पति पत्नी और लॉकडाउन..! – विनोद सिन्हा “सुदामा”

#वैरी_पिया बड़ा बेदर्दी…….

माँ के घर जैसे ही पहुँची हॉल में लगे टीवी पर ऐश्वर्या पर फिल्माया गाना चल रहा था..

हालांकि काफी खूबसूरत गाना है पर जानें क्यूँ सुनकर मन में कोफ्त से भर उठा  था..उस रोज

माँ टीवी देख रही थी…

मैंने झुककर प्रणाम किया…

पैरों पर मेरे हाँथों की छुअन महसूस हुई तो मुझे देख़ आश्चर्य ए्वं खुशी से मेरा माथा चूमने लगी..मुझे गले लगा लिया.!

काफी दिनों बाद आयी थी मैं माँ के पास ..मुझसे ध्यान टूटा तो माँ दरवाजे की तरफ देखने लगी…शायद राजेश और बच्चों को ताक रही थी…

अकेली आयी हो..राजेश और.बच्चें..???

हाँ…माँ मैं अकेली आयी हूँ….

पर इस लॉकडाऊन में कैसे आयी…परसो तो तुमसे बात हुई थी..आने को कुछ कहा नहीं. तुमने..

और यह बैग…????

सब ठीक तो है…..

सब ठीक है माँ…

मन नहीं लग रहा था त़ो सोचा तुम्हारे पास आ जाऊँ…..कुछ दिन यहीं रहूँगी…


अच्छा किया…पर बच्चें…और राजेश…

नहीं आए बोले तुम जाओ मैं पीछे से आ जाऊँगा…

राजेश ने ही गाड़ी से भेज दी्…थी

उनके दोस्त को कहकर…टूर एंड ट्रेवल्स चलता था उनका….

माँ से झूठ कह दिया…कैसे कहती कि झगड़कर आयी हूँ…ऊब सी गयी थी..वहाँ….

अच्छा बैठ मैं चाय बनाती हूँ…..

नहीं रहने दो माँ..मन नहीं… मैं नहीं चाहती थी कि माँ को तकलीफ हो…

लगा तो मैं खुद बना लूँगी…

अच्छा बेचारे गोपाल को तो कुछ खा पी लेने दे…बेचारा थक गया होगा..

नहीं माँ जी….बस पानी पी लूंगा…गोपाल बोल उठा.. रोहन भैया आ जाएं तो मिलकर चला जाऊँगा…

गोपाल को माँ के घर सभी जानते थे….अक्सर आती जाती थी..उसके साथ…पहले राजेश के ही आफिस में गाडियाँ चलाता था…फिर उसने यह काम पकड़ लिया…सदस्य सा हो गया था इसलिए कहीं आना जाना होता तो राजेश गोपाल को ही कहते…

माँ ने मुझसे कहा…

अच्छा जा कमरे में जाकर हाथ मुह धो ले..तब तक रोहन और बहू भी आ जाऐंगे….पास ही…घर के कुछ सामान लाने गए हैं…शाम को यहाँ लॉकडाऊन लगी रहती है…न..सारी दुकानें बंद रहती हैं..इसलिए.. अभी ही चले गए दोनों..

लॉकडाऊन…..कहा सुनकर ही मन ही मन कुढने लगी…इसी लॉकडाऊन ने तो सब बिगाड़ा है…

बात दो साल पहले की है..पूरा देश अनचाही महामारी और देश में लगे लॉकडाऊन से जूझ रहा था…और मैं इस बीच आई परेशानियों से….शुरू शुरू में तो लॉकडाऊन का लगना और सभी का घर पर रहना सुखद लग रहा था परंतु जैसे जैसै लॉकडाऊन की अवधि बढती गई… मेरी खीज भी  बढती गई…इतनी की चिडचिडापन सा घर करता गया मुझमें..पति राजेश से भी झगड़ने लगी….बच्चों को भी डाँटती….और इन सबसे खीज आकर माँ के घर आ गई..

लॉकडाऊन में हल्की छूट मिली थी…राजेश को कहा मुझे माँ के घर जाना है…पहले तो उन्होंने समझाया… मैं नहीं मानी…हारकर ड्राइवर से मुझे छोड़ आने को कह दिया….मैंने बैग तैयार कर ली और अगली ही सुबह माँ के घर आ गई..

परंतु पति पत्नी का रिश्ता भी बड़ा अजीब होता है..सामने रहो तो रोज की झिकझिक… और न रहो तो एक दूसरे के लिए टेटूआँ बहाने लगते हैं..

बात ही कुछ ऐसी थी….

हुआ यूँ कि मैं कमरे में आकर हाथ मुह धो जैसे ही कपड़े बदलने के लिए बैग खोला…ऊपर एक लिफाफा नज़र आया…आश्चर्यचकित खोलकर देखा तो एक कागज का पन्ना निकला ….राजेश का लिखा पत्र था…मेरे लिए..

मैं जैसे जैसे पत्र पढती गयी वैसे वैसे मेरी आँखें नम होती गई,राजेश के लिखे एक एक शब्द मुझे हथौड़े की तरह लग रहे थे…और मैं आत्मग्लानि से डूबती…जा रही थी..

.प्यारी रजनी…


अच्छा ही किया जो चली गई थोड़ा मन भी बहल जाएगा तुम्हारा तुम्हारी माँ के पास…बहुत दिन भी हुए…मेरा प्रणाम देना उन्हें..

मेरे हर कठिन सफर की साथी..मेरी अर्धांगिनी…..मैं गर सामने कुछ कहता तो शायद तुम दुखी होती..इसलिए पत्र का सहारा ले रहा हूँ….तुम तो मेरी हिम्मत रही हो…फिर कैसे हार गयी तुम…

कितनी आसानी से…कह दिया तुमने आजिज़ आ गयी हूँ मैं….परेशान कर रखा है तुम्हारी और बच्च़ों की हर रोज़ की 

नयी फरमाईशो ने…तंग आ गयी हूँ रोज़ की झंझट से..! 

खुद पक गयी हूँ…नाना प्रकार के पकवान बनाते और 

खिलाते खिलाते तुम सबको…सुनो थक गयी हूँ मैं..अब मुझसे नहीं होगा…कोई बाई रख लो या कोई दूसरी ले आओ..मुझसे नहीं होता ये सब..

मैं कुछ कहता नहीं इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हें और तुम्हारी परेशानियों को नहीं समझता…

जानता हूँ और समझता भी हूँ परेशान हो तुम..गुज़र रहे वर्तमान समय को लेकर,परेशान हो तुम.. मुझे लेकर,

मेरे घर बेकाम बैठ जाने को लेकर ..तुम परेशान हो बच्च़ों को लेकर…तुम परेशान हो इस बंद(लॉकडाउन) में स्वयं पर हद से ज्यादा बढ़े काम के बोझ को लेकर..सच कहूँ तो लाजमी भी है तुम्हारा परेशान होना..

पर जरा सोचो…जिन्हें आज़ तुम परेशानियाँ कह रही हो…

और जिनसे तंग होने की बातें कर रही हो..मेरे लिए मेरे कर्म,मेरे दायित्व..मेरे फर्ज रहें शुरू से..जिनका चुपचाप निर्वहन करता आ रहा था अबतक..बिना कुछ कहे बिना किसी परेशानी के..

सच कहूँ तो कभी तंग हुआ ही नहीं मैं इन सबसे..हमेशा इक आनंद और चरम सुख की प्राप्ति हुई मुझे इन सबसे,कभी लगा ही नहीं इससे पहले कि तुम्हारी किसी जरूरतों को 

पूरा नहीं कर सकूंगा मैं…बच्चों के कोई ख्वाहिश अधूरे रहने दूंगा मैं..सच पूछो तो अब भी नहीं लग रहा…ना ही वर्तमान परिस्थितियों को लेकर हताश हुआ हूँ मैं अब तक..पुरूष हूँ न हार मानने की प्रवृत्ति रही ही नहीं कभी मुझमें,माना समय अनुकूल नहीं,परिस्थितियाँ भी समान नहीं जबकि पहले से ज्यादा विकट और भयावह हैं..लेकिन मेरे ख्वाहिशात अब भी बाकी है मुझमें..मेरा पुरूषार्थ…बार बार कहता है मुझसे ,मुझे मुझमें हिम्मत बनाए रखने को…मेरा अंतर्मन रह रहकर हर सच का बोध कराता रहता है मुझे…वक़्त जैसा भी हो मुझे अपनी जिम्मेदारियों का वहन स्वयं ही करना है…कोई साथ नहीं मेरे…तुम्हारे सिवाए..

तुम जानती भी हो किया भी है और आगे भी करूंगा…

हालांकि तुमने भी कभी इससे पहले इतना गुस्सा इतना चिड़चिड़ापन नहीं दिखलाया..हो सकता है तनावपूर्ण 

स्थितियों को लेकर कुछ तब्दीलियां आ गयी हो तुममें शायद..

वरना तुम्हारे अंतर्निहित स्नेह और प्रेम से न तो मैं अंजान हूँ 

और न ही वंचित रहा कभी..इसलिए तुम्हारे गुस्से में भी

तुम्हारा प्रेम महसूस किया है मैंने हरदम…

फिर वक़्त से शिकायत तो मुझे भी रही है सदा…वो तो इस लॉकडाउन का शुक्र कहो कि,जिसने डर के माहौल में ही सही


सुकून के कुछ पल मुहैया करा दिए मुझे…वरना मैं कहाँ आदि रहा हूँ इन सुखों का..कहाँ पा सका हूँ इतने  सुंदर पल जब बात कर सकूँ तुमसे दो शब्द स्नेह भरे,कब मिले हैं इतने स्वर्मिण क्षण इससे पहले कि खेल सकूँ साथ बच्चों के दिन दिन भर..दे सकूँ उत्तर उनके मन में दबे अनगिनत प्रश्नों का..

देख सकूँ दौड़ती मुस्कुराहटों को उनके कोमल चेहरों पर…

बच्च़े तो कितनी बार हँस भी देतें हैं..पर मैं…अंतस में उठ रही अनगिनत लहरों के वेग को जाहिर भी नहीं कर सकता..!

चाहकर भी अपने हँसते चेहरे के पीछे छूपी आशंकाओं को साझा नहीं कर सकता तुमसे…क्योंकि जानता हूँ..और परेशान हो जाओगी तुम और शायद पहले से ज्यादा चिंतित भी.!

लेकिन…इन परेशानियों में मिले सुनहरे पलों की सौंधी महक महसूस नहीं कर सकी तुम…नहीं समझ सकी तुम…वक़्त बड़ी मुश्किल से किसी को वक़्त देता है…

पगली…तुम खाना बनाने और खिलाने से परेशान हो गयी.लेकिन यह नहीं सोचा कि मैं रोज नए व्यंजन चाहे 

वो सादे ही क्यूँ न हो इसलिए बनाने कहता था क्योंकि बाहर का खाना खाते खाते थक सा गया था..और फिर तुम्हारे हाँथों के बने व्यंजन के स्वाद भी तो अजीज हैं मुझे…पर तुम आजिज़ आ गयी…..

तुम्हें बच्चों का स्कूल न जाना आफत लगा पर मुझे 

उनको इस विकट घड़ी से बचा रखना अपना समय देना…अच्छा लगा..

तुमने उनके मैगी की फरमाईश तो सुनी..लेकिन

उसके लिए उन्के ख़ुद द्वारा प्याज और सब्जियाँ काट देना नहीं देखा..

बाजार से लाने की जगह..घर में गरम गरम समोसे बनाना 

तुमने परेशानी समझा लेकिन उससे पहले उसके लिए तैयार की गई समोसे की सामाग्री नहीं दिखी..

पिज्जा का झंझट दिखा..पर नन्ही बेटी की कौतूहलता 

और उसकी सजावट नहीं दिखी.. उसी तरह हर रोज़..

तुमसे बात करते करते मेरा कुछ न कुछ घर का

काम कर देना…साफ सफाई कर देना..यहां तक..तुम्हारे लिए चाय बनाना..तुम्हारे जागने से पहले ..हल्के फुल्के स्नैक्स के साथ बच्चों के पसंद अनुरूप उन्हें फल काट कर खाने को दे देना….उनके दूध में एक की जगह दो चम्मच हार्लिक्स डाल देना,उन्हें खेलते खेलते नहला कर तैयार कर देना तुम्हें..


कुछ नहीं दिखा….खैर..

जानता हूँ और महसूस भी करता हूँ तुम इस आज़ को लेकर

काफी परेशान हो और तुम्हारा चिंतित होना लाजिमी भी है और एक औरत की सबसे बड़ी विशेषता भी है कि वो हर समय अपने परिवार को लेकर परेशान रहती है..ये भी जानता हूँ मैं और बच्च़े अजिज भी हैं तुम्हें.. शायद ख़ुद से भी ज्यादा..लेकिन पुरूष…?? पुरूष का क्या??

तुम आज़ को लेकर परेशान हो और मैं आज़ के बाद आने वाले कल को लेकर आशांकित हूँ.. क्या कहूँ और कैसे कहूँ तुमसे..कुछ दिन उपरांत यह लॉकडाऊन खत्म हो जायेगा और पुनः मुझे जीवन के समर में नये रूप,नयी जिम्मेदारियों के साथ उतरना है ..जहाँ जाने कितनी दैत्याकार समस्याएं मुँह बनाएं मेरी राह ताक रही हैं…मन सोचने और कहने से डर रहा..क्योकि अब सवाल सिर्फ़ लॉकडाउन का नहीं रहा,

प्रश्न जिंदगी का है…ज़िंदगी आगे कैसे कटेगी. चिंता इस बात की है कि आगे अगर परिस्थितियां नहीं बदली या सुधरी तो 

क्या होगा और..आखिर में हालत कहाँ तक बुरे हो सकते हैं…!!

कैसे कहूँ तुमसे ऐसे जाने कितने प्रश्न मन में उठते हैं,जिनसे मन इतना भारी हो जाता है कि लगता है जैसे इन प्रश्नों से दिल फट जाएगा ..लेकिन विश्वास रखना…अब तक रखा है आगे भी रखना सब अच्छा होगा…#मैं हूँ न..हारने नहीं दूंगा तुम्हें और न ही तुम्हारे विश्वास…को…!! हाँ तुम्हारी कमी जरूर खलेगी कुछ रोज़..पर परेशान मत होना….किसी बात की कोई चिंता मत करना..

जब तक चाहो..माँ के पास रहो…मैं यहाँ तुम्हारे आने तक सब संभाले रहूँगा….वैसे भी अभी कुछ काम बाम तो है नहीं…निठल्ला हूँ अभी घर के काम..सर सफाई व बच्चों के साथ समय गुज़र जाएगा….तुम अपना खयाल रखना…

राजेश….

काटो तो खून नहीं.. हाथ में पत्र लिए वहीं बेड पर बैठ फूट फूट कर रोने लगी…जैसे बैग लायी थी वैसे बंद की और बाहर आकर ..बोली..गोपाल भैया…वापस घर चलो..

माँ …अरे ये क्या..

क्या हुआ….कुछ बता तो सही…ऐसे कैसे जा रही है..

मैंने माँ के पाँव छूए और  यह कहते हुए कि फोन पर बात कर लूँगी कार में जाकर बैठ गई..तब तक गोपाल भी आ गया था…और मैं आँखों में आँसू भरे वैरी पिया..के घर ….मेरे अपने घर चल पड़ी थी..मुझे मेरी गलती समझ आ चुकी थी…और मन ही मन ठान लिया था परिस्थितियाँ कैसी भी क्यूँ न हो राजेश का हआथ नहीं छोडूंगी..सदा उनका हिस्सा बनकर रहूँगी…उनके हर कठिन सफ़र की साथी उनकी अर्धांगिनी…रजनी बनकर…!!

©️®️विनोद सिन्हा “सुदामा”

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