प्रारब्ध – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : पावँ लगे बाबू साहब,आप यहाँ?

         बाबू साहब संबोधन सुन उन्होंने निगाह उठा कर देखा तो सामने वाला व्यक्ति सिल्क का कुर्ता और सफेद झक धोती पहने सामने खड़ा था,कोई रईस लग रहा था।मस्तिष्क में प्रश्न कौंधा यह व्यक्ति उसे इस कदर सम्मान क्यो दे रहा है?वैसे भी अब वो गुजरा कल हो गये हैं।एक सामान्य से व्यक्ति को कोई पावँ लागे कोई क्यूँ कहेगा?हो सकता है किसी और को बोल रहा हो,पर उसने तो उनके घुटने पर ही जब हाथ लगा दिया तो अब भ्रम की स्थिति तो रही नहीं, फिर भी प्रश्नवाचक दृष्टि से उन्होंने सामने वाले को देखा तो वह बोला,बाबू साहब पहचाना नही,साहब जी मैं रामदीन,आपके यहाँ ही चाकरी की जीवन भर,आपका नमक ही तो खाया है बाबू साहब।

           किशन बाबू को विरासत में जमीदारी तो नही लेकिन कई एकड़ जमीन और जायदाद मिली थी।नौकर चाकर आलीशान कोठी  सब वैभव पूर्ण जीवन भोगा था किशन बाबू ने।एक ही पुत्र अन्नत था,स्वाभाविक रूप से यह सब उसको ही विरासत में मिलना था।किशन बाबू  खेती को मजदूरों द्वारा ही कराते थे।किशन बाबू में जमीदार जैसा अहंकार बिल्कुल भी नही था,वे अपने नौकरों चाकर से हमेशा ही सहृदयता से ही पेश आते,उनके दुख दर्द में हर सहायता के लिये तत्पर रहते।यही कारण था,सब उन्हें बाबू साहब ही आदर से कहते थे।

       किस्मत की बात अनन्त में अपने पिता किशन बाबू का कोई गुण नही था।बचपन से ही अनन्त में अहंकार छा गया था।उसको अपने पिता का अपने नौकरों चाकरो से दुख सुख पूछना भी नागवार गुजरता।किशन बाबू के समझाने पर भी अनन्त को अपने पिता से ही खीझ होने लगती।किशन बाबू ने यह सोचकर कि अनन्त जब काम संभालेगा तो शायद वो व्यवहारिक हो जाये,उसको सब काम मे सहभागिता देनी प्रारम्भ कर दी।

     उनके मजदूरों में ही रामदीन नाम का मजदूर भी था,खेती का काम तो करता ही था,साथ मे किशन बाबू के घर के काम मे भी हाथ बटाता।किशन बाबू भी उसकी स्वामिभक्ति से प्रसन्न रहते और उसकी पगार के अतिरिक्त भी उसकी सहायता करते रहते।रामदीन के भी एक ही बेटा था,रामदीन की हर बाप की तरह एक ही इच्छा थी कि उसका बेटा पढ़ लिखकर बड़ा अफसर बन जाये।यही कारण था कि रामदीन किशन बाबू के यहां बचे समय में घर का काम भी करता जिससे अतिरिक्त सहायता से वह बेटे की पढ़ाई में कोई व्यवधान न आये, ऐसा प्रयत्न करता।

      किशन बाबू बीमार रहने लगे तो समस्त काम के देखभाल की जिम्मेदारी अनन्त पर आ गयी।अनन्त को किसी का न लिहाज था और न इज्जत,उसका सिद्धांत सीधा सादा सा था जो काम जो कर रहा है, उसकी कीमत उसे मिल रही है,इसलिये बाकी औपचारिकताओ को अनन्त बेवकूफी ही मानता।जरा भी काम मे ढील हुई या उसके मनमाफ़िक नही हुआ तो गाली गलौज उसके लिये आम बात थी।सभी के लिये यह नया अनुभव था।किशन बाबू तो सबको अपना मान कर चलते थे। रामदीन के साथ भी अनन्त कई बार इसी तरह पेश आ चुका था, पर रामदीन किशन बाबू की देखभाल में लगे होने के कारण अनन्त की बातों को दिल पर नही लाया।

      समय गुजरा,रामदीन के बेटे ने प्रशासनिक परीक्षा पास कर ली और वह एक बड़े ओहदे पर नियुक्त हो गया।उसे अपने पिता रामदीन के त्याग और मेहनत के बारे में अहसास था,उधर अनन्त का व्यवहार खराब होता जा रहा था।एक दिन गांव वालों ने ही रामदीन के अपमान की बात उसके बेटे तक पंहुचा दी।उसी दिन उसका बेटा अपनी माँ व पिता को अपने पास लिवा लाया।

      बेटा प्रशासनिक अधिकारी होने के बावजूद अपने माता पिता को भरपूर सम्मान देता।अब रामदीन की तो रूह ही सुधर गयी थी,बेटे रुतबे के कारण रामदीन में भी अब मजदूरों वाले हावभाव समाप्त होते जा रहे थे।अब वेशभूषा में सिल्क का कुर्ता और सफेद धोती आ गयी थी।

     एक दिन रामदीन अपने बेटे से अनुमति ले अपने गांव में पुराने परिचितो से मिलने निकल पड़ा।स्टेशन पर एक बैंच पर उसे बाबू साहब बैठे दिखाई दे गये।मैले से कपड़े पहने खोये खोये से बाबू साहब को देख रामदीन हक्का बक्का रह गया।

         मिलने पर किशन बाबू बोले रामदीन किस्मतवाले हो जो तुम्हे लायक बेटा मिला,मुझे देखो रामदीन मैं बेटे से आंख बचाकर यहां आकर उसके द्वारा किये जाने वाले अपमान से बचने को बैठता हूँ।साथ ही सोचता हूँ कि जिस दिन गैरत जागेगी तो इसी रेल की पटड़ी पर दो हिस्सों में बट  जाऊंगा।

        अपने बाबू साहब की हालत देख रामदीन उनके लिये कुछ न कर पाने का मलाल लिये,गांव न जाकर,भीगी आंखों के साथ बाबू साहब के पैर छू कर वापस चल दिया।

     बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

    #किस्मत          

 

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