लंच बॉक्स – किरण केशरे  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : नीलू समीर के साथ गुजरात की यात्रा पर पिछले आठ दिनों से निकली थी पावागढ़, दीव, द्वारका से हुए जयपुर आए थे। 

दिनभर जयपुर की सैर कर जब थक गए, तब समीर ने कहा क्यों न अब अच्छे से रेस्टोरेंट में खाना खाया जाए। 

नीलू ने भी हामी भर दी , सच भूख तेज हो गई थी दिनभर घूमने में शॉपिंग में सुबह का नाश्ता खाना हजम हो गया था। नीलू क्यों सामने इस अजीब नाम *लंचबॉक्स* वाले  रेस्टोरेंट में चले! 

समीर ने नीलू से कहा, उसकी उत्सुकता भी बढ़ गई थी न जाने क्यों नीलू का मन रेस्टोरेंट की ओर खीचा जा रहा था ; दोनों उस शाकाहारी रेस्टोरेंट में जा पहुंचे। रेस्टोरेंट छोटा था लेकिन साफ सुथरा था बैठक व्यवस्था भी आरामदेह थी; हल्का संगीत वातावरण को खुशनुमा बना रहा था। चार पांच लड़के एक जैसी वर्दी में थे,जो अन्य टेबलों पर सफाई के साथ खाना सर्व कर रहे थे और ऑर्डर ले रहे थे! 

समीर और नीलू भी कॉर्नर वाली टेबल पर जा बैठे ,एक लड़के ने मेनू कार्ड नीलू को थमा दिया था। 

नीलू कार्ड में अपनी पसन्द का खाना देखकर खुश हो गई थी, रेस्टोरेंट में खाने की खुशबु सब तरफ बिखरी हुई थी..नीलू ने खाने का ऑर्डर दिया, स्वीट डिश में पूरन पोली,और बूंदी के देसी घी के लड्डू थे जो नीलू की पहली पसंद थे । नीलू को न जाने क्यों कुछ याद आ रहा था… कुछ अपनापन सा खाने में लग रहा था; खाने के बाद प्लेटें हटने पर समीर ने वेटर से बिल लाने को कहा थोड़ी देर बाद वह लड़का नीलू के पास आया और बोला आपको हमारी मेडम सामने केबिन में बुला रही हैं! दोनों बड़ी उलझन में थे की बिल पेमेंट कर वापस हॉटल जाना है पर कौन अनजान है जो नीलू से ही मिलना चाहती है  ? 

समीर ने आँखों से नीलू को जाने का इशारा किया, हरे बांस के जालीदार केबिन में हल्की रोशनी जिसमे सुंदर नेट के पर्दे लगे हुए थे नीलू उस लड़के के साथ केबिन की और चल दी केबिन में प्रवेश करते ही उसे अपने मनपसंद परफ्युम का झोंका आया ! पीठ किये कोई महिला साड़ी में खड़ी थी जो पीछे से भी आकर्षक लग रही थी ढीला सा जुड़ा और उसमें मछली वाली हेयर पिन  ! नीलू का दिल धड़क रहा था ये सब तो मेरी ही पसंद थी ! रेस्टोरेंट में आई तभी से उसे क्यों लग रहा था की कुछ तो है जो अपना सा लग रहा है इस जगह पर ! पर क्या ? कौन है ये अनजान औरत  ? 

हेलो ! नीलू के मुहँ से शब्द फिसले…सुनते ही उस महिला का चेहरा जैसे ही नीलू के सामने हुआ वह लगभग खुशी से चीख ही पड़ी आशा तु… 

हाँ मैं ! वह हँस रही थी ,Omg कहते हुए नीलू खुशी से उछल  ही तो पड़ी थी ; समीर भी तब तक केबिन में आ गए थे देखा दोनों एक दूसरे से ऐसे लिपटी हुई थी जैसे कोई बरसों बाद बिछुड़ा हुआ मिला हो;

दोनों हँस भी रही थी और आँखों से आँसू भी बह रहे थे, 

समीर को कुछ समझ नही आ रहा था की क्या हो रहा है, कौन है ये जो नीलू को इतना प्यार से मिल रही है और नीलू भी भावुक हो गई उससे मिलकर! 

वह तो नीलू के सभी रिश्तेदारों को पहचानता है पर ये कौन होगी  ? कुछ समझ नही पा रहा था। तभी आशा ने समीर को वेलकम जीजू कहा तो वह थोड़ा झिझक गया था!

 नीलू ने आशा का परिचय से कराते हुए कहा, ये मेरी बचपन की सबसे प्यारी सखी आशा है,, 

अच्छा इसी सहेली की बातें तुम ज्यादा करती थी!है ना समीर ने मुस्कुरा कर कहा, 

हाँ, नीलू चहकते हुए बोली थी। 

लेकिन आशा ! ये रेस्टोरेंट और तु… और ये ऐसा नाम…कुछ समझ नही आ रहा ! नीलू की हैरानी बढ़ती जा रही थी। 

आशा ने सहजता से गंभीर होकर उसे अपने पास बैठा लिया । 

नीलू का हाथ अपने हाथों में लेकर बड़ी भावुक होकर बोली थी आशा, ये नाम हमेशा मेरे दिल दिमाग में बस गया था; नीलू तुझे याद है जब हम प्राथमिक शाला में थे, तुम दो भाई बहन ही थे और हम पाँच भाई बहन पिताजी की आय में घर चल जाता था पर हम सबके अलग अलग शौक पूरे नही हो पाते थे,स्कूल में मैं अक्सर रात की बची रोटी में चटनी लपेट कर लाती थी तो कभी अचार !

और तुझे आंटी हमेशा लंच बॉक्स में घी के पुड़ि  पराठे, अलग अलग सब्जियाँ,थेपले, पोहा, उपमा और स्वादिष्ट नाश्ते देती थी,जब में शर्म के मारे सभी सहेलियों से अलग अकेली टिफिन खाती थी तब तु ही मेरे पास आकर बैठ जाती थी,और मेरे लाख मना करने पर भी अपना लंच बॉक्स मुझे देकर खुद चटनी रोटी, अचार ये कह कर खा जाती थी की मुझे तेरा खाना बहुत स्वादिष्ट लगता है; पढ़ाई खत्म होने पर मैं नौकरी के लिए भटकने लगी,जब कुछ हल नही निकला तो घर से ही माँ की मदद से टिफ़िन सेंटर शुरू किया,

धीरे-धीरे किस्मत ने हमारा साथ दिया,हमारी घरेलू टिफ़िन सेवा चल पड़ी, हमारा सादा स्वादिष्ट खाना सबकी पहली पसंद बन गया,जब घर के हालात अच्छे हुए तब पिताजी ने मेरा विवाह जयपुर के ही अमितेष के साथ कर दिया ; अमितेष को काम के सिलसिले में अक्सर बाहर जाना पड़ता था, और मैं भी घर में खाली नही बैठना चाहती थी, मैने अमित से अपनी  ईच्छा बताई, जिसे उन्होंने ने बड़ी खुशी से मान लिया; बस फिर क्या था हमने हमारी रोड साइड पर अपने गैराज को रेस्टोरेंट की शकल में बदल दिया..मेरा पुराना अनुभव भी काम आ रहा था चार लोगों के छोटे से स्टाफ् से शुरुआत की थी, आज दस लोगों का स्टाफ है, और मेन्यू तो मेरे मन में बचपन से बसा हुआ था,आशा हँसते हुए बोली…

नीलू अपनी प्यारी सखी आशा को बड़े प्यार से देखे जा रही थी जिसने बचपन की मासूम दोस्ती को संजो कर रखा था और नीलू सोच रही थी की वह कितनी किस्मतवाली है जिसे आशा जैसी सहेली मिली।

किरण केशरे

    #किस्मत          

 

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