पत्नी और बेटी – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : तुम जब देखो मायके ही जाती रहती हो तुम्हारा भी घर है पति है बच्चे हैं मम्मी पापा है उनका ख्याल है कि नहीं तुम्हें नीरज जोर से संध्या से बोला संध्या बोली हां मैं सब जानती हूं सब है मेरे पास लेकिन मैं एक पत्नी  मां और बहू के अलावा एक बेटी भी हूं ।

मैं अपनी जिम्मेदारियों से कब भाग रही हूं नीरज लेकिन मेरी मां को मेरी जरूरत है ।वो मैं कुछ नहीं जानता लेकिन ये तुम्हारा रोज़ रोज़ का मां के पास जाना मुझे पसंद नहीं है। इसमें पसंद नापसन्द की कोई बात नहीं है यह तो मेरी एक जिम्मेदारी है जो मेरे भाई नहीं उठा रहे हैं इसलिए मुझे अपने बेटी होने का फर्ज निभाना पड रहा है मां को अकेली ऐसे तो नहीं छोड सकती हूं न ।

                संध्या दो बहन और तीन भाई थी सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा था । धीरे धीरे सब भाई बहिन की शादी हो गई संध्या सब भाई बहनों में सबसे बड़ी थी । सभी भाइयों की शादी हो जाने पर घर छोटा पड़ने लगा तो संध्या के पिता ने निर्णय लिया कि आगे और परिवार बढ़ेगा तो दिक्कत और बढ़ेगी इसलिए तुम लोग अपना अपना घर अलग से देखो सबसे छोटा भाई यही रहेगा हम लोगों के साथ हम लोग तुम लोगों के पास आते जाते रहेंगे ।
संध्या के पिता रिटायर हुए तो सारा पैसा तीनों बेटों में बांट दिया कि अलग घर खरीदो थोड़ा मैं दे देता हूं और थोड़ा अपने पास से लगा लो और जो कम पड़े तो लोन ले लेना। फिर वही हुआ सबने अपना घर अलग बनवा लिया और घर से अलग जब रहने लगे तो मां बाप की जिम्मेदारी से भी मुंह मोड़ लिया ।
बड़े दो भाइयों ने मकान लिया तो छोटे ने भी खरीद लिया और पापा से बोला पापा जब नया घर खरीदा है तो उसमें रहने में भी अच्छा लगेगा फिर आप लोगों का क्या कभी हमारे पास तो कभी भाइयों के पास तो कभी अपने घर पर रहते रहिएगा । संध्या के पापा ने बोला ठीक है । लेकिन सब अपने अपने घर जाकर मम्मी पापा की तरफ से बेफिक्र हो गए । पापा को पेंशन मिलती थी फिर इस उम्र में कोई खास जरूरत रहती नहीं है हां हारीं बिमारी पर थोड़ा खर्च होता है ।
संध्या और तीनो भाइयों की शादी लोकल ही थी छोटी बहन शहर से बाहर थी । इसी बीच एक दिन सुबह-सुबह पापा को हार्ट अटैक आया और वो भगवान को प्यारे हो गए ।अब मां अकेली रह गई अब मां ने सोचा अकेली यहां पर क्या करुंगी बच्चों के पास ही रह लेती हूं लेकिन तीनों भाइयों में से मां को अपने पास ले जाने को कोई राजी ही नहीं होता था ।
जब मां कहती मैं यहां अकेली रहती हूं तो भाई कहते तुम वहां जिंदगी भर से रहती आई हो तुम्हें वहीं अच्छा लगेगा यहां तुम्हारा मन नहीं लगेगा वहीं रहो हम लोग आते-जाते रहेंगे ।
ऐसे ही सिलसिला चलता रहा । संध्या की मां अकेली पड़ी रहती थी धीरे-धीरे सबका आना जाना कम हो गया।चार पांच दिन में कभी थोड़ी देर को कोई बेटा आ जाता था लेकिन मां को ले जाने की कोई बात नहीं करता था । कभी-कभी फोन पर बात कर लेते थे धीरे-धीरे सिलसिला काफी कम हो गया।
                    फिर अचानक एक दिन संध्या के मां के पास काम करने वाली का फोन आया कि बिटिया अम्मा जी की दिनों से बीमार डली है कोई बेटा देखने नहीं आया तुम आ जाओ संध्या आनन-फानन में मां के पास पहुंच गई । डाक्टर बुलाया  नास्ता पानी कराकर फिर दवा दी ।जब मां थोड़ी ठीक हुई तो संध्या ने पूछा मां इतने दिन से बीमार डली हो बताया क्यों नहीं भाई को क्यों नहीं बुलाया ।मां बोली बुलाया था बेटा पर कोई नहीं आया ।
एक बेटा शहर से बाहर घूमने गया है , दूसरे ने कहा दिया कि अभी समय नहीं है और तीसरा अपने बच्चे की बर्थडे मना रहा है । संध्या को बहुत गुस्सा आया उसने गुस्से में भाइयों को फोन करके भला बुरा कहा । लेकिन भाइयों ने टका सा जवाब दे दिया हम लोग ही क्यों देखें मां को तुम्हारी भी तो जिम्मेदारी है तुम भी तो उनकी बेटी हो पैसे की हकदार तो तुम भी थी ।
संध्या भाइयों की बात सुनकर हतप्रभ रह गई । कैसे हो गए हैं भाई मां को अकेला छोड़ कर निश्चित हो गए हैं । जहां तक पैसे की हिस्सेदारी है तो कोई जायदाद में हिस्सा नहीं लिया था संध्या ने संध्या के बेटे की इंजीनियरिंग की पढ़ाई में एडमिशन फीस दे दी थी पापा ने उसी का ताना दे रहे हैं भाई ।और जब संध्या मां की देखभाल करने लगी तो भाइयों ने मां की तरफ से बिल्कुल ही मुंह मोड़ लिया । तीनों भाई आपस में यही कहते रहते कि तुम जाओ या तुम जाओ ।
संध्या से मां की हालत देखी नहीं जा रही थी इसलिए क़रीब क़रीब रोज ही दो घंटे को आकर मां से मिल जाती थी ।घर की व्यवस्था देख जाती थी दवा वगैरह का इंतजाम कर जाती । इसी बात पर आज नीरज संध्या से गुस्सा हो रहा था । संध्या ने बोल दिया देखो नीरज मैं एक बहू और पत्नी के आलावा एक बेटी भी हूं , मां को मेरी जरूरत है ।
भाइयों ने मुंह मोड़ लिया है तो मां को ऐसे अकेले तो नहीं छोड़ सकती न फिर मैं अपनी जिम्मेदारियों से तो भाग नहीं रही मै यहां पर सांस ससुर का तुम्हारा और बच्चों का कर के जाती हूं क्या दो घंटे को मैं अपनी मां के पास नहीं जा सकती । अगर तुम्हारी मम्मी के साथ ऐसा होता तो क्या करते तुम।
संध्या की सांस बाहर बैठी सब सुन रही थी उठकर कमरे में आई और बोली तुम ठीक कर रही हो बहू यहां तो सब लोग हैं वहां तुम्हारी मम्मी अकेली है ।नीरज तुम बेकार में नाराज़ हो रहे हो बहू को जाने दो ।ये तो कितनी अच्छी बात है कि संध्या बहू और बेटी दोनों का फर्ज अच्छे से निभा रही हैं ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश

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