसे भगवान के दर्शन हो चुके थे और वह प्रसाद भी अर्पित कर चुकी थी… और भगवान को प्रसाद ग्रहण करते हुए वो अपनी आँखों से देख रही थी…….

*नम्रता सरन ” सोना “*

भोपाल मध्यप्रदेश

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