छोटी छोटी खुशियां ही  बड़ी खुशी दे जाती है – गरिमा जैन

भाई ऐसा कर मां को थोड़ी दिनो के लिए मेरे यहां भेज दे। थोड़ा आराम हो जाएगा और रोज के कामों से थोड़ा ब्रेक भी मिल जायेगा।

हां भैया मैं भी यही सोच रहा हूं। मम्मी यहां बहुत थक जाती हैं ।मैं और विनीता  दोनों काम पर निकल जाते हैं और दोनों बच्चों की जिम्मेदारी मां पर आ जाती है ।जब वे स्कूल से आते हैं तो उन्हें खाना देना, ड्रेस चेंज कराना, हाथ मुंह धूलाना ,शाम को उनका होमवर्क कराना और जब हम लौट के ऑफिस से आते हैं तो मां जिद करके कोई ना कोई नाश्ता भी बना कर रखती है। कितनी बार मैंने मना किया है कि मां हम मिलकर खाना बना लेंगे लेकिन वह मानती ही नहीं।

 कभी ढोकला बना लेती है तो कभी पकोड़े कभी भेलपुरी तो कभी मठरी फिर कहती है यही जीवन का आनंद है। अगर रसोई सूनी पड़ी हो तो मुझे चैन नहीं आता ।तुम सब खुश होकर खाते हो इससे मेरा खून बढ़ जाता है। सच भैया मां को शायद मैं बिलकुल भी आराम नहीं दे पा रहा ।सोचता हूं उनके कमरे में एसी लगवा दूं लेकिन हम दोनों मिलकर कमाते हैं तब  भी पूरा ही नहीं पड़ता ।दोनों बच्चों की फीस घर का किराया ,पेट्रोल, राशन के बाद हाथ में महीने के अंत तक कुछ खास बचा ही नहीं पाते इसीलिए तो कहता हूं भैया आप कुछ दिन लखनऊ लेते जाइए ।

छोटे तू ऐसा कर  मां का टिकट करा दे। मैं यहां उतार लूंगा दो-तीन महीने मां मेरे यहां रहेगी तो बिल्कुल फ्रेश हो जाएगी।

दोनों भाई आपस में बात करते हैं और मां का टिकट कटा दिया जाता है। मां मुंबई की भीड़ भाड़ व्यस्त जिंदगी से लखनऊ की एक शांत जिंदगी की तरफ आ जाती है ।यहां तो बड़े बेटे का अच्छा सा अपार्टमेंट है, नौकर चाकर है, खाना बनाने वाली है, धोबी कपड़े ले जाता है। सच में बड़े लड़के और उसकी बहू को ज्यादा काम नहीं रहता ।बहू नौकरी भी नहीं करती दिन भर घर पर ही रहती है। दोनों बच्चों को पढ़ाती लिखाती है, उन्हें स्कूल लेने जाती है। मां जी को वहां बहुत सुख था बहुत आराम था ।वह सुबह उठती तो अखबार पढ़ती , थोड़ा टहल के आ जाती  लेकिन जब वह वापस टहल कर आती  थी तो दिन पहाड़ जैसा लगता।पूरा दिन जैसे  उनके सर पर खड़ा रहता। वह सोचती  वह दिन भर क्या करेंगी?



मुंबई में छोटे बेटे के पास तो सांस लेने की फुर्सत नहीं थी। वहां इतना काम था कि पूछो मत ।रात को बिस्तर पर लेटते ही नींद आ जाती ,लेकिन यहां पर कोई काम ही नहीं है। बड़े बेटे के दोनों बच्चे अब बड़े हो चुके हैं वह अपने अपने कमरे में पढ़ाई लिखाई करते रहते हैं या फिर लैपटॉप पर कुछ काम करते रहते हैं ।टीवी देखने का उन्हें शौक नहीं तब भी समय निकाल कर कोई पुरानी पिक्चर देख लेती , बड़े बेटे और बहू का व्यवहार बहुत अच्छा है लेकिन उन्हें कैसे समझाएं कि उनका मन नहीं लग रहा, वह तो तब खुश थी जब सब उनके पीछे लगे रहते।

 दादी जल्दी से हमें नाश्ता दो ,बहू और बेटे के साथ जल्दी-जल्दी काम करती ।सुबह-सुबह सबके टिफिन पैक होते जब वे ऑफिस चले जाते तब काम वाली आती ।वह उससे काम कराती ,पूरा किचन साफ करती। उसके बाद मशीन में कपड़े धोती, कामवाली कपड़े फैलाती , उससे बातें करती और उसके साथ चाय नाश्ता करती।दोपहर में जब वह चली जाती तब तक पोता पोती घर आ जाते ,उसके बाद उनका हाथ मुंह धूलाती, कपड़े बदलवाने से लेकर  ढेरों बातें सुनती फिर उन्हें अपने हाथ से खाना खिलाती।

सारे थक के सो जाते। 5:00 बजे सब्जीवाले से सब्जियां लेती फिर बहु बेटा आने वाले होते  तब उनके लिए कुछ ना कुछ नाश्ता बनाती। रात से खाने के लिए सब्जी काटती और हां दोपहर में अगर उन्हें मौका मिलता तो  राशन वाले को फोन करके राशन घर मंगा लेती। इतना काम था कि दिन, हफ्ते महीने ,साल कहा बीते जा रहे थे कुछ पता नहीं लेकिन लखनऊ आकर उनके जीवन में ठहराव आ गया है।



सुबह से ही दिन काटने की चिंता करने लगती है।  वह क्या करें ?लेकिन कहे भी तो किस से कहें कि उनका मन नहीं लग रहा । बड़ा बेटा नाराज हो जाएगा ,कहेगा तुम्हें सारी सुख सुविधाएं दे रहा हूं तब भी तुम्हारा मन नहीं लगता ।उसने बैंक में काफी पैसे भी डलवा दिए हैं ,कार्ड भी बनवा कर दे दिया है ,कहा है जहां मन हो ,जो मन हो खरीदो लेकिन वह क्या खरीदे और किसके लिए ?किसी को अब उनकी जरूरत नहीं है ,कई बार ऐसा लगता है उनके मन में बहुत से नकारात्मक विचार आने लगे है। उनकी शुगर हाई निकलने लगी ,बीपी भी कुछ बढ़ा हुआ है, डॉक्टर कहते हैं इन्हें व्यस्त रखें ,यह व्यस्त रहेंगी तभी तबीयत ठीक रहेगी।

मां की तबीयत का सुनकर छोटा बेटा मुंबई से भागा भागा आता है।भैया तुमने अपनी तरफ से बहुत ख्याल रखा , सच में उन्हें कोई काम करना नहीं पड़ता लेकिन काम के बिना मां स्वस्थ नहीं रह पाएगी। मेरे यहां की भागमभाग जिंदगी और इतने काम के बीच में उन्हें को सोचने समझने का समय ही नहीं मिलता था । यहां पर अक्सर पापा को याद करके रोने लगती हैं ।जिंदगी के खराब दिन भी याद कर लेती हैं लेकिन मुंबई में काम की व्यवस्था के बीच में वह कुछ भी याद नहीं कर पाती। मां का तुमसे जो बंधन है वह तो हमेशा यूं ही बना रहेगा लेकिन मां ने इतना सुख हमसे कभी नहीं मांगा था। मां को तो दूसरों को सुख देने में ही असली खुशी मिलती है ।जैसे वह हमारे पीछे दौड़ती थी अब  हमारे बच्चों के पीछे दौड़ती हैं और इसी सब कामों में उनका दिल भी लगा रहता है। 

धोबिन लगाने से ,खाना बनाने वाली लगाने से मां खुश नहीं है असली खुशी तो शायद एक व्यस्त दिनचर्या में मिलेगी।  इंसान मेहनत  करे तब रात को उसे नींद कब आ जाए पता ही ना चले। सोने के लिए नींद की गोलियां ना खानी पड़े। शरीर की थकान ही उसे गहरी नींद दे जाती हैं ।

थोड़े दिनों में मां फिर से स्वस्थ हो जाती हैं। वैसे ही काम करने लगती हैं। सब्जी वाले से फ्री की धनिया और मिर्च लेने में जो आनंद आता था वह कही नहीं आता। छोटी छोटी खुशियां ही  बड़ी खुशी दे जाती है ।दोनों बेटे का प्यार भी अपनी मां को हमेशा ऐसे ही बना रहे।

इति

#बंधन

गरिमा जैन

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