फरिश्ता – कमलेश राणा

बात 1947 की है,,हमारे दादाजी सेंट्रल बैंक में जॉब करते थे,,

उस समय उनकी पोस्टिंग पंजाब के लायलपुर में थी,,यह स्थान बंटवारे के बाद वर्तमान समय में  पाकिस्तान का हिस्सा है,,

हमारी दादीजी गोरी चिट्टी बहुत खूबसूरत महिला थीं,,,वह अक्सर वहाँ के मजेदार किस्से सुनाया करतीं थीं,,

वहां वह कंपनी बाग में घूमने जातीं थीं,,इसमें सिर्फ़ महिलाओं को ही प्रवेश की अनुमति थी,,गेट पर गार्ड तैनात रहता था,,सारी महिलाएं उन्मुक्त हो कर झूले का आनंद लेतीं थीं,,

दादीजी प्रसव के दौरान गाँव आ जातीं थीं और कुछ महीने बाद छोटे बच्चे को लेकर दादाजी के साथ चली जातीं थीं,,

बाकी बच्चों को उनकी सास यानि बच्चों की दादी रख लेतीं थीं,,

ऐसे ही समय जून 1947 में दादाजी उन्हें गाँव छोड़ गये,,तब मेरे छोटे चाचा जी का जन्म हुआ था,,

तभी 15 अगस्त 1947 को बंटवारे की घोषणा हो गई,,भयंकर अफरा-तफरी और मारकाट मच गई,,

हिन्दुओं को जबर्दस्ती हिन्दुस्तान और  मुसलमानों को पाकिस्तान भेजा जा रहा था,,ऐसे कैसे कोई अपने जीवन भर की संचित पूंजी को छोड़ कर जा सकता है,,

जितना नगद और सोना लोग ले जा सकते थे,,ले जा रहे थे,,पर अराजक तत्व उस संकट की घड़ी में भी संवेदनहीन हो कर लूटपाट कर रहे थे,,जो लोग आसानी से घर नहीं छोड़ रहे थे,,उनकी हत्या कर दी जाती,,

ये समाचार गाँव तक भी पहुँच रहे थे,,दादाजी की माँ रोज सुबह शहर से गाँव आने वाले रास्ते पर जा कर बैठ जाती इन्तज़ार में और रात को रोती हुई घर लौटतीं,,

बहुत कष्ट में था सारा परिवार,,

उधर ,,दादाजी बताते थे,,चारों तरफ पुलिस ही पुलिस नज़र आती,,रात को ब्लैक आउट हो जाता,,सायरन बजते ही लोग लाईटें बंद कर देते,,खिड़कियों के शीशे काले रंग दिये गये थे,,

महिलाएं लाल मिर्च पाउडर रखतीं थीं ताकि कठिन वक़्त में उसका प्रयोग कर अपनी आबरू बचा सकें,,


बाहर निकलना मना था,,राशन खत्म हो रहा था,,प्राणों के लाले पड़ रहे थे,,करें तो क्या करें,,कुछ समझ में नहीं आ रहा था ,,

उन्होंने एक पुलिस वाले से बात की,,भाई मेरी सारी संचित पूंजी ले लो,,किसी भी तरह से मुझे मेरे घर पहुँचा दो,,

वह भला इंसान था,,उसने कहा,,देखता हूँ,,मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ,,

अगले दिन वह आया और साथ चलने को कहा,,

जैसे ही बाहर निकले,,एक 14 साल का लड़का हाथ में चाकू लहराता हुआ निकला,,जो भी सामने आता,,उसी को काटता जा रहा था,,

पुलिस वाले ने उस लड़के को पकड़ा और दादाजी ने पीतल के बैंटे का खटकेदार चाकू छीन लिया,,और अपनी रक्षा के लिए उसे साथ रख लिया,,

उस फ़रिश्ते ने अपना वादा निभाया और दादाजी को हवाईजहाज में बैठाकर ही वापस गया,,

घर में तो सब उनके आने की उम्मीद छोड़ चुके थे,,जिस दिन वो घर पहुंचे,,केवल घर में ही नहीं,,पूरे गाँव में जश्न का माहौल था,,

जाने कितने दिन बाद सबने साथ मिल कर भरपेट खाना खाया था,,

वह चाकू हमारे घर में आज भी है,,अब उसका प्रयोग शादी ब्याह में काशीफल काटने के लिये होता है,,

उस फ़रिश्ते के लिए धन्यवाद शब्द बहुत ही छोटा है,,यदि उस वक्त वह मदद न करता तो परिवार का क्या होता,,

छोटे-छोटे बच्चे,,बूढ़ी माँ,,सोच कर ही दिल दहल जाता है,,

तभी तो कहते हैं न कि ईश्वर स्वयं सब जगह नहीं जा सकते पर अपने प्रतिनिधि को भेज कर मदद अवश्य करते हैं ,,

शत-शत नमन उस महान आत्मा को   

#दिल_का_रिश्ता

कमलेश राणा

ग्वालियर

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