बेटी – शबनम सागर

ननद भाभी की खूब बनती थी।एक दूसरे से राय लेना, सबके साथ निभाना ,ऊंचा नीचा वक़्त आने पर एक दूसरे की सहायता करना,मनोबल बढ़ाना मन से जुड़ी थी दोनों।

एक बार ननद जब पीहर आई, तो दोनों ने खूब मस्ती की,बच्चे भी खुश थे बहुत।रोज कहीं आना जाना, खाना पीना सब बढ़िया रहा।

एक दिन ननद ने भाभी के नए टॉप्स देखे ,तो कहा मुझे भी ऐसे बनवा दो।अगले दिन दोनों बाज़ार गई, और उसी डिज़ाइन के टॉप्स बनाने का आर्डर दे आई।

घर आकर उसने भाभी को एक छोटा सा पाउच पैसों का देकर कहा,इसमें बीस हज़ार रुपये हैं,जो मैंने इकठ्ठे किये हैं।आप पेमेंट दे देना।

भाभी ने पाउच रख दिया संभाल के।

ननद की एक और आदत थी।वो छोटे छोटे पाउच में थोड़े थोड़े रुपये कई जगह डाल के रख देती थी।

अगले दिन भाभी ने पाउच खोला, तो उसमें दो हज़ार कम थे।अब वो ननद को कुछ कह नहीं सकती थी,क्योंकि वो उसे अपनी बेटी की तरहा मानती थी। उसे पता था कि ननद कई जगह ऐसे ही पैसे रखती है तो भूल हो गई होगी।उसने दो हज़ार रुपये उसमें और मिला दिए,और टॉप्स मंगवा लिए।ननद खुशी खुशी घर चली गई।

इधर कुछ दिनों बाद जब ननद को पैसों की जरूरत पड़ी,तो उसने अपनी सेविंग्स सारे पाउच इधर उधर से इकठ्ठा किये।

वो सब में से पैसे निकाल कर गईं रही थी।अचानक एक बड़े पाउच पर उसकी नज़र पड़ी,ये ठीक वैसा ही था,जो उसने भाभी को दिया था।उसे खोला तो दो हज़ार रुपये ,ओह ये क्या    

मैंने भाभी को  पूरे पैसे नहीं दिए।उसे अच्छी तरह याद था कि इन दो एक जैसे पाउच में उसने बीस हज़ार रुपये रखे थे।यानि उस पाउच में अठारह हज़ार रुपये थे,जो मैंने भाभी को दिया।उन्होंने कम पैसे होना बताया भी नहीं।बहुत मलाल था उसके दिल में

,उसे अंदाज़ा था कि उसमें कम रुपये थे बीस हज़ार से

उसने उसी क्षण भाभी को फोन मिलाया और पैसों के बारे में पूछा तो भाभी ने कहा पूरे थे।

अचानक तुझे क्या हुआ ,नहीं भाभी मैं जानती हूं कि आप मुझे अपनी गुड़िया की तरहा मानती हैं, इसलिए आपने कुछ नहीं बताया।

मानती नहीं तू तो सच में मेरी बड़ी गुड़िया है,और बात करते करते दोनों रो पड़ी।

जहाँ आपसी प्यार और रिश्तों में दिल से जुड़ाव हो,वहाँ रब बसता है ।

सबके रिश्ते ऐसे ही मधुर रहें।

मौलिक रचना

शबनम सागर

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