पिछले जनम का नाता –  विभा गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

” आरती…तुझसे कितनी बार कहा है कि मेरे कमरे न आया करो…जब देखो..लंगड़ाती हुई चली आती है..।” आकाश ज़ोर-से चीखा तो आरती सहम गई। “भ..ई..या…वो…मैं..” वो हकलाने लगी, तभी बेटे की आवाज़ सुनकर सुनंदा बेटे के कमरे में आई।

    ” क्या बात है आकाश…तू आरती पर क्यों चिल्ला रहा है?”

    ” माँ…मैंने इससे कितनी बार कहा है कि मेरी चीज़ों को हाथ न लगाया करो..फिर भी अपनी मनहूस शक्ल लेकर चली आती है…लंगड़ी कहीं की…।” कहते हुए आकाश ने आरती पर एक हिकारत भरी दृष्टि डाली।

        सुनंदा बोली,” ये तू आरती को हर वक्त लंगड़ी-लंगड़ी क्यों कहता रहता है।वक्त की मार तो बेटा किसी पर भी पड़ सकती है।जाने कब ज़िंदगी में कौन सा मोड़ आ जाये, ये कोई नहीं जानता।ऐसे किसी को अपमानित करना तो…।”

   ” बस माँ …बहुत सुन चुका आपका लेक्चर…।” कहते हुए आकाश अपनी किताबें लेकर काॅलेज़ चला गया।

          विवाह के सात बरस के बाद जब डाॅक्टर साहिबा ने सुनंदा को बताया कि वह गर्भवती है तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।उसके पति अनिरुद्ध ने तो बच्चे के जन्म से पहले ही रंग-बिरंगे खिलौनों से घर भर दिया था।एक दिन डाॅक्टर ने उसे बताया कि आपकी प्रेग्नेंसी में कुछ काॅम्प्लीकेशन्स है,फुल रेस्ट करना पड़ेगा।वह सोचने लगी कि माँ तो अब रही नहीं और सास की उम्र हो चली थी…अब उसकी देखभाल कौन करेगा, तब आरती की माँ मालती जो पति के गुज़र जाने के बाद अपनी दो बरस की बेटी को लेकर मायके में भाई-भाभी के साथ रह रही थी, को सुनंदा की सास ने बहू की परेशानी बताई तो वह तुरंत बोली,” काहे परेशान होवत हो चाची…अनिरुद्ध भैया भी तो अपने ही हैं ना…,अपनी बच्ची को भाभी की गोद में डालकर वह सुनंदा की देखभाल करने लगी थी।समय पर सुनंदा को खाना खिलाना,दवा देना और उसके बालों को संवारना…सब ऐसे करती थी जैसे कोई ननद अपनी भाभी की करती है।

         आकाश के जनम के बाद भी वह जच्चा-बच्चा की मालिश करना कभी नहीं भूलती थी।जब जाने लगी तो आकाश को बहुत प्यार की और सुनंदा के गले लगकर रोती हुई बोली,” भाभी…कोई भूल-चूक हो गई हो तो छोटी समझकर माफ़ कर दियो..।” तब तो सुनंदा भी अपने आँसू नहीं रोक पाई थी।तब अनिरुद्ध ने मालती से कहा था,” बेटी का नाम स्कूल में लिखा देना..उसकी पढ़ाई की ज़िम्मेदारी मेरी..।”

         आरती स्कूल जाने लगी थी, पढ़ाई के साथ-साथ वह खेलकूद में भी होशियार थी।एक दिन स्कूल से आते समय रास्ते में पड़े खुले बिजली के तार में उसका दाहिना पैर उलझ गया और उस नन्हीं-सी आरती को बिजली का ऐसा झटका लगा कि जान तो बच गई लेकिन दाहिने पैर से वह अपाहिज हो गई।सातवीं कक्षा की परीक्षा देने के बाद उसने आठवीं में नाम लिखाया।

      एक दिन स्कूल से वापिस आई तो घर में भीड़ देखी।अंदर जाकर देखा तो मालती बिस्तर पर चिरनिद्रा में पड़ी हुई थी।मामा-मामी का सहारा तो पहले ही छिन चुका था और अब माँ भी…।खबर मिलते ही अनिरुद्ध आये और आरती को अपने साथ ले आये।

       सुनंदा ने स्कूल में आरती का नाम लिखाना चाहा तो उसने मना कर दिया और घर के कामों में खुद को व्यस्त कर लिया।छोटा आकाश भी उसे दीदी-दीदी कहकर उसके साथ खेलता रहता।

       आकाश जब बड़ा हुआ तो न जाने कैसे उसके मन में अमीर-गरीब का भेदभाव उत्पन्न हो गया और तभी से उसे आरती से चिढ़ होने लगी थी।सुनंदा ने कई बार आरती को समझाया कि बेटी… आकाश का ख्याल रखना छोड़ दे, तब वो कहती,” मामी…छोटे भाई की बात का क्या बुरा मानना…।” और आज भी उसने आकाश के गुस्से को नज़रअंदाज़ कर दिया।

        सुनंदा और अनिरुद्ध को एक शादी में मेरठ जाना था।उनके जाने के एक दिन बाद आकाश भी तीन दिनों के लिये काॅलेज़ ट्रिप पर चला गया।

        घर के कामों से फ़्री होकर आरती एक किताब लेकर पढ़ने बैठी ही थी कि टेलीफ़ोन की घंटी बजी।उसके हैलो कहते उधर-से आवाज़ आई,” आकाश का एक्सीडेंट हो गया है और वह सिटी हाॅस्पीटल में एडमिट है।” सुनते ही वह तुरन्त ऑटो लेकर हाॅस्पीटल पहुँची।खून से लथपथ आकाश को देखकर उसका कलेजा मुँह को आ गया।आकाश के दोस्त ने बताया कि हम सभी एक जगह बैठे हुए थे, ये कब अपना स्केटिंग शू पहनकर निकल गया, हमें पता ही नहीं चला।इसकी चीख सुनी तो देखा कि एक ट्रक उसे कुचल कर चला गया था।आरती ने मामा को फ़ोन कर दिया और आकाश के पास बैठी रही।

       होश आने पर मम्मी-पापा को देखकर आकाश ने उठने की कोशिश की लेकिन वह नाकाम रहा।नर्स ने बताया कि टायर के भार से उसके बाँयें पैर का नस दब गया है,जिसके कारण उतना हिस्सा सुन्न हो गया है। रिकवर होने में दो-तीन महीने लग जाएँगे।

        आकाश के लिये यह सदमा असहनीय था।उस वक्त आरती ने उसे बहुत ढ़ाढस बँधाया।घर आने पर भी आरती सुनंदा से कहती,” मामी…आप आराम कीजिये..आकाश के पैरों की मालिश मैं कर देती हूँ।” तब बिस्तर पर लेटे-लेटे आकाश को एहसास हुआ कि उसने आरती के अपाहिज होने का कितना मज़ाक उड़ाया था और आज वह खुद ही…।

         एक दिन आकाश को दवा खिलाकर आरती जाने लगी तो आकाश ने उसका हाथ पकड़ लिया, ” दीदी…मैं आपको दुखी करता था…इसीलिये भगवान ने मुझे…।” 

   “छि:ऐसा नहीं कहते…. ,कुछ ही दिनों में तो मेरा भाई दौड़ने लगेगा…।” वह मुस्कराई, फिर कमरे में जाकर फूट-फूटकर रोने लगी।आँसुओं में उसका सारा दर्द बह  गया।अपनत्व और स्नेह-स्पर्श से उसका तन-मन खिल उठा था।फिर तो वो आकाश को तरह-तरह की बातें सुनाकर उसका मन बहलाती और खूब हँसाती।उसके निस्वार्थ सेवा से आकाश जल्दी ही ठीक हो गया और फिर से अपने पैरों पर चलने लगा।

       रक्षाबंधन के दिन आरती को आकाश की कलाई पर राखी बाँधते देख सुनंदा अपने पति से बोली,” सच है जी, कब ज़िंदगी में कौन सा मोड़ आ जाए, ये कोई नहीं जानता।ये मोड़ इतना सुखद होगा…ऐसा तो सोचा भी नहीं था।आकाश के एक्सीडेंट ने उसकी आँखें खोल दी…कल तक वह आरती को देखना नहीं चाहता था और आज उसे दीदी-दीदी कहते नहीं थकता।ऐसा लगता है कि जैसे इनका पिछले जनम का नाता हो।ईश्वर इन्हें बुरी नज़र से बचाये।” कहकर वह थू-थू करने लगी तो अनिरुद्ध भी हँसने लगे।

                               विभा गुप्ता 

                                 स्वरचित 

# जाने कब ज़िंदगी में कौन सा मोड़ आ जाए ये कोई नहीं जानता “

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